पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि हमारी मांगें माने जाने तक किसान आंदोलन मजबूती के साथ शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा. राजनीतिक दलों की आंतरिक कलह या दूसरे दलों के साथ झगड़े से आंदोलन प्रभावित नहीं होगा.
नई दिल्ली: चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन राजनीतिक दलों की आपसी कलह की वजह से प्रभावित नहीं होगा.
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बयान जारी कर कहा, ‘हमारी मांगें माने जाने तक किसान आंदोलन मजबूती के साथ शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा. राजनीतिक दलों की आंतरिक कलह या दूसरे दलों के साथ झगड़े से आंदोलन प्रभावित नहीं होगा.’
पंजाब कांग्रेस में सत्ता के लिए संघर्ष के बाद बीते 18 सितंबर को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने त्यागपत्र दे दिया था और इसके बाद चरणजीत सिंह चन्नी ने नए मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला. मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद चन्नी ने सोमवार को केंद्र सरकार से कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग की.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, 355 दिनों से बरनाला रेलवे स्टेशन पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान मोर्चा ने कहा कि किसान आंदोलन का राजनीतिक कलह से कोई लेना-देना नहीं है.
मोर्चा के नेता मंजीत सिंह धनेर ने कहा, ‘यह सब शोर 2022 में नए चेहरों के साथ चुनाव जीतने की योजना का एक हिस्सा है. सरकार की जनविरोधी और कॉरपोरेट समर्थक नीतियों के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और राजनेताओं के पास इसका कोई समाधान नहीं है.’
उन्होंने प्रदर्शनकारियों से 27 सितंबर को भारत बंद की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा और युवाओं से बुधवार से दिल्ली की सीमाओं पर पांच दिवसीय कबड्डी टूर्नामेंट में शामिल होने की अपील की.
कीर्ति किसान संघ के राज्य समिति के सदस्य भूपिंदर सिंह लोंगोवाल ने कहा कि वे नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए भारत बंद में भाग लेने के लिए स्थानीय लोगों को जुटाने के लिए गांवों में बैठकें और रैलियां कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम भारत बंद को सफल बनाने के लिए सभी क्षेत्रों के लोगों को जागरूक और प्रेरित कर रहे हैं. संगरूर में आगामी हड़ताल के मद्देनजर किसान मोर्चा के नेताओं ने किसान संघों के सभी प्रतिनिधियों के साथ बैठक भी की. हमने 27 सितंबर को संयुक्त विरोध प्रदर्शन करने के लिए व्यापर मंडल के नेताओं से मिलने का भी फैसला किया है.’
किसानों के 40 संगठनों के प्रमुख संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि 27 सितंबर को भारत बंद की पूरी तैयारी चल रही है और प्रदर्शनकारी किसानों को पूरे देश में समर्थन मिला है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में नौ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
सरकार और यूनियनों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शन के तहत ट्रैक्टर परेड के दौरान व्यापक हिंसा के बाद बातचीत फिर से शुरू नहीं हुई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)