मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक लॉ ग्रैजुएट छात्र को राहत देते हुए कहा कि सरकार के ख़िलाफ़ काम करने और सरकार की नीतियों का विरोध करने के बीच बड़ा अंतर है.
नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के जस्टिस एम दुरईस्वामी और जस्टिस के. मुरलीशंकर ने एक हालिया आदेश में कहा है कि एक शख्स सरकार के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने और एक शख्स सरकार की नीतियों का विरोध करने में बहुत बड़ा अंतर है.
अदालत ने एक लॉ ग्रैजुएट छात्र के. शिवा की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. जब शिवा ने बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पॉन्डिचेरी के सदस्य के रूप में आवेदन करने की कोशिश की तो उन्हें बताया गया कि उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी.
शिवा के खिलाफ पुलिस की वेरिफिकेशन रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उनके खिलाफ 2017 से 2019 के बीच 88 आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से अधिकतर मामले 22 मई 2019 में तूतुकुडी में हुए प्रदर्शनों के बाद दर्ज हुए है, जिनमें वेदांता के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करने की मांग की गई थी क्योंकि इस संयंत्र की वजह से हवा और पानी दूषित हुआ है और यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
इन प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की फायरिंग में 13 लोगों की मौत हुई थी. इन प्रदर्शनों के बाद तमिलनाडु सरकार ने इस संयंत्र को बंद करने का आदेश दिया था.
मद्रास हाईकोर्ट ने 18 अगस्त 2020 को संयंत्र को बंद रखने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने भी संयंत्र को दोबारा खोलने के किसी तरह के अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया था.
मदुरै पीठ ने तर्क दिया कि पर्यावरण के संरक्षण में राज्य का कर्तव्य मूल रूप से लोगों का अधिकार है. पीठ ने भाग IV-ए (मौलिक कर्तव्य) के अनुच्छेद 51-ए (जी) का हवाला दिया, जो जंगल, झील, नदी और वन्यजीव सहित पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार से संबंधित है.
पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि तूतुकुडी घटना के बाद दर्ज 88 एफआईआर के संबंध में सीबीआई द्वारा दायर चार्जशीट में याचिकाकर्ता आरोपी नहीं है.
याचिकाकर्ता स्टरलाइट संयंत्र को बंद करने की मांग के साथ चेन्नई में एक अन्य छात्र प्रदर्शन में शामिल थे. इस विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर यह आरोप लगा कि इन्होंने पुलिस को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोका.
आदेश के पैराग्राफ 22 में पीठ ने कहा है कि छात्रों द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन दरअसल संविधान के अनुच्छेद 48ए के तहत उनके मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन है.
पीठ ने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के एक शराब की दुकान के बाहर खड़ी भीड़ का महज हिस्सा होने और नारेबाजी करने से उसे अपराधी घोषित नहीं किया जा सकता.
तिरुनेलवेली जंक्शन पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज अन्य मामले में याचिकाकर्ता पर ‘पीपुल पावर’ के बैनर तहत बीफ की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ 18 अन्य लोगों के साथ बिना पूर्व अनुमति के इकट्ठा होने का आरोप है.
पीठ ने कहा कि हर नागरिक के पास सरकार की नीतियों पर टिप्पणी करने और इस तरह की नीतियों पर अपने विचार रखने का अधिकार है.
पीठ ने बताया कि यहां तक कि अभियोजन पक्ष ने भी यह आरोप नहीं लगाया है कि याचिकाकर्ता हिंसा में शामिल था.
पीठ ने आर. नागेंद्रिन मामले में हाईकोर्ट के आदेश का उल्लेख किया, जिसमें पीठ ने किसी नेता का पुतला जलाने और मानहानि की शिकायतों को उन कृत्यों के तौर पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसके तहत उन्हें अपराधी ठहराया जाए.
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