कर्नाटक पुलिस ने हाईकोर्ट द्वारा संगठित अपराध की धाराएं लगाने के फ़ैसले को ख़ारिज करने के ख़िलाफ़ अपील करने की गुहार लगाई थी, लेकिन इस मामले में राज्य की भाजपा सरकार ने ढीला रवैया अपनाए रखा. बाद में गौरी लंकेश की बहन कविता ने इसके ख़िलाफ़ अपील दायर की थी.
नई दिल्ली: पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या मामले में एक आरोपी के खिलाफ संगठित अपराध की धाराएं लगाने के फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने के बाद कर्नाटक सरकार ने इसके खिलाफ अपील दायर करने में देरी की थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत मिले जवाब से पता चलता है कि राज्य पुलिस ने अपील करने की गुहार लगाई थी, लेकिन इस मामले में राज्य की भाजपा सरकार ने ढीला रवैया अपनाए रखा.
इसके कारण 90 दिनों के भीतर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील करने की समयसीमा समाप्त हो गई थी.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इसी साल 22 अप्रैल को मोहन नायक नामक आरोपी के विरुद्ध कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (ककोका या केसीओसीए) के तहत जांच की मंजूरी देने संबंधी 14 अगस्त 2018 का पुलिस आदेश को निरस्त कर दिया था.
नायक पर विभिन्न चरमपंथी हिंदू संगठनों से जुड़े अन्य लोगों के साथ मिलकर लंकेश की हत्या की योजना बनाने में मदद करने का आरोप है.
बाद में जब लंकेश की बहन कविता लंकेश ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तब ये मामला शीर्ष अदालत के संज्ञान में आया और इस पर विचार करने के बाद न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को बीते गुरुवार को रद्द कर दिया.
कविता लंकेश द्वारा 10 जून को याचिका दायर करने के बाद कर्नाटक सरकार ने भी 26 जुलाई को हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी.
हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों में एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दाखिल करने की 90 दिन की समयसीमा इस मामले में 22 जुलाई को समाप्त हो गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु पुलिस द्वारा अपील दायर करने की कोशिशों के बावजूद राज्य के गृह विभाग ने इस केस में ढीला रवैया अपनाए रखा. उस समय राज्य के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई थे, जो बाद में 28 जुलाई को मुख्यमंत्री बने थे.
बेंगलुरु पुलिस द्वारा दिए एक आरटीआई जवाब से पता चलता है कि मामले के विशेष जांच दल (एसआईटी) को 26 अप्रैल, 2021 को विशेष लोक अभियोजक से एक रिपोर्ट मिली थी, जिसमें कहा गया था कि 22 अप्रैल के उच्च न्यायालय का आदेश सर्वोच्च न्यायालय में अपील किए जाने के लिए उपयुक्त है.
इसके बाद तीन मई को एसआईटी के अधिकारियों ने राज्य के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय को पत्र लिखकर कहा कि मामला संवेदनशील और गंभीर है और उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जानी चाहिए.
इसी तरह राज्य के गृह विभाग द्वारा 18 अगस्त को दिए गए एक आरटीआई जवाब से पता चलता है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) रजनीश गोयल की अध्यक्षता वाली एक विशेष समिति- जो सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर करने का फैसला करती है- ने आठ जून को हुई एक बैठक में कहा था कि कि ‘ये मामला गंभीर और संवेदनशील है, इस पर महाधिवक्ता की राय लेना उचित होगा.’
इसके बाद नौ जुलाई को समिति ने इस मुद्दे को फिर से उठाया और यह बताया गया कि कर्नाटक गृह सचिव को राज्य के महाधिवक्ता ने कहा था कि पैनल इस मामले पर फैसला कर सकता है. नतीजतन, समिति ने फैसला किया कि सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जाए.
हालांकि तब तक गौरी लंकेश की बहन ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दिया था.
कविता की याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट ने धारा 24 केसीओसीए की जांच नहीं करके गलती की. इसमें कहा गया है कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद से नीचे के किसी भी अधिकारी को पूर्व मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.
याचिका में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट इस तथ्य को समझने में असफल रहा कि धारा 24 (2) केसीओसीए के तहत मंजूरी आदेश को चुनौती नहीं दी गई और केवल धारा 24 (1) (ए) के तहत आदेश को चुनौती दी गई है.
कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा आरोपपत्र रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर ने भी कहा था कि इस पर एक बहुत ही गंभीर आदेश पारित किया जाना चाहिए था, आरोपपत्र का विश्लेषण किए बिना उसे रद्द किया गया.
गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच कर रही एसआईटी ने अब तक इस मामले में 17 लोगों को गिरफ्तार किया है और ये सभी लोग अति दक्षिणपंथी हिंदू समूहों से जुड़े हुए हैं.
गौरतलब है कि पांच सितंबर, 2017 को उनके बेंगलुरु स्थित घर के पास ही लंकेश को रात करीब 8:00 बजे गोली मार दी गई थी. उन्हें हिंदुत्व के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखने के लिए जाना जाता था.