केरल: हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति दी

हाईकोर्ट ने यह आदेश नाबालिग बलात्कार पीड़िता और उनके माता-पिता की उस याचिका पर दिया है, जिसमें उन्होंने गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए अस्पताल को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने कहा कि एक गर्भवती की गर्भावस्था जारी रखने या समाप्त करने का चयन करने की स्वतंत्रता छीनी नहीं जा सकती.

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(फोटो साभार: swarajyamag.com)

हाईकोर्ट ने यह आदेश नाबालिग बलात्कार पीड़िता और उनके माता-पिता की उस याचिका पर दिया है, जिसमें उन्होंने गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए अस्पताल को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने कहा कि एक गर्भवती की गर्भावस्था जारी रखने या समाप्त करने का चयन करने की स्वतंत्रता छीनी नहीं जा सकती.

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कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 26 सप्ताह लंबी गर्भावस्था को उसके खुद के जोखिम पर समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा है कि एक गर्भवती महिला की गर्भावस्था जारी रखने या समाप्त करने का चयन करने की स्वतंत्रता छीनी नहीं जा सकती.

न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ के तहत, जहां गर्भवती महिला द्वारा किसी भी गर्भावस्था को बलात्कार के कारण होने का आरोप लगाया जाता है तो ऐसी गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट के रूप में माना जाएगा.

न्यायालय ने कहा, ‘अधिनियम के तहत प्रावधान को ध्यान में रखते हुए और पीड़िता की उम्र तथा उसकी गर्भावस्था की परिस्थितियों के मद्देनजर यह न्याय के हित में है कि उसे चिकित्सा आधार पर गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए.’

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि यदि भ्रूण इस प्रक्रिया में जीवित रहता है, तो अस्पताल के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे का जीवन सुरक्षित रहे.

अदालत ने अस्पताल को डीएनए मैपिंग सहित आवश्यक चिकित्सा परीक्षण करने के लिए भ्रूण के रक्त और ऊतक के नमूनों को संरक्षित करने का भी निर्देश दिया.

न्यायालय ने यह आदेश नाबालिग बलात्कार पीड़िता और उसके माता-पिता द्वारा दाखिल उस याचिका पर दिया है, जिसमें कोझीकोड मेडिकल कॉलेज को उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था क्योंकि अस्पताल गर्भावस्था के अधिक समय को देखते हुए प्रक्रिया को पूरा करने से इनकार कर रहा था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के बाद याचिका को अनुमति दी, जिसने लड़की की जांच की, एक रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि भ्रूण को गर्भपात करने के लिए उसे कई बार प्रयास करने की जरूरत हो सकती है, जिसमें विफल होने पर सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भ्रूण जीवित रह सकता है. हालांकि, इसने कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए चिकित्सकीय गर्भपात पर विचार किया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि परिणामस्वरूप रिट याचिका को मंजूरी दी जाती है और तीसरे याचिकाकर्ता (पीड़ित) को गर्भावस्था को समाप्त करने की प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दी जाती है. संबंधित प्रतिवादी तीसरे याचिकाकर्ता के जोखिम पर उक्त प्रक्रिया को करने के लिए स्वतंत्र होंगे.

इससे पहले इस साल मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भवती बलात्कार पीड़िता को क़ानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था, ‘अगर एक महिला का बलात्कार होता है और वह गर्भवती है तो उसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत उसके कानूनी अधिकारों के बारे में अवश्य बताया जाना चाहिए.’

उल्लेखनीय है कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 की धारा तीन के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात कराना प्रतिबंधित है.

शीर्ष अदालत ने तब 20 सप्ताह से ज्यादा अवधि के अवांछित गर्भ के समापन के मामलों में निर्णय लेने के लिए राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में मेडिकल बोर्ड गठित करने के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.

उसी समय अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम में संशोधन बिल लोकसभा में पारित हो चुका है.

एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने पर कानूनी रोक है, जो 20 सप्ताह से अधिक है. यह अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) के तहत प्रदान किया गया है.

जनवरी 2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी थी, जिसमें विशेष तरह की महिलाओं के गर्भपात के लिए गर्भावस्था की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रस्ताव है. इनमें बलात्कार पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य महिलाएं (विशेष तौर पर सक्षम महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी. इस साल इसे राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई है.

हालांकि इस नियम के आने से पहले अतीत में कई अदालतों ने असाधारण मामलों में मेडिकल बोर्ड से परामर्श के बाद 26 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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