युवा डॉक्टरों का सत्ता के खेल में फुटबॉल की तरह इस्तेमाल न करे: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत उन 41 स्नातकोत्तर डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा- अति विशिष्टता’ की अधिसूचना जारी होने के बाद पाठ्यक्रम में अंतिम समय में किए गए बदलाव को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि वह इन युवा डॉक्टरों को कुछ असंवेदनशील नौकरशाहों के हाथों में खेलने की अनुमति नहीं देगा.

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FILE PHOTO: A Junior Doctor holds his stethoscope during a patient visit on Ward C22 at The Royal Blackburn Teaching Hospital in East Lancashire, following the outbreak of the coronavirus disease (COVID-19), in Blackburn, Britain, May 14, 2020. REUTERS/Hannah McKay/Pool/File Photo

शीर्ष अदालत उन 41 स्नातकोत्तर डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा- अति विशिष्टता’ की अधिसूचना जारी होने के बाद पाठ्यक्रम में अंतिम समय में किए गए बदलाव को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि वह इन युवा डॉक्टरों को कुछ असंवेदनशील नौकरशाहों के हाथों में खेलने की अनुमति नहीं देगा.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि युवा डॉक्टरों का सत्ता के खेल में फुटबॉल की तरह इस्तेमाल न करे. न्यायालय ने केंद्र को चेतावनी देते हुए कि अगर वह राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा- अति विशिष्टता (NEET-SS) 2021 के पाठ्यक्रम में अंतिम समय में किए गए बदलाव के औचित्य से संतुष्ट नहीं हुआ तो वह प्रतिकूल टिप्पणियां करेगा.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इन युवा डॉक्टरों को कुछ असंवेदनशील नौकरशाहों के हाथों में खेलने की अनुमति नहीं देगा और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) और राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) से कहा कि वह अपना घर दुरुस्त करें.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को एक सप्ताह के भीतर अन्य दो अधिकारियों के साथ बैठक करने को कहा.

पीठ ने कहा, ‘आप बेहतर कारण बताइए क्योंकि यदि हम संतुष्ट नहीं हुए तो आपके बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां पारित करेंगे.’

पीठ ने कहा, ‘सत्ता के खेल में इन युवा डॉक्टरों का फुटबॉल की तरह इस्तेमाल न करे. बैठक करें और अपने घर को दुरुस्त करें. हम इन युवा डॉक्टरों के जीवन को कुछ असंवेदशील नौकरशाहों के हाथों में नहीं आने देंगे.’

शीर्ष अदालत उन 41 स्नातकोत्तर डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने परीक्षा की अधिसूचना जारी होने के बाद पाठ्यक्रम में अंतिम समय में किए गए बदलाव को चुनौती दी थी.

शुरुआत में युवा डॉक्टरों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि उन्होंने इस मामले में एक लिखित दलील भी दाखिल की है.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता गौरव शर्मा ने कहा कि वे मामले में जवाब दाखिल करना चाहते हैं और एक सप्ताह के स्थगन का अनुरोध किया.

पीठ ने कहा, ‘मिस्टर शर्मा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग क्या कर रहा है? हम उन युवा डॉक्टरों के जीवन के बारे में बात कर रहे हैं जो सुपर स्पेशियलिटी कोर्स करेंगे. आपने 23 जुलाई को परीक्षा के लिए अधिसूचना जारी की है और फिर 31 अगस्त को पाठ्यक्रम बदल दिया है. यह क्या है? उन्हें 13 और 14 नवंबर को परीक्षा में बैठना है.’

राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि उन्हें अगले सोमवार तक जवाब दाखिल करने का समय दिया जाए, क्योंकि बदलाव करने के लिए उपयुक्त कारण थे और अधिकारी छात्रों की कठिनाइयों से अच्छी तरह वाकिफ थे और संबंधित तीन प्राधिकारियों के अनुमोदन के बाद इसे मंजूरी दी गई थी.

पीठ ने कहा, ‘फिर परीक्षा के लिए अधिसूचना क्यों जारी की गई? अगले साल ऐसा क्यों नहीं हो सकता? आप देखिए, छात्र इन महत्वपूर्ण चिकित्सा पाठ्यक्रमों की तैयारी महीनों पहले से शुरू कर देते हैं. अंतिम समय में बदलाव की क्या जरूरत थी?’

सिंह ने कहा कि पाठ्यक्रम में बदलाव काफी समय से चल रहा था और 2018 से तैयारी चल रही थी और संबंधित अधिकारियों ने कठिनाइयों का ध्यान रखने की कोशिश की है.

उन्होंने कहा, ‘कृपया हमें एक सप्ताह का समय दें, हम सब कुछ समझा देंगे.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह परीक्षा उनके (डॉक्टरों) करिअर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और केवल इसलिए कि ये डॉक्टर एमबीबीएस परीक्षा पास कर चुके हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे अंतिम समय में परीक्षा पैटर्न बदल सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘आपको इन युवा डॉक्टरों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आना होगा.’

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि इन युवा डॉक्टरों के लिए अध्ययन का पैटर्न प्रश्नों के पैटर्न पर निर्भर करेगा. यदि आप अंतिम समय में बदलाव करते हैं, तो वे उलझ जाएंगे.

उन्होंने कहा कि अंतिम समय में बदलाव युवा डॉक्टरों के साथ धोखा है.

जस्टिस चंद्रचूड़ उनसे सहमति जताते हुए कहा, ‘हमारे पास कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) का एक उदाहरण है. मैंने सुना है कि परीक्षा की तैयारी के लिए छात्रों को दो साल तक अध्ययन करने की आवश्यकता होती है. यहां इन डॉक्टरों के लिए महीनों का समय लगता है, जिन्हें जटिल दवाओं का अध्ययन करना होता है और परीक्षा की तैयारी करनी होती है और आप अंतिम समय में बदलाव नहीं कर सकते.’

सिंह ने कहा कि अदालत को पहले दलीलें सुननी चाहिए और फिर मामले में कोई राय बनानी चाहिए.

पीठ ने कहा कि वह बहस के लिए तैयार है, लेकिन अगर वह दलील स्वीकार नहीं करती है तो संबंधित अधिकारियों को भी अदालत द्वारा पारित सख्ती को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘ये लोग जो राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में डॉक्टर हैं, उन्होंने उस मुकाम को पार कर लिया है जिस पर वर्तमान में युवा डॉक्टर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उनके साथ ऐसा व्यवहार करें. बेहतर होगा कि आप मजबूत कारण बताएं.’

याचिका में कहा गया है कि परीक्षा के प्रचलित प्रारूप के अनुसार अति विशिष्टता पाठ्यक्रम के प्रश्नों पर 60 प्रतिशत अंक दिए जाते हैं, जबकि 40 प्रतिशत अंक अन्य पाठ्यक्रमों से दिए जाते हैं.

परीक्षा पैटर्न में संशोधन के 31 अगस्त को जारी अधिसूचना के अनुसार अब सामान्य दवाओं के प्रश्नों पर 100 प्रतिशत अंक दिए जाएंगे.

युवा डॉक्टरों ने अपनी याचिका में कहा है कि वे पिछले तीन साल से चली आ रही पूर्व पद्धति के अनुसार परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)