केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने एनडीपीएस एक्ट में संशोधन का सुझाव दिया है, ताकि उन लोगों का इलाज किया जा सके जो ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं या पीड़ितों के रूप में ड्रग्स पर निर्भर हैं. सिफ़ारिश में कहा गया है कि ऐसे लोगों को जेल की सज़ा नहीं नशामुक्ति और पुनर्वास केंद्र भेजा जाना चाहिए.
नई दिल्लीः केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले और इसके आदी लोगों को जेल से बचाने के लिए अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दिन पहले भेजी गई सिफारिश में मंत्रालय ने निजी इस्तेमाल के लिए कम मात्रा में ड्रग्स रखने को अपराधमुक्त करने की मांग की है.
मंत्रालय ने इसके लिए नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (एनडीपीएस) एक्ट में संशोधन का सुझाव दिया है, ताकि उन लोगों का इलाज किया जा सके जो ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं या पीड़ितों के रूप में ड्रग्स पर निर्भर है.
सिफारिश में कहा गया है कि ऐसे लोगों को नशामुक्ति और पुनर्वास केंद्र के लिए भेजा जाना चाहिए, न कि उन्हें जेल की सजा दी जानी चाहिए.
पिछले महीने एनडीपीएस एक्ट के नोडल प्रशासनिक प्राधिकरण राजस्व विभाग ने गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और सीबीआई सहित कई मंत्रालयों और विभागों से कानून में बदलाव का सुझाव देने के लिए कहा था.
इस संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने राजस्व विभाग को अपने सुझाव भेजे हैं.
भारत में नशीले पदार्थों का सेवन या उन्हें रखना अपराध है. मौजूदा समय में एनडीपीएस एक्ट ड्रग्स के आदी लोगों के प्रति सुधारात्मक रवैया अपनाता है. यह ड्रग्स का इस्तेमाल करने वालों और उन पर निर्भर लोगों को कानून और दोषी पाए जाने पर जेल से छूट देता है, अगर वे इलाज और पुनर्वास के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं.
हालांकि, पहली बार ड्रग्स का इस्तेमाल करने वालों या शौकिया तौर पर इसे लेने वालों के लिए इस तरह की किसी छूट का कोई प्रावधान नहीं है.
उदाहरण के लिए एनडीपीएस एक्ट की धारा 27 में किसी भी मादक पदार्थ या साइकोट्रोपिक पदार्थ के सेवन के लिए एक साल तक की कैद या 20,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. यह ड्रग्स के आदी लोगों, पहली बार ड्रग्स लेने वालों और शौक के तौर पर लेने वालों के बीच कोई अंतर नहीं करता है.
यह उन प्रावधानों में से एक है, जिसके लिए मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि सरकार द्वारा संचालित पुनर्वास और परामर्श केंद्रों में कम से कम 30 दिनों के लिए जेल की अवधि और जुर्माने को अनिवार्य रूप से इलाज कराने में बदल दिया जाए.
एनडीपीएस एक्ट की धारा 27 का इस्तेमाल कई हाई-प्रोफाइल मामलों में किया गया है, जिसमें क्रूज ड्रग्स मामले में अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी भी शामिल है.
विभिन्न ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ रखने के लिए सजा से निपटने वाली धाराओं के मामले में मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि कानून कम मात्रा (केवल निजी इस्तेमाल के लिए) के साथ पकड़े गए लोगों को जेल की सजा से बाहर किया जाए. उनके लिए सरकारी केंद्रों में अनिवार्य इलाज की भी सिफारिश की गई है.