जब देश का प्रधानमंत्री ही गाली-गलौज करने वालों को फॉलो करेगा तो उन पर लगाम कौन लगाएगा

आॅनलाइन गुंडागर्दी: ट्रोलिंग पर द वायर हिंदी की विशेष सीरीज़ की पहली कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम अपना अनुभव साझा कर रही हैं.

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मेहुल चौकसी (फोटो साभार: डीएनए) और नरेंद्र मोदी (फोटो: रायटर्स)

आॅनलाइन गुंडागर्दी: ट्रोलिंग पर द वायर हिंदी की विशेष सीरीज़ की पहली कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम अपना अनुभव साझा कर रही हैं.

Narendra-Modi reuters
(फोटो: रॉयटर्स)

ट्रोलिंग अब बहुत ही ज्यादा हो गई है, इतनी कि आप कुछ कह ही नहीं सकते. ट्विटर में आप कुछ भी डाल दीजिए, अगले पांच-छह दिन तक आपको भयंकर ट्रोल किया जाता है. इसके बाद मन ही नहीं करता कि कुछ लिखें या कुछ कहें. क्योंकि लगता है कि आप कुछ लिखेंगे और ट्रोल आर्मी आपके पीछे पड़ जाएगी.

इसकी शुरुआत शायद मेरे साथ हुई, जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी. कांग्रेस का शासन था. ये तभी से शुरू हो गया था. इसके बाद जब 2014 में भाजपा की जीत हुई, उसके बाद भाजपा सत्ता में आई, तब से यह बढ़ता गया.

अब इतना हो गया है कि एक तरह की बीमारी, एक वायरल रोग जैसा हो गया है. अब इसे कैसे कंट्रोल करें, कौन सा कानून है, कौन ये कानून लाएगा, कौन लागू करेगा, कुछ नहीं पता. अब कुछ लोग आगे आकर शिकायत करने लगे हैं.

मैंने अक्टूबर, 2013 में द हिंदू में एक लेख लिखा था जिसे लेकर हमें दो घंटे के अंदर 250 धमकी भरी कॉल आई. इस लेख में मैंने लिखा था कि सरदार पटेल, जब गृह मंत्री थे, महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया.

प्रतिबंध लगाने वाले नोटिफिकेशन में उन्होंने यह कहा कि आपने गांधी जी को खुद नहीं मारा, लेकिन आपने ऐसा माहौल तैयार कर दिया था, जिसमें गांधी जी मारे गए. इस कारण आपको प्रतिबंधित किया जाता है.

उस लेख में मैंने यह भी लिखा था कि सरदार पटेल ने अपनी एक चिट्टी में खुद लिखा था, मैंने अपनी तरफ से नहीं कहा था कि जिस दिन गांधी की हत्या हुई, आप लोगों ने मिठाई बांटी थी. इसके अलावा आपकी गतिविधियां बहुत ज्यादा हिंसक हैं, इन सब वजहों से हम आपको प्रतिबंधित कर रहे हैं.

पटेल ने गोलवलकर से यह भी कहा था कि आप अपना एक संविधान लिखिए कि आप सामाजिक काम ही करेंगे, राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे. पहले तो गोलवलकर नहीं माने, बहुत ना नुकुर की, बाद में जाकर उन्होंने आरएसएस का एक संविधान लिखा. इस संविधान के आर्टिकल 4बी में इन्होंने स्पष्ट लिखा है कि हम सांस्कृतिक संगठन हैं, हमारा राजनीतिक मकसद नहीं है.

मेरा लेख इंग्लिश में छपा था. बाद में तमिल द हिंदू के संपादक ने अनुवाद करके इसे तमिल में छापा. इसके बाद हमें धमकी भरे कॉल आने शुरू हुए. यहां तक कि रात भर घर के फोन बजते रहे. एक ही समय में आॅफिस के सारे फोन एक साथ बज रहे थे. जो भी फोन उठाओ, धमकी मिल रही थी.

