तंजानियाई लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह को मिला साहित्य का नोबेल पुरस्कार

इंग्लैंड में रहने वाले तंजानियाई मूल के अब्दुलरजाक गुरनाह यूनिवर्सिटी ऑफ केंट के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं. स्वीडिश अकादमी ने इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, 'सत्य के प्रति गुरनाह की निष्ठा और सरलीकरण को लेकर उनका विरोध अद्भुत है. उनके उपन्यास रूढ़िबद्ध विवरणों से परे हैं और सांस्कृतिक रूप से वैविध्यपूर्ण पूर्वी अफ्रीका को हमारे सामने लाते हैं, जिससे दुनिया के अन्य हिस्सों के लोग अपरिचित हैं.'

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अब्दुलरजाक गुरनाह. (फोटो साभार: British Council Literature/Mark Pringle)

इंग्लैंड में रहने वाले तंजानियाई मूल के अब्दुलरजाक गुरनाह यूनिवर्सिटी ऑफ केंट के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं. स्वीडिश अकादमी ने इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, ‘सत्य के प्रति गुरनाह की निष्ठा और सरलीकरण को लेकर उनका विरोध अद्भुत है. उनके उपन्यास रूढ़िबद्ध विवरणों से परे हैं और सांस्कृतिक रूप से वैविध्यपूर्ण पूर्वी अफ्रीका को हमारे सामने लाते हैं, जिससे दुनिया के अन्य हिस्सों के लोग अपरिचित हैं.’

अब्दुलरजाक गुरनाह (फोटो साभार: British Council Literature/Mark Pringle)

स्टॉकहोम: तंजानियाई लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह को इस वर्ष के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है.

स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि ‘उपनिवेशवाद के प्रभावों और संस्कृतियों वर महाद्वीपों बीच शरणार्थियों की स्थिति को बिना समझौता किए करुणा के साथ समझने’ में उनके योगदान के लिए पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है.

जांजीबार में 1948 में जन्मे और इंग्लैंड के ईस्ट ससेक्स में रहने वाले गुरनाह यूनिवर्सिटी ऑफ केंट के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं.

स्वीडिश एकेडमी ने इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, ‘सत्य के प्रति गुरनाह की निष्ठा और सरलीकरण को लेकर उनका विरोध अद्भुत है. उनके उपन्यास रूढ़िबद्ध विवरणों से परे हैं और सांस्कृतिक रूप से वैविध्यपूर्ण पूर्वी अफ्रीका को हमारे सामने लाते हैं, जिससे दुनिया के अन्य हिस्सों के लोग अपरिचित हैं.’

ब्रिटिश काउंसिल के अनुसार, वे वसाफिरी पत्रिका के एसोसिएट एडिटर रहे हैं. उन्होंने कुल 10 उपन्यास लिखे हैं.

उनके पहले तीन उपन्यास मेमोरी ऑफ डिपार्चर (1987), पिलग्रिम्स वे (1988) और डॉटी (1990) समकालीन ब्रिटेन में अप्रवासियों के अनुभवों का विभिन्न दृष्टिकोणों से दस्तावेजीकरण हैं. उनका चौथा उपन्यास पैराडाइज (1994) पहले विश्व युद्ध के दौरान औपनिवेशिक पूर्वी अफ्रीका के बारे में है. इसे फिक्शन श्रेणी में बुकर पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था.

इसके बाद आया एडमाइरिंग साइलेंस (1996) एक ऐसे युवक की कहानी है जो जांजीबार छोड़कर इंग्लैंड चला जाता है, जहां वह शादी करता है और एक शिक्षक बन जाता है. 20 साल बाद अपने देश की यात्रा ने उसे खुद के और उसके विवाह, दोनों के प्रति उसके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित करते हैं. बाय द सी (2001) इंग्लैंड के एक तटीय शहर में शरण मांगने वाले एक बुजुर्ग सालेह उमर की कहानी है.

2005 में आए उनके उपन्यास डेजर्शन को 2006 के कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था. 2007 में उन्होंने सलमान रुश्दी के लिए कैम्ब्रिज कम्पेनियन का संपादन किया था. 2011 में उनका उपन्यास द लास्ट गिफ्ट और 2020 में आफ्टरलाइव्स आया था.

बीबीसी के मुताबिक, 1986 में वोले शोयिंका के बाद से गुरनाह यह पुरस्कार जीतने वाले पहले अश्वेत अफ्रीकी लेखक हैं.

उन्होंने कहा कि उन्हें यह पुरस्कार मिलने का अर्थ है कि शरणार्थी संकट और उपनिवेशवाद जैसे मुद्दे, जिनका उन्हें अनुभव हुआ, उन पर चर्चा की जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘ये ऐसी चीजें हैं जो हर दिन हमारे साथ होती हैं. लोग मर रहे हैं, दुनिया भर में लोग कष्ट में हैं- हमें इन मुद्दों से बेहद उदार तरीके से निपटना चाहिए. जब मैं इंग्लैंड आया था, तब ‘असाइलम सीकर’ यानी शरण चाहने वाले- इन शब्दों के माने ऐसे नहीं थे, अब ज्यादा लोग संघर्ष कर रहे हैं, आतंकी देशों से भाग रहे हैं.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘दुनिया 1960 के दशक की तुलना में आज कहीं अधिक हिंसक हुई है, इसलिए अब उन देशों पर अधिक दबाव है जो सुरक्षित हैं. स्पष्ट तौर पर वे ज्यादा लोगों को आकर्षित भी करते हैं.’

2016 में दिए गए एक साक्षात्कार में जब उनसे पूछा गया कि क्या वह खुद को ‘उत्तर-औपनिवेशिक (पोस्ट-कोलोनियल) या विश्व साहित्य का लेखक’ कहेंगे, तो उनका जवाब था- ‘मैं ऐसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं करूंगा. मैं खुद को किसी भी तरह का लेखक नहीं कहूंगा. असल में मुझे यकीन नहीं है कि मैं अपने नाम के अलावा खुद को कुछ भी कहूंगा. मुझे लगता है कि अगर कोई मुझे चुनौती देता है, तो यह कहने का एक और तरीका होगा, ‘क्या आप इनमें … से एक हैं?’ मैं शायद ‘नहीं’ कहूंगा. सच कहूं तो मैं नहीं चाहता कि मेरे उस हिस्से का कोई आसान नाम  हो.’

साहित्य के लिए नोबेल समिति के अध्यक्ष एंडर्स ओल्सन ने उन्हें ‘दुनिया के उत्तर-औपनिवेशिक काल के सर्व प्रतिष्ठित लेखकों में से एक’ बताया है. इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के तहत एक स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (लगभग 11.4 लाख डॉलर राशि) प्रदान की जाएगी.

पिछले साल साहित्य का नोबेल पुरस्कार अमेरिकी कवयित्री लुइस ग्लूक को दिया गया था.

गौरतलब है कि नोबेल समिति ने सोमवार को चिकित्सा के लिए, मंगलवार को भौतकी के लिए और बुधवार को लिए रसायन विज्ञान के लिए विजेताओं के नाम की घोषणा की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)