भारतीय प्रेस परिषद ने जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती द्वारा इस मामले को लेकर लिखे गए एक पत्र के बाद ये कदम उठाया है. मुफ़्ती ने कहा था कि पत्रकारों का बेवजह उत्पीड़न करना एक नियम बन गया है. उनके घरों पर छापा मारकर, उन्हें तलब करके और बेहूदा ट्वीट्स जैसे तुच्छ आधारों पर पूछताछ करके, सीआईडी द्वारा पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों की पृष्ठभूमि की जांच करके, उनका उत्पीड़न किया जा रहा है.
नई दिल्ली: भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने कश्मीर में पत्रकारों को धमकी और उनके उत्पीड़न की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय फैक्ट-फाइंडिंग समिति गठित की है.
पीसीआई ने जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा इस मामले को लेकर लिखे गए एक पत्र के बाद ये कदम उठाया है. मुफ्ती ने कश्मीर में प्रशासन द्वारा पत्रकारों को प्रताड़ित करने का मुद्दा उठाया था.
भारतीय प्रेस परिषद ने जांच के लिए जो कमेटी बनाई है उसमें दैनिक भास्कर के ग्रुप एडिटर और संयोजक प्रकाश दूबे, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार गुरबीर सिंह और जन मोर्चा की संपादक डॉ. सुमन गुप्ता शामिल हैं.
सर्वोच्च मीडिया निकाय पीसीआई ने जम्मू कश्मीर प्रशासन से गुजारिश की है कि वे फैक्ट-फाइंडिंग टीम को अपना पूरा सहयोग प्रदान करें. परिषद ने कहा कि इस समिति का काम कश्मीर के प्रभावित पत्रकारों और सभी संबंधित स्टेकहोल्डर्स से बात कर जल्द से जल्द रिपोर्ट सौंपनी है.
फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी अपनी खुद की प्रक्रिया तैयार कर मामले की जांच करेगी.
Press Council of India forms a fact-finding committee to look into the alleged intimidation and harassment of journalists in J&K after former CM @MehboobaMufti flagged the issue pic.twitter.com/eXbzz4G9IO
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) September 30, 2021
मालूम हो कि कश्मीर घाटी में पत्रकारों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भारतीय प्रेस परिषद को पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर में एक स्वतंत्र फैक्ट-फाइंडिंग टीम भेजने की मांग की थी.
उन्होंने कहा था, ‘हमने देखा है कि किस तरह भारतीय संविधान में निहित बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों पर तेजी से हमले हुए हैं, खासकर पिछले दो वर्षों में एक शत्रुतापूर्ण और असुरक्षित सरकार द्वारा.’
महबूबा मुफ्ती ने आगे कहा, ‘पत्रकारों का बेवजह उत्पीड़न करना एक नियम बन गया है. उनके घरों पर छापा मारकर, उन्हें तलब करके और बेहूदा ट्वीट्स जैसे तुच्छ आधारों पर पूछताछ करके, सीआईडी द्वारा पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों की पृष्ठभूमि की जांच करके, उनका उत्पीड़न किया जा रहा है. कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से आवास सहित अन्य सुविधाओं को वापस लेना, मोबाइल फोन, लैपटॉप, पासपोर्ट, एटीएम कार्ड आदि को जब्त करके इस नीति को लागू किया जा रहा है.’
मुफ्ती ने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि किस तरह कश्मीरी पत्रकारों को विदेश जाने से रोक जा रहा है और लुक-आउट सर्कुलर के नाम पर उन्हें बुलाया जा रहा है.
हाल ही में द वायर ने रिपोर्ट कर बताया था कि जम्मू कश्मीर में लुक-आउट सर्कुलर लिस्ट में 43 से अधिक लोग हैं, जिन्हें विदेश यात्रा की अनुमति नहीं है. इन 43 में से करीब 22 लोग पत्रकार हैं.
जम्मू कश्मीर पुलिस ने कुछ दिन पहले ही चार पत्रकारों, जिसमें एक वरिष्ठ संपादक भी शामिल हैं, के घर पर छापा मारा था और श्रीनगर के एक थाने में एक दिन तक हिरासत में रखा था.