बाद में पता चला कि तमिल में त्रिचि की आरएसएस इकाई की तरफ से ये फोन करवाए गए. हमें बम से उड़ाने की धमकी दी गई. उन्हें ये लग रहा था कि मैंने ये सब अपनी तरफ से लिखा, लेकिन मैं तो सरदार पटेल को कोट करके लिख रही थी. जो बातें सरदार पटेल कह रहे हैं, वो मैं अपनी तरफ से क्यों कहूंगी. मैंने तो बस उन्हीं को कोट किया.

वो लोग समझाने पर माने नहीं तो मैंने पुलिस में शिकायत की. दो दिन बाद फिर से एक शिकायत की कि अभी तक आपने कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि धमकियां और बढ़ गई हैं. एक ही नंबर से हमें 53 कॉल की गई. वो सारे नंबर अब भी मेरे पास हैं.

इसके बाद कांग्रेस नेता अजय माकन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उनको तो नरेंद्र मोदी को घेरना था. ये बहाना मिल गया. जब ये प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो मुझे लगा कि मुझे कुछ कहना चाहिए क्योंकि मैं तो कांग्रेस के पास गई नहीं. मैंने लिखा, अब अगर धमकी मिलती है तो मुझे पुलिस में शिकायत करनी चाहिए.

यह लिखने के लिए मैंने ट्विटर अकाउंट खोला और वहां पर लिखा कि मैं कांग्रेस के पास नहीं गई. लेकिन उस दिन से लेकर तीन-चार दिन तक मेरी भयंकर ट्रोलिंग की गई कि तुम कांग्रेस की एजेंट हो, पहले से सब तय किया हुआ है, सब मिले हुए हो, तुम दोनों ने मिलकर लेख लिखा है. अब कांग्रेस और मैं मिलकर लेख लिखेंगे, ये संभव है क्या?

ये सब संगठित ढंग से होता है. बिना किसी के सपोर्ट के नहीं हो सकता. थोड़ा बहुत होता है कि समर्थकों को बुरा लगे और वे कुछ बोलें. लेकिन जैसा मेरे साथ हुआ कि धमकी भरे कॉल आए, वह तो संगठित हमला था. ऐसा तो नहीं हो सकता है कि लोगों ने लेख पढ़ा और सैकड़ों की संख्या में फोन करने लगे. वह तो किसी ने कहा होगा कि फोन करो और धमकी दो.

वे यह चाहते थे कि मैं लेख वापस लूं और माफी मांगूं, लेकिन मैं लेख वापस क्यों लूं? मैंने तथ्यों पर आधारित लेख लिखा था. ये तो बहुत पहले से है कि आपको लिखने पर धमकी मिले. बहुत सालों से ये होता रहा है. पहले पोस्ट कार्ड आते थे, जिसमें धमकियां आती थीं.

आज आप गुमनाम रहकर धमकी दे देते हैं फर्जी अकाउंट से, उस समय तो फोन से था. पता था कि किसका फोन नंबर है. फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया.

ट्विटर पर प्रधानमंत्री ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं जो गालियां देते हैं तो उन पर कार्रवाई कहां से होगी? सबसे पहले तो प्रधानमंत्री को ऐसे लोगों को अनफॉलो करना चाहिए. लेकिन ये हो नहीं रहा है, क्योंकि उनके लिए यह नाक का सवाल बन गया है कि आपके कहने पर हम अनफॉलो क्यों करें? उल्टा अमित शाह कह रहे हैं कि आपको सोशल मीडिया पर सावधानी से लिखना चाहिए.

अमित शाह शायद इसलिए भी कह रहे हों कि अब काउंटर भी होने लगा है. कई वेबसाइट फर्जीवाड़े को उजागर कर रही हैं कि कैसे एक ही ट्वीट को सौ लोग ट्वीट कर रहे हैं. अब उन्हें लगता है कि हम पर रिएक्शन हो सकता है.

पहले की सरकारें, चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी लिखने से रोकने का प्रयास करती रही हैं. मुझे अच्छी तरह से याद है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय उन्होंने पत्रकारों की एक लिस्ट तैयार की थी, जिसमें मेरा भी नाम था.

