इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में त्रिपुरा, असम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.
अगरतला/गुवाहाटी/कोहिमा/इम्फाल/शिलॉन्ग/ईटानगर: त्रिपुरा में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की खबरों के बीच त्रिपुरा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार को इन घटनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस सुभाशीष तलपात्रा ने त्रिपुरा सरकार से राज्य में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं और सोशल मीडिया पर की गई सांप्रदायिक पोस्ट को लेकर की गई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट 10 नवंबर तक दाखिल करने को कहा है.
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने कहा, ‘हम राज्य को ऐसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह क झूठे, काल्पनिक और मनगढ़ंत खबरों, तस्वीरों या वीडियो को प्रसारित नहीं किया जाए और अगर इन्हें प्रसारित किया जाताा है तो इन्हें जल्द से जल्द हटाया जाए. हाईकोर्ट आज से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी जिम्मेदारी से कार्य करने का आह्वान करता है. मीडिया को अपनी गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में सच्चाई को प्रकाशित करने का पूरा अधिकार है लेकिन इसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने या झूठ फैलाने के लिए इस्तेमाल नहीं करने दिया जाना चाहिए.’
हाईकोर्ट ने यह तब कहा, जब राज्य सरकार ने शुक्रवार को यह बताया कि धार्मिक स्थलों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों से जुड़े स्थानों पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है और फर्जी सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं.
त्रिपुरा सरकार ने भी यह कहा है कि बाहर से निहित स्वार्थों वाले कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर जलती हुई मस्जिद की फर्जी तस्वीर अपलोड कर राज्य में अशांति फैलाने और छवि खराब करने की साजिश रची थी. इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया था और नौ अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे.
सूचना एवं संस्कृति मंत्री सुशांता चौधरी ने कहा कि पुलिस को जांच में पता चला है कि उत्तरी त्रिपुरा के पानीसागर में कई भी मस्जिद नहीं जलाई गई, जैसा कि सोशल मीडिया पोस्ट दावा किया गया है.
चौधरी ने वीडियो संदेश में कहा, ‘पानीसागर में किसी भी मस्जिद को जलाने की कोई घटना नहीं हुई थी. त्रिपुरा में अशांति पैदा करने और राज्य के सभी वर्गों के लोगों के विकास की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले लोगों के समूह द्वारा 26 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर फेक न्यूज अपलोड की गई थी.’
राहुल गांधी ने कहा- मुसलमानों से क्रूरता हो रही, सरकार कब तक करेगी अंधी-बहरी होने का नाटक
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को दावा किया कि त्रिपुरा में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ क्रूरता हो रही है. उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आखिर सरकार कब तक अंधी-बहरी होने का नाटक करती रहेगी?
त्रिपुरा में हमारे मुसलमान भाइयों पर क्रूरता हो रही है। हिंदू के नाम पर नफ़रत व हिंसा करने वाले हिंदू नहीं, ढोंगी हैं।
सरकार कब तक अंधी-बहरी होने का नाटक करती रहेगी? #TripuraRiots
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 28, 2021
कांग्रेस सांसद ने ट्वीट कर कहा, ‘त्रिपुरा में हमारे मुसलमान भाइयों पर क्रूरता हो रही है. हिंदू के नाम पर नफ़रत व हिंसा करने वाले हिंदू नहीं, ढोंगी हैं. सरकार कब तक अंधी-बहरी होने का नाटक करती रहेगी?’
राहुल गांधी ने यह ट्वीट उस समय किया है जब पिछले कुछ दिनों से त्रिपुरा हिंसा से कथित तौर पर संबंधित तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे हैं.
उधर, उत्तर त्रिपुरा जिले के पानीसागर उपमंडल के चमटीला में विश्व हिंदू परिषद् की एक रैली के दौरान एक मस्जिद में तोड़फोड़ की घटना के दो दिनों बाद त्रिपुरा पुलिस ने बृहस्पतिवार को लोगों से अपील की कि घटना के बारे में अफवाह व फर्जी तस्वीरें नहीं फैलाएं.
पुलिस ने कहा कि किसी भी मस्जिद में आग नहीं लगाई गई जैसा कि सोशल मीडिया में फर्जी तस्वीरें पोस्ट की जा रही हैं.
असमः मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा ने कहा- इस साल असम में जनगणना होनी चाहिए
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार चाहती है कि असम में देश के बाकी हिस्सों के साथ ही इस साल जनगणना की जाए.
इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूछे जाने पर कि क्या असम में इस साल जनगणना को एक साल टालने का कदम उठाया गया है, इस पर मुख्यमंत्री ने मीडियाकर्मियों को बताया, ‘मुझे अभी तक भारत के महापंजीयक (आरजीआई) से कोई संदेश नहीं मिला है. हमने जनगणना के लिए पहले ही निदेशकों को तैनात कर दिया है. एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश हैं. एनआरसी और जनगणना के बीच कोई संबंध नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘असम सरकार का आधिकारिक रुख है कि राज्य में जनगणना होनी चाहिए.’
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 25 मार्च 2020 को पीआईबी द्वारा भेजे गए बयान में कहा कि जनगणना 2021 दो चरणों में होनी थी.
पहले चरण के तहत अप्रैल-सितंबर 2020 के दौरान हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग जनगणना और दूसरे चरण के दौरान नौ फरवरी से 28 फरवरी 2021 तक जनसंख्या गणना का काम होना था.
एनपीआर अपडेट करना का काम असम को छोड़कर सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में पहले चरण की जनगणना 2021 में होनी थी.
मणिपुरः मानवाधिकार आयोग करेगा सामाजिक कार्यकर्ता अबोनमाई की मौत की जांच शुरू
मणिपुर मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) तामेंगलोंग जिले में आदिवासी आधारित स्थानीय परिषद जेलियांग्रोंग बाउडी के पूर्व अध्यक्ष अथुआन अबोनमाई के कथित अपहरण और हत्या की जांच के लिए तैयार है.
नॉर्थईस्ट नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक, नगालैंड के संदिग्ध विद्रोहियों ने 22 सितंबर की रात को तामेंगलोंग जिले में अबोनमाई का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी थी.
उनका शव 22 सितंबर की रात को मणिपर के तामेनलोंग-तामेई रोड से बरामद किया गया था.
यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपा गया था. ऐसा माना गया कि हत्यारे नगालैंड स्थित सशस्त्र संगठन के सदस्य हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एमएचआरसी सूत्रों का कहना है कि अबोनमाई की पत्नी 12 अक्टूबर को आयोग आई थीं और उन्हें पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया गया था.
इससे पहले एमएचआरसी ने जांच करने का फैसला करते हुए कहा था कि इस जांच के नतीजों को सरकार के जरिये एनआईए को सौंपा जाएगा.
बता दें कि अथुआन अबोनमाई 22 सितंबर को एक सरकारी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी मौजदू थे. तामेंगलोंग में अज्ञात बदमाशों द्वारा उनके अपहरण की खबरों के बाद उनका शव पालोंग गांव के पास बरामद हुआ था.
मुख्यमंत्री के दौरे के मद्देनजर भारी सुरक्षा इंतजामों के बावजूद यह घटना होने पर व्यापक आलोचना हुई थी, जिसे लेकर मुख्यमंत्री सिंह ने पुलिस की लापरवाही को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी थी.
इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए प्रभारी अधिकारी सहित 16 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था और जिले के पुलिस अधीक्षक और उपायुक्त दोनों का ट्रांसफर कर दिया गया था. इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
मेघालयः राज्य सरकार ने शिलॉन्ग की सिख कॉलोनी का अधिग्रहण किया
मेघालय सरकार ने राजधानी शिलॉन्ग में दलित सिखों की कॉलोनी पर कब्जा कर लिया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के शहरी मामलों के मंत्रालय ने शुक्रवार को 12,444.13 वर्गमीटर की विवादित जमीन को स्वीकार कर लिया.
राज्य सरकार ने जमीन पर कब्जे के लिए इस साल की शुरुआत में माइलीम के सिएम और शिलॉन्ग नगर बोर्ड के साथ लीज डीड की थी.
राज्य के उपमुख्यमंत्री और हरिजन कॉलोनी पर उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष प्रेस्टोन तिनसॉन्ग ने कहा कि राज्य की कैबिनेट सरकार के इस कदम के प्रभाव पर चर्चा करेगी.
उन्होंने कहा, ‘कॉलोनी बसाने वालों को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम उनके खिलाफ हैं. हम उन्हें बाहर नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें उचित स्थान पर शिफ्ट किया जाएगा.’
तिनसॉन्ग ने यह भी कहा कि अगर कॉलोनी बसाने वाले अदालत में रिलोकेशन को चुनौती देते हैं तो सरकार कॉलोनी के अधिग्रहण का बचाव करेगी.
उन्होंने इलाके के सौंदर्यीकरण की सरकार की योजनाओं पर कहा कि हरिजन कॉलोनी किसी झुग्गी से भी बदतर है और रहने लायक नहीं है.
सरकार का दावा है कि यह विवादित जमीन शहरी मामलों के विभाग से जुड़ी है. वहीं, सिखों का कहना है कि यह जमीन उन्हें 1850 में खासी हिल्स के प्रमुखों में से एक हिमा माइलीम ने उपहार में दी थी. आज माइलीम खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के तहत 54 पारंपरिक प्रशासनिक क्षेत्रों में से एक है और पंजाबी लेन इसका हिस्सा है.
कॉलोनी के नेता गुरजीत सिंह ने कहा, ‘जब हमारा मामला मेघालय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो सरकार इस तरह का कदम कैसे उठा सकती है. हम लड़ेंगे.’
नगालैंडः महिला आयोग ने कहा- राज्य में घरेलू हिंसा के मामले में बढ़ोतरी
नगालैंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ख्रीनुओ ताचू ने राज्य में लैंगिक आधार पर हिंसा की चौंकाने वाली दर को लेकर चिंता जताई.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों को लेकर आयोजिक वर्चुअल बैठक को संबोधित करते हुए ताचू ने कहा कि लैंगिक आधार पर हिंसा में बढ़ोतरी हुई है.
उन्होंने यह उल्लेख किया कि शहरी और ग्रामीण दोनों पृष्ठभूमि से जुड़ी शिक्षित और अशिक्षत महिलाएं चुपचाप घरेलू हिंसा का सामना कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि सिर्फ घरेलू हिंसा के गंभीर मामले ही सामने आ पाते हैं. नगालैंड में महिलाओं पर शारीरिक हिंसा बहुत आम हैं.
ताचू ने कहा, ‘घरेलू हिंसा की समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए इसे मानवाधिकार मामले की तरह लेना होगा.’
सामाजिक कल्याण विभाग के आयुक्त और सचिव साराह आर. रित्से ने इस दौरान घरेलू हिंसा के मामले से निपटने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों की जरूरत पर जोर दिया.
उन्होंने सभी हितधारकों से इस तरह की चर्चा में शामिल होने को कहा ताकि नगालैंड में घरेलू हिंसा पीड़िताओं को सर्वश्रेष्ठ सेवाएं प्रदान की जा सके.
उन्होंने यह भी कहा कि पीड़िताओं को पर्याप्त सुरक्षा दी जाए और उनकी उचित देखभाल की जाए.
एनएससीएन-आईएम ने कहा, नए केंद्रीय वार्ताकार के साथ बातचीत अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही
एनएससीएन (आईएम) ने 23 अक्टूबर को कहा कि नए केंद्रीय वार्ताकार के साथ बातचीत अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही और वह अलग ध्वज तथा येहजाबो (संविधान या संविधान में एक अध्याय) की नगा मांग का समाधान नहीं निकाल पाए.
नगा विद्रोही समूह का यह कड़ा बयान नए वार्ताकार एके मिश्रा की नियुक्ति के एक महीने के भीतर आया है, जो एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं तथा इंटेलिजेंस ब्यूरो में पूर्वोत्तर मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं.
उन्हें नगालैंड के पूर्व राज्यपाल आरएन रवि की जगह वार्ताकार नियुक्त किया गया है.
शांति समझौता करने वाले मुख्य विद्रोही समूह एनएससीएन (आईएम) ने सरकार पर उन मुद्दों पर राजनीतिक पलायन में शामिल होने का आरोप लगाया, जो नगा समाधान के रास्ते को रोक रहे हैं.
भारत सरकार अब तक एक अलग संविधान या भारतीय संविधान में नगालैंड पर एक अध्याय और एक अलग ध्वज की नगा गुटों की मांगों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है.
मीडिया के माध्यम से वार्ताकारों ने संकेत दिया था कि नगालैंड के लिए ध्वज की मांग को सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में अकमोडेट किया जा सकता है.
एनएससीएन-आईएम ने यह स्पष्ट किया है कि नगा मुद्दा कोई सांस्कृतिक मुद्दा नहीं है और ध्वज को सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में मानना ना कि राजनीतिक पहचान के रूप में, यह स्वीकार्य नहीं है.
अगर नगा मुद्दा सांस्कृतिक समस्या है तो सीजफायर की जरूरत कहां हैं और अगर समस्या सिर्फ सांस्कृतिक विवाद को हल करने की है तो इस वार्ता को दो दशक से अधिक लंबे समय तक खींचने की क्या जरूरत है.
विद्रोही समूह ने बताया कि नगा राजनीतिक वार्ता के तहत तीन अगस्त 2015 को ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे और दावा किया था कि नगा राष्ट्र की संप्रभु पहचान को मान्यता मिलेगी.
अरुणाचल प्रदेशः अचानक काली पड़ी नदी में हजारों मछलियां मृत मिलीं, स्थानीयों ने चीन को ज़िम्मेदार बताया
अरुणाचल प्रदेश के ईस्ट कामेंग जिले में कामेंग नदी के पानी के अचानक काला पड़ने के बाद हजारों मछलियां मृत पाई गईं. अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी.
जिला मत्स्य पालन अधिकारी (डीएफडीओ) हाली ताजो ने कहा कि कुल उच्च घुलित पदार्थ (टीडीएस) की उच्च मौजूदगी से नदी का पानी काला पड़ गया.
उन्होंने बताया कि हजारों मछलियां शुक्रवार को सेप्पा में नदी में मृत मिलीं. प्राथमिक जांच के तथ्यों के अनुसार, बड़ी संख्या में मछलियों के मरने के पीछे की वजह टीडीसी की बड़ी मात्रा में मौजूदगी है, जिससे नदी के जीवों के लिए दृश्यता कम होती है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती है.
नदी में टीडीएस का स्तर 6,800 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जो सामान्य तौर पर 300-1,200 मिलीग्राम प्रति लीटर होता है.
सेप्पा के लोगों ने इसके लिए चीन पर आरोप लगाया है. उनका कहना है कि पड़ोसी देश की निर्माण गतिविधियों की वजह से नदी का रंग काला पड़ गया.
इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सेप्पा ईस्ट के विधायक तापुक टाकु ने कहा कि इससे पहले कामेंग नदी में कभी ऐसा नहीं हुआ था.
इससे पहले 2017 में सियांग नदी में ऐसा हुआ था और अरुणाचल ईस्ट के कांग्रेस सांसद निनोंग एरिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी.
उनका दावा था कि चीन में काफी लंबी सुरंग के निर्माण की वजह से ऐसा हुआ है क्योंकि इसने शिनजियांग प्रांत में सियांग के पानी को मोड़ दिया है. हालांकि