सुप्रीम कोर्ट ने तीन नए कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ करने की अनुमति देने की मांग की गई है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जब तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी गई है, तो किसान संगठन किसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बीते रविवार की लखीमपुर खीरी घटना का जिक्र किया, जिसमें आठ लोग मारे गए थे. इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसी कोई घटना होने पर कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता.
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई मामला जब सर्वोच्च संवैधानिक अदालत के समक्ष होता है, तो उसी मुद्दे को लेकर कोई भी सड़क पर नहीं उतर सकता.
शीर्ष अदालत तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में एक किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यहां जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ करने की अनुमति देने का प्राधिकारियां को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
SC: Only courts can decide the validity of the executive action.
Chaudhary: In Rajasthan HC we had challenged validity of a act on the basis of a constitutional provision
SC: there is no act at the moment, it is stayed at the moment, protest for what??
— Bar & Bench (@barandbench) October 4, 2021
शीर्ष अदालत कृषकों के संगठन ‘किसान महापंचायत’ और उसके अध्यक्ष की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में संबंधित प्राधिकारियों को जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण एवं गैर-हिंसक ‘सत्याग्रह’ के आयोजन के लिए कम से कम 200 किसानों के लिए जगह उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया था.
पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 21 अक्टूबर की तारीख तय की है. पीठ ने तीन कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय में दायर किसान संगठन की याचिका भी अपने यहां स्थानांतरित कर लिया.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पारित किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा सड़क बाधित किए जाने का जिक्र करते हुए पिछले हफ्ते गुरुवार को सवाल किया कि राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे किया जा सकता है. इसने कहा कि न्यायालय द्वारा बनाए गए कानून को लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है.
कई किसान संगठन तीन कानूनों- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के पारित होने का विरोध कर रहे हैं.
इन कानूनों का विरोध पिछले साल नवंबर में पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में मुख्य रूप से दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैल गया.
न्यायालय ने हरियाणा सरकार की अर्जी पर 40 से अधिक किसान संगठनों, नेताओं से जवाब मांगा
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 40 से अधिक किसान संगठनों और राकेश टिकैत, दर्शन पाल तथा गुरनाम सिंह सहित विभिन्न नेताओं को हरियाणा सरकार के उस आवेदन पर नोटिस जारी किए, जिसमें आरोप लगाया गया है कि वे दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों की नाकेबंदी का मुद्दा हल करने के लिए राज्य पैनल के साथ बातचीत में शामिल नहीं हो रहे हैं.
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने आवेदन का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दिया.
पीठ ने सवाल किया, ‘मिस्टर मेहता (सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता), आपने करीब 43 लोगों को पक्ष बनाया है. आप उन तक नोटिस कैसे भेजेंगे.’
मेहता ने कहा कि किसानों के नेतागण इस मामले में आवश्यक पक्ष हैं और वह सुनिश्चित करेंगे कि उन लोगों तक नोटिस की तामील हो. मेहता ने याचिका पर शुक्रवार यानी आठ अक्टूबर को सुनवाई का अनुरोध किया.
पीठ ने अगले सप्ताह शुरू हो रहे दशहरा अवकाश के ठीक बाद मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.
हरियाणा सरकार ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की जनहित याचिका में विभिन्न किसान संगठनों के पदाधिकारियों सहित 43 लोगों को पक्ष बनाने का अनुरोध किया है.
मोनिका अग्रवाल ने अपनी याचिका में शिकायत की है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन की वजह से सड़के अवरुद्ध होने से लोगों को आने जाने में असुविधा हो रही है.
द वायर ने पहले अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि पुलिस और सुरक्षा बलों ने किसानों को दिल्ली में आने से रोकने और अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया है. दूसरी ओर, प्रदर्शनकारियों ने शिविर इस तरह से लगाया है कि यातायात के लिए पर्याप्त जगह खाली हो सके, विशेषकर एम्बुलेंस और आवश्यक सेवाओं पर प्रदर्शन का प्रभाव न पड़े.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)