उनका नाम हमारे मालिकों को दिया गया कि इनको या तो बीट से निकाल दीजिए, या फिर लिखने से रोक दीजिए या नौकरी से हटा दीजिए. ये बात सामने ऐसे आई कि हमारे मालिक ने हमें खुद ही बताया उस लिस्ट के बारे में. तो ये परंपरा पुरानी है.

सरकार दो तरह से निपटती है. एक तो हर संस्थान में अहम पदों पर अपने चहेते पत्रकारों को रख देती है जो खबरों को मॉनीटर करें और सरकार के पक्ष में खबरें छपवाएं. वहां अगर मामला नहीं बनता तो आपको आगे जाकर देखना पड़ता है कि पत्रकार को संस्थान से निकलवा दो.

इतनी बड़ी संख्या में लोग गालियां देने लगें तो आदमी भले न डरे, लेकिन आदमी परेशान तो हो ही जाता है. कितनी गंदी-गंदी बातें लिखी जाती हैं. सागरिका और राजदीप के साथ तो बहुत ही बुरा हुआ. गौरी लंकेश के बारे में कितना खराब लिखा गया.

यह सब हाल-फिलहाल में रुकेगा, मुझे तो नहीं लगता. लोगों का इतना ध्रुवीकरण हो गया है कि दोनों तरफ से लोग समझने को तैयार नहीं हैं. जो मोदी के समर्थक हैं वे तो इस स्टेज में नहीं हैं कि तटस्थ होकर देख पाएं कि कुछ गलत हो रहा है. सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नहीं, घर-घर में लोग ऐसे रिएक्ट करने लगे हैं.

हमने किसी नेता के समर्थकों को ऐसे रिएक्ट करते कभी नहीं देखा. लोगों में इतने आक्रोश की वजह है हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण. दूसरे, मोदी का करिश्माई तरीका भी है जो लोगों को बहुत लुभाता है. लोगों को लगता है कि एक नेता पहली बार उनको संबोधित कर रहा है कि राष्ट्र निर्माण में आप भी आओ. यह असर करता है.

नोटबंदी के समय बहुतों की नौकरियां चली गईं, लेकिन लोगों को ये संतोष था कि अमीर लोगों के खिलाफ एक्शन लिया है. मेरे अनुमान में इस आक्रोश का सबसे बड़ा कारण हिंदूवाद है. लोगों को लगता है कि पहली बार है कि हमें पूरा का पूरा हिंदू प्रधानमंत्री मिला है.

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इससे निपटने का तरीका ये हो सकता है कि मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून का एक ड्रॉफ्ट तैयार हुआ है. यह भी एक तरह की लिंचिंग है, वर्बल लिंचिंग. इसके लिए ब्रॉडकॉस्ट एसोसिएशन को ज्यादा शक्तियां देनी होंगी. प्रेस काउंसिल के पास भी कोई शक्ति नहीं है.

आखिर में कुछ तो करना होगा. सैकड़ों लोगों के खिलाफ आप कोर्ट भी कैसे जाएंगे? अब यही तरीका दिखता है कि आप अपना काम करते रहें, और क्या कर सकते हैं.

अगर पत्रकार सब सरकार के सामने कोई कानून बनाने या कार्रवाई करने का प्रस्ताव भी रखें तो मुझे तो नहीं लगता कि कुछ हो सकता है. उनको कितने लोगों ने बताया कि आप गलत लोगों को फॉलो करते हैं जो गाली गलौज करते हैं, ट्रोल करते हैं. वे इतनी खराब भाषा इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं तो उनसे कैसे उम्मीद करें कि वे कोई कार्रवाई करेंगे!

देश में विपक्ष तो है ही नहीं. विपक्ष का जो काम है वह सिविल सोसाइटी कर रही है. हम लोग प्रदर्शन आयोजित हैं तो विपक्षी नेता भी उसमें शामिल हो जाते हैं. कब वे संगठित होंगे, कब कुछ करेंगे, हमें लगता है कि उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या, कैसे करना है.

बात यहां तक हो गई है कि आप कुछ कहते हैं तो लोग और ज्यादा आक्रोशित हो जाते हैं, और ज्यादा ट्रोल करते हैं कि आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले. हमें लगता है कि नरेंद्र मोदी का नया इंडिया यही है.

(कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)