तवांग बौद्धमठ के प्रमुख ने कहा- चीन को अगला दलाई लामा चुनने का कोई हक़ नहीं

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन की सीमा से सटे क़रीब 350 साल पुराने बौद्धमठ के प्रमुख ग्यांगबुंग रिनपोचे ने कहा कि चीन की सरकार धर्म में विश्वास ही नहीं करती है. जो किसी धर्म में विश्वास नहीं करते, वे अगला दलाई लामा कैसे तय कर सकते हैं. उत्तराधिकार राजनीति नहीं, धर्म और आस्था का मामला है. केवल वर्तमान दलाई लामा और उनके अनुयायियों को ही इस पर फ़ैसला करने का हक़ है.

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तवांग बौद्धमठ. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन की सीमा से सटे क़रीब 350 साल पुराने बौद्धमठ के प्रमुख ग्यांगबुंग रिनपोचे ने कहा कि चीन की सरकार धर्म में विश्वास ही नहीं करती है. जो किसी धर्म में विश्वास नहीं करते, वे अगला दलाई लामा कैसे तय कर सकते हैं. उत्तराधिकार राजनीति नहीं, धर्म और आस्था का मामला है. केवल वर्तमान दलाई लामा और उनके अनुयायियों को ही इस पर फ़ैसला करने का हक़ है.

तवांग बौद्धमठ. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

तवांग (अरुणाचल प्रदेश): अरुणाचल प्रदेश के तवांग बौद्धमठ के प्रमुख ने कहा है कि चीन को अगले दलाई लामा को चुनने में शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है, खासकर इसलिए कि वह धर्म में विश्वास ही नहीं करता तथा उत्तराधिकारी का चयन करना पूर्ण रूप से तिब्बती लोगों का आध्यात्मिक मामला है.

चीन की सीमा से सटे करीब 350 साल पुराने बौद्धमठ के प्रमुख ग्यांगबुंग रिनपोचे ने यह भी कहा कि चीन की विस्तारवादी नीति का विरोध करना जरूरी है तथा भारत को इस पड़ोसी देश से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए.

एलएसी पर चीन के आक्रामक रवैये की ओर इशारा करते हुए रिनपोचे ने समाचार एजेंसी पीटीआई से साक्षात्कार के दौरान कहा कि भारत शांति एवं समृद्धि में विश्वास करता है, लेकिन इस तरह के आक्रामक रुख से निपटने के लिए उसे जमीनी हालात के आधार पर अपना दृष्टिकोण तय करना चाहिए.

दुनिया में तिब्बत के ल्हासा के पोताला महल के बाद दूसरे सबसे बड़े बौद्धमठ के प्रमुख ने कहा कि केवल वर्तमान दलाई लामा एवं तिब्बती लोगों को ही तिब्बती आध्यात्मिक नेता के उत्तराधिकारी के बारे में फैसला करने का अधिकार है तथा चीन की इसमें कोई भूमिका नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘चीन की सरकार धर्म में विश्वास ही नहीं करती है. जो सरकार किसी धर्म में विश्वास नहीं करती है , वह कैसे अगला दलाई लामा तय कर सकती है. उत्तराधिकार योजना धर्म और आस्था का मामला है, यह थोड़े ही कोई राजनीतिक मामला है.’

रिनपोचे ने कहा, ‘चीन को अगले दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया में शामिल होने का कोई हक नहीं है. केवल वर्तमान दलाई लामा और उनके अनुयायियों को ही इस मुद्दे पर फैसला करने का अधिकार है.’

तवांग बौद्धमठ के प्रमुख का बयान पूर्वी लद्दाख सीमा पर भारत एवं चीन के बीच गतिरोध के बीच आया है. यह बौद्धमठ जिस क्षेत्र में है उस पर चीन अपना दावा करता है . हालांकि, भारत का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश उसका अभिन्न एवं अविभाज्य अंग है.

रिनपोचे ने कहा कि तिब्बती लोग इस मुद्दे पर चीन के किसी भी फैसले को कभी स्वीकार नहीं करेंगे और इसमें शामिल होने का उसका प्रयास तिब्बती धरोहर पर ‘कब्जा करने’ तथा तिब्बती लोगों पर ‘नियंत्रण रखने’ की कोशिश का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, ‘तिब्बत के लोगों का दिल जीतना चीन के लिए मुश्किल है. चीन सख्ती से तिब्बत को नियंत्रित कर रहा है. प्रशासन बाहर के लोगों को तिब्बतियों से मिलने भी नहीं दे रहा है. वहां कई पाबंदियां है. ऐसे में जरूरी है कि भारत जैसे देश तिब्बितयों का साथ दें.’

चौदहवें दलाई लामा के जुलाई में 86 वर्ष के होने के बाद से उनके उत्तराधिकारी के मुद्दे ने ध्यान आकर्षित किया है, जो वर्ष 1959 से भारत के धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं. माना जाता है कि दलाई लामा बुद्ध का जीवित रूप हैं, जो उनकी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेते हैं.

चीन इस बात पर जोर दे रहा है कि अगले दलाई लामा का चयन चीनी क्षेत्र में ही किया जाना चाहिए और उसे इस बारे में बोलने का अधिकार है.

एलएसी पर चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए रिनपोचे ने कहा कि हालांकि भारत शांति और समृद्धि में विश्वास करता है, लेकिन इस तरह के रवैये से निपटने के लिए उसका दृष्टिकोण जमीनी हकीकत पर आधारित होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘भारत को किसी भी देश के खिलाफ लड़ना या नफरत करना पसंद नहीं है. भारत उन देशों के साथ शांति से रहने में विश्वास करता है, जिनकी सीमा इससे लगती है. भारत को सीमा पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है. हालांकि भारत शांति में भरोसा करता है, लेकिन उसका दृष्टिकोण जमीनी हकीकत पर आधारित होना चाहिए. तवांग और लद्दाख जैसे क्षेत्र भारत का हिस्सा हैं.’

धर्मगुरु ने कहा कि चीन की विस्तारवाद की नीति का मुकाबला करना महत्वपूर्ण है.

पूर्व में बीजिंग द्वारा दलाई लामा पर ‘अलगाववादी’ गतिविधियों में शामिल होने और तिब्बत को विभाजित करने के प्रयास करने का आरोप लगाया गया है और वह उन्हें एक ‘विभाजनकारी’ शख्स के रूप में देखता है.

हालांकि, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जोर देकर कहा है कि वह ‘मध्य-मार्ग रवैये’ के तहत आजादी नहीं बल्कि ‘तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों में रहने वाले सभी तिब्बतियों के लिए ‘वास्तविक स्वायत्तता’ की मांग कर रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि साल 2010 के बाद से चीनी सरकार के अधिकारी और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच में किसी तरह की कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)