केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और तीन अन्य को पांच अक्टूबर 2020 को हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय गिरफ़्तार किया गया था. केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अवमानना याचिका में आरोप लगाया गया है कि उचित चिकित्सीय देखभाल की कमी की वजह से कप्पन बीमार हैं और वे गंभीर दर्द से जूझ रहे हैं.
नई दिल्लीः एक साल पहले केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन और तीन अन्य को पांच अक्टूबर 2020 को उस समय गिरफ्तार किया गया था, जब ये लोग उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले की रिपोर्टिंग करने उसके गांव जा रहे थे.
रिपोर्ट के अनुसार, इतने लंबे समय से जेल में रहने के बावजूद कप्पन को सही तरीके से इलाज नहीं मिल पा रहा है. इस संबंध में केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) ने कप्पन को उचित इलाज मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की हैं.
केयूडब्ल्यूजे ने छह अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि उचित चिकित्सीय देखभाल की कमी की वजह से कप्पन बीमार हैं, उनके मनोबल में कमी आई है और वे गंभीर दर्द से जूझ रहे हैं.
इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 28 अप्रैल को पारित एक आदेश का उल्लेख किया गया है, जिसमें यूपी सरकार को कप्पन को उचित और प्रभावी मेडिकल सहायता मुहैया कराने और उनकी स्वास्थ्य संबंधी सभी आशंकाओं को दूर करने का निर्देश दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि कप्पन को मेडिकल इलाज के लिए मथुरा जेल से दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि कप्पन को अस्पताल से डिस्चार्ज करने और उसे दोबारा मथुरा जेल भेजने के लिए पहली आवश्यकता उनका बीमारी से उबरना है.
केयूजब्ल्यूजे ने याचिका में कहा है कि जब वह कोरोना संक्रमित थे तो उन्हें एम्स से डिस्चार्ज किया गया था और दांत संबंधी समस्याओं और अन्य गंभीर मेडिकल स्थितियों के साथ उनका शुगर लेवल भी बहुत अधिक था.
याचिका में कहा गया कि छह मई की आधी रात को उन्हें डिस्चार्ज कर उन्हें उनके सोने के अधिकार से वंचित किया गया जो अदालत की अवमानना के समान है.
याचिका में कहा गया, ‘आरोपी को अभी भी मेडिकल सहायता की जरूरत है लेकिन उससे उसे महरूम रखा गया और इलाज में देरी से अपूरणीय क्षति होगी.’
याचिका में कहा गया कि नौ मई और 25 मई को दो नोटिस दिए जाने के बावजूद अधिकारियों ने इस संबंध में कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया और इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उन्होंने जानबूझकर कोई कदम नहीं उठाया.
याचिका में कहा गया, ‘उन्हें अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरूरत है, वह दर्द में हैं. याचिकाकर्ता मथुरा जेल और अदालतों से मेडिकल मुद्दे सुलझाने के लिए भरकस कोशिश कर रहा है लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं है इसलिए याचिकाकर्ता मौजूदा अवमानना याचिका को दायर कर रहा है.’
याचिका में मथुरा जेल के वरिष्ठ अधीक्षक, उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के दो विशेष सचिवों, यूपी सरकार के मुख्य सचिव और यूपी पुलिस महानिदेशक के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की मांग की.
याचिका के मुताबिक, ‘कप्पन के वकील को अभी तक 5,000 पेज की चार्जशीट की कॉपी मुहैया नहीं कराई गई है जबकि यह चार्जशीट अप्रैल में दायर की गई थी.’
यूपी सरकार के अधिकारियों द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करने के लिए चार्जशीट जरूरी है. इसी चार्जशीट के आधार पर कप्पन की जमानत याचिका खारिज की गई थी.
बता दें कि यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने तीन अप्रैल को दायर चार्जशीट में कप्पन और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडियाज स्टूडेंट इकाई के नेता केए रउफ शेरिफ सहित मथुरा की अदालत में आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी. इन पर राजद्रोह, आपराधिक साजिश, आतंकी गतिविधियों की फंडिगं और अन्य अपराधों के आरोप लगाए गए थे.
चार्जशीट में दर्ज अन्य नाम अतीकुर रहमान, मोहम्मद दानिश, आलम, मसूद अहमद, फिरोज खान और असद बदरुद्दीन हैं.
आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 153(ए) (विभिन्न समूहों के बीच धर्म, जाति, जन्म, स्थान और भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना), 124(ए) (राजद्रोह), 295(ए) (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से काम करना) और 120(बी) (आपराधिक साजिश रचने) के तहत आरोप लगाए हैं.
मालूम हो कि कप्पन और तीन अन्य को पिछले साल पांच अक्टूबर को उस समय गिरफ्तार किया गया था, जब ये लोग हाथरस में एक युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में उसके गांव जा रहे थे.
उनकी गिरफ्तारी के दो दिन बाद यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह और यूएपीए के तहत विभिन्न आरोपों में अन्य मामला दर्ज किया था.
यूएपीए के तहत दर्ज मामले में आरोप लगाया गया था कि कप्पन और उनके सह-यात्री हाथरस सामूहिक बलात्कार-हत्या मामले के मद्देनजर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे.
बाद में मथुरा की स्थानीय अदालत ने केरल के कप्पन और तीन अन्य लोगों को शांति भंग करने के आरोप से बीते 15 जून को मुक्त कर दिया था, क्योंकि पुलिस इस मामले की जांच तय छह महीने में पूरी नहीं कर पाई. बीते जुलाई महीने में एक निचली अदालत ने कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.