आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट जज

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी ज़िम्मेदारी भी है. उनकी सहायक भूमिका के अभाव में आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज़्यादातर लोगों को जाति, ग़रीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी ज़िम्मेदारी भी है. उनकी सहायक भूमिका के अभाव में आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज़्यादातर लोगों को जाति, ग़रीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने बीते शनिवार को कहा कि लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि यह उचित समय है कि राज्य न्यायसंगतता, समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को सार्वभौमिक रूप से लागू करने के लिए कानून बनाने पर विचार करे.

द्वितीय प्रोफेसर शामनाद बशीर स्मृति व्याख्यान में न्यायाधीश ने कहा कि मौलिक स्वतंत्रता को लागू करने के लिए सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के वास्ते एक उदार अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका वक्त की मांग है.

जस्टिस भट्ट ने कहा, ‘लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता है. जब असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों की बात आती है तो कानून में एक गंभीर कमी दिखाई देती है. इस क्षेत्र में यह और महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्षेत्रीय नियामक हस्तक्षेप करें, अगर इस विधायी कमी को दूर नहीं किया गया तो संवैधानिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘यह उचित समय है कि राज्य न्यायसंगतता, समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को सार्वभौमिक रूप से लागू करने के लिये कानून बनाने पर विचार करे. इस तरह का कानून लागू करने वाले हम पहला देश नहीं होंगे. पहला दक्षिण अफ्रीकी विधानमंडल था, जिसने समानता अधिनियम लागू किया था.’

एक लीगल न्यूज पोर्टल द्वारा आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी जिम्मेदारी भी है.

जस्टिस भट्ट ने कहा, ‘राज्य की सहायक भूमिका के अभाव में, आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज्यादातर लोगों को जाति, गरीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है.’

निजता के मुद्दे पर जस्टिस भट्ट ने कहा कि निजी संस्थाओं या यहां तक ​​कि राज्य के खिलाफ लोगों के अधिकारों को लागू करने के लिए सकारात्मक कानून के रूप में कोई प्रभावी तंत्र नहीं होना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कमी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)