पुलिस द्वारा ये कार्रवाई गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी कठोर यूएपीए के तहत पिछले साल दर्ज एक मामले को लेकर की गई थी.
यह केस कश्मीर फाइट डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम (kashmirfight.wordpress.com) नामक ब्लॉग को चलाने वाले उन अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किया गया था, जो ‘केंद्र सरकार का समर्थक’ होने का आरोप लगाते हुए कश्मीरी पत्रकारों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं.
इनके पोस्ट में वरिष्ठ संपादक शुजात बुखारी और मानवाधिकार वकील बाबर कादरी जैसे लोगों के भी नाम शामिल किए गए थे, जिनकी बाद में साल 2018 और 2020 में हत्या कर दी गई थी. जांचकर्ताओं का कहना है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों द्वारा इनकी हत्या की गई है.
मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से ही स्थानीय मीडिया ने सरकार के बाद आलोचनात्मक खबरें छापना बंद कर दिया है.
उन्हें इस बात का भय है कि सरकार के द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है और विज्ञापन आदि पर रोक लगाई जा सकती है.
पत्रकार और लेखक गौहर गिलानी और फोटो जर्नलिस्ट मसरत जहरा पर कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों और अलगाववादियों के खिलाफ किया जाता है.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) के 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 142वें स्थान पर है. आरएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है, जो मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा में विशेषज्ञता रखता है, जिसे सूचित रहने और दूसरों को सूचित करने का एक बुनियादी मानवाधिकार माना जाता है.
साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन 37 राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों की सूची में शामिल हैं, जिन्हें आरएसएफ ने प्रेस स्वतंत्रता को नियंत्रण करने वालों (प्रीडेटर्स) के रूप में पहचाना है.
मोदी के बारे में कहा गया है कि वह 26 मई, 2014 को पदभार ग्रहण करने के बाद से एक प्रीडेटर रहे हैं और अपने तरीकों को ‘राष्ट्रवादी-लोकलुभावनवादी (nationalist-populist) विचारधारा और दुष्प्रचार’ के रूप में सूचीबद्ध करते हैं.
आरएसएफ ने कश्मीर के पत्रकारों को इस तरह हिरासत में लेने की घटना की निंदा की थी और कहा था कि ‘पत्रकारिता अपराध नहीं’ है.
पिछले दो वर्षों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने कश्मीर में ‘पत्रकारों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखने और उन्हें डराने’ की रिपोर्ट पर भारत सरकार को कम से कम तीन मौकों पर लिखा है.
बीते 3 जून को भारत सरकार को भेजे गए अपने नवीनतम पत्र में, जिसे 25 अगस्त को सार्वजनिक किया गया था, संयुक्त राष्ट्र के दूत ने कश्मीर स्थित पत्रकारों फहद शाह, काज़ी शिबली, सज्जाद गुल और आकिब जावीद के कथित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर चिंता जाहिर की थी.
जम्मू कश्मीर प्रशासन उस समय वैश्विक मीडिया के निशाने पर आ गया था, जब इस वर्ष के शुरुआत में दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि श्रीनगर में जामिया मस्जिद के बाहर विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उन्हें मारा-पीटा था.
बीबीसी उर्दू के एक मल्टीमीडिया पत्रकार शफ़ात फारूक और एक स्वतंत्र फोटोग्राफर साकिब मजीद घायल हुए थे. हालांकि पुलिस ने इस दावों को खारिज किया था.
इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन ने कई पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए सहित कई केस दायर दर्ज किए हैं. द हिंदू के एक पत्रकार पीरजादा आशिक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. गांदरबल के केंद्रीय विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र सज्जाद गुल, कश्मीर वाला के पूर्व संपादक यशराज शर्मा और एक ऑनलाइन समाचार वेबसाइट द कश्मीरियत के मीर जुनैद और काजी शिबली के खिलाफ केस दर्ज किया गया है.
कई पत्रकारों ने यह भी आरोप लगाया कि जम्मू कश्मीर पुलिस के आपराधिक जांच विभाग सीआईडी द्वारा उनसे संपर्क कर उनके बारे में विवरण देने के लिए कहा गया है. हालांकि घाटी में सीआईडी अधिकारियों ने द वायर को बताया कि इस तरह की कार्रवाई से उत्पीड़न नहीं होता.