एक स्वतंत्र गैर लाभकारी संगठन कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने एक सितंबर 2011 से 31 अगस्त 2021 के बीच दुनियाभर में मारे गए 278 पत्रकारों की सूची तैयार की है. रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से 226 हत्याएं या तो बिना सुलझी रही या इनमें दोषी आज़ाद घूम रहे हैं. इस सूची में भारत 12वें स्थान पर है.
नई दिल्लीः अंतरराष्ट्रीय संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की वार्षिक ग्लोबल इंप्यूनिटी इंडेक्स 2021 से पता चला है कि बीते दस सालों में पत्रकारों की हत्या के 81 फीसदी मामलों में किसी को भी आरोपी नहीं ठहराया गया है.
दुनियाभर में प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाली एक स्वतंत्र गैर लाभकारी संगठन सीपीजे ने एक सितंबर 2011 से 31 अगस्त 2021 के बीच दुनियाभर में मारे गए 278 पत्रकारों की सूची तैयार की है.
रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से 226 हत्याएं या तो बिना सुलझी रही या इनमें दोषी आजाद घूम रहे हैं. सीपीजे ने कहा कि ये पत्रकार भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, चरमपथी समूहों और राजनीतिक प्रतिशोध मे मारे गए.
रिपोर्ट से पता चला है कि पत्रकारों की हत्या के अनसुलझे मामलों में सोमालिया लगातार सातवें साल सबसे खराब देश बना हुआ है.
सीपीजे की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘इसके बाद सीरिया, इराक और दक्षिण सूडान है. जवाबदेही की कमी को दर्शाने वाली इस सूची में सात देश हमेशा नजर आते हैं.’
इस सूची में भारत 12वें स्थान पर है, जहां पत्रकारों की हत्या के 20 मामले अनसुलझे हैं. भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी इस सूची में हैं. इन सभी की स्थिति भारत से बदतर है.
जिन देशों में पत्रकारों की हत्या से जुड़े मामलों में कुछ लोगों को दोषी ठहराया गया है, उनमें मेक्सिको है, जहां जेवियर वाल्देज कार्डेनस और मीरोस्लावा ब्रीच वेल्डुसीया की हत्याओं को लेकर दोषियों को सजा दी गई है.
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘उदाहरण के लिए, इस सूची में अफगानिस्तान के स्थान में कोई बदलाव नहीं आया है लेकिन अमेरिकी फौजों की अफगानिस्तान से रवानगी के बाद वहां के मीडिया परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. अफगानिस्तान की न्यायिक प्रणाली ध्वस्त हो गई है. बीते 10 सालों में मारे गए 17 पत्रकारों के लिए न्याय की संभावनाएं पहुंच से बाहर हो गई हैं.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)