कश्मीर: महबूबा का पत्रकारों की प्रताड़ना का आरोप, कहा- फैक्ट-फाइंडिंग टीम भेजे प्रेस परिषद

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि लोगों को उम्मीद थी कि भारतीय प्रेस परिषद इन मामलों पर संज्ञान लेगा, लेकिन ऐसा लगता है कि अदालतों सहित किसी भी निगरानी संस्था की जम्मू कश्मीर में पैदा हुई दर्दनाक परिस्थितियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.

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पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती. (फोटो: पीटीआई)

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि लोगों को उम्मीद थी कि भारतीय प्रेस परिषद इन मामलों पर संज्ञान लेगा, लेकिन ऐसा लगता है कि अदालतों सहित किसी भी निगरानी संस्था की जम्मू कश्मीर में पैदा हुई दर्दनाक परिस्थितियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कश्मीर घाटी में पत्रकारों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) को पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर में एक स्वतंत्र फैक्ट-फाइंडिंग टीम भेजने को कहा है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘हमने देखा है कि किस तरह भारतीय संविधान में निहित बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों पर तेजी से हमले हुए हैं, खासकर पिछले दो वर्षों में एक शत्रुतापूर्ण और असुरक्षित सरकार द्वारा.’

महबूबा मुफ्ती ने आगे कहा, ‘पत्रकारों का बेवजह उत्पीड़न करना एक नियम बन गया है. उनके घरों पर छापा मारकर, उन्हें तलब करके और बेहूदा ट्वीट्स जैसे तुच्छ आधारों पर पूछताछ करके, सीआईडी ​​द्वारा पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों की पृष्ठभूमि की जांच करके, कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से आवास सहित अन्य सुविधाओं को वापस लेना, मोबाइल फोन, लैपटॉप, पासपोर्ट, एटीएम कार्ड आदि को जब्त करके इस नीति को लागू किया जा रहा है.’

पीडीपी नेता ने कहा कि लोगों को उम्मीद थी कि भारतीय प्रेस परिषद इन व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लेगा, लेकिन ऐसा लगता है कि अदालतों सहित किसी भी स्थापित निगरानी मंच की जम्मू कश्मीर में पैदा हुई दर्दनाक परिस्थितियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए यह मेरा दायित्व बनता है कि मैं आपसे इन दावों की स्वतंत्र रूप से जांच करने और इसका समाधान निकालने के लिए जम्मू कश्मीर में एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम भेजने का आग्रह करूं.’

जम्मू कश्मीर पुलिस ने कुछ दिन पहले ही चार पत्रकारों, जिसमें एक वरिष्ठ संपादक भी शामिल हैं, के घर पर छापा मारा था और श्रीनगर के एक थाने में एक दिन तक हिरासत में रखा था.

पुलिस द्वारा ये कार्रवाई गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी कठोर यूएपीए के तहत पिछले साल दर्ज एक मामले को लेकर की गई थी.

मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से ही स्थानीय मीडिया ने सरकार के बाद आलोचनात्मक खबरें छापना बंद कर दिया है.

उन्हें इस बात का भय है कि सरकार के द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है और विज्ञापन आदि पर रोक लगाई जा सकती है.

पत्रकार और लेखक गौहर गिलानी और फोटो जर्नलिस्ट मसरत जहरा पर कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों और अलगाववादियों के खिलाफ किया जाता है.

आरएसएफ के 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 142वें स्थान पर है. आरएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है जो मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा में विशेषज्ञता रखता है, जिसे सूचित रहने और दूसरों को सूचित करने का एक बुनियादी मानवाधिकार माना जाता है.

साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन 37 राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों की सूची में शामिल हैं, जिन्हें आरएसएफ ने प्रेस स्वतंत्रता को नियंत्रण करने वालों (प्रीडेटर्स) के रूप में पहचाना है.

मोदी के बारे में कहा गया है कि वह 26 मई, 2014 को पदभार ग्रहण करने के बाद से एक प्रीडेटर रहे हैं और अपने तरीकों को ‘राष्ट्रवादी-लोकलुभावनवादी (nationalist-populist) विचारधारा और दुष्प्रचार’ के रूप में सूचीबद्ध करते हैं.

आरएसएफ ने कश्मीर के पत्रकारों को इस तरह हिरासत में लेने की घटना की निंदा की थी और कहा था कि ‘पत्रकारिता अपराध नहीं’ है.

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