राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई थी कि यह बाल विवाह को वैध कर देगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि इस विधेयक को अध्ययन के लिए क़ानूनविदों को दिया जाएगा और उनकी सलाह के आधार पर इसे आगे बढ़ाने या न बढ़ाने का फ़ैसला किया जाएगा.
नई दिल्ली: राजस्थान सरकार ने विवादित ‘राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021’, जिसे बाल विवाह को वैध करने के रूप में देखा जा रहा था, को वापस ले लिया है. एनडीटीवी ने एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है.
इससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते सोमवार को कहा था कि विधानसभा में हाल ही पारित ‘राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधयेक 2021’ पर पुन:विचार के लिए वे राज्यपाल से उसे वापस भेजने का अनुरोध करेंगे.
उन्होंने कहा कि इस विधेयक को अध्ययन के लिए कानूनविदों को दिया जाएगा और उनकी सलाह के आधार पर इसे आगे बढ़ाने या नहीं बढ़ाने का फैसला किया जाएगा.
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर ‘नन्हे हाथ कलम के साथ’ अभियान के तहत एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गहलोत ने कहा, ‘इस कानून पर पूरे देश में विवाद हुआ कि इससे बाल विवाह को प्रोत्साहन मिलेगा. यह हमारे लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं है, हमने इसे वापस मांगने का निर्णय किया है. हम कानून विशेषज्ञों से इस पर फिर से सलाह लेने के लिए राज्यपाल से विधेयक वापस लौटाने का अनुरोध करेंगे.’
विवाहों के अनिवार्य पंजीयन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की भावना के अनुरूप ही राजस्थान विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण (संशोधन) विधेयक,2021 लाया गया है।परंतु बाल विवाह को लेकर जो गलत धारणा बन गयी है,तो हम बिल को माननीय राज्यपाल महोदय से अनुरोध करेंगे कि इसे सरकार को पुनः लौटा दें
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) October 11, 2021
उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार का संकल्प है कि राजस्थान में किसी भी कीमत पर बाल विवाह नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘इस पर कोई समझौता नहीं होगा और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं.’
उन्होंने कहा, ‘उसका (विवाह पंजीकरण कानून) फिर से अध्ययन करेंगे, उसके बाद तय करेंगे कि उसे आगे बढ़ाना है या नहीं. हमें कोई दिक्कत नहीं है. विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने का फैसला उच्चतम न्यायालय का था, उसी आधार पर कानून बनाया गया.’
इससे पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र को पत्र लिखकर ‘राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021’ पर चिंता प्रकट की थी और कहा कि यह बाल विवाह को वैध बनाता है और नाबालिगों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
एनसीपीसीआर ने यह भी कहा कि विधेयक में इसका प्रावधान है कि विवाह पंजीकरण अधिकारी के माध्यम से उस स्थान पर बाल विवाह का पंजीकरण किया जाएगा, जहां दोनों 30 से अधिक दिनों से रह रहे होंगे. आयोग के अनुसार, यह विधेयक राजस्थान में बाल विवाह को वैध ठहराता है.
इसके अलावा बाल विवाहों पर काम करने वाले एनजीओ सारथी ट्रस्ट की एक कार्यकर्ता कृति भाटी ने इस विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है.
मालूम हो कि बीते सितंबर महीने में ध्वनिमत से पारित विधेयक में बाल विवाह के मुद्दे को यह कहते हुए शामिल किया गया है कि यदि 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के बीच विवाह होता है, तो ऐसे में शादी के 30 दिनों के भीतर माता-पिता या अभिभावकों द्वारा इसका पंजीकृत कराया जा सकता है.
इसमें यह भी कहा गया है कि दूल्हा और दुल्हन उस स्थान के विवाह पंजीकरण अधिकारी को पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं, जहां वे 30 दिनों से अधिक समय से रह रहे थे.
सदन में राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 का बचाव करते हुए संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा था कि प्रस्तावित कानून विवाह के पंजीकरण की अनुमति देता है, लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि ऐसी शादियां अंततः वैध हो जाएंगी.
मंत्री ने सदन को यह भी बताया था कि उच्चतम न्यायालय ने साल 2006 में सीमा बनाम अश्विनी कुमार मामले में निर्देश दिया था कि सभी प्रकार के विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए.
इसे लेकर कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया था कि जहां संशोधन विवाहित नाबालिगों और उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों की रक्षा करेगा, वहीं सरकार को बाल विवाह करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में स्पष्ट करने की जरूरत है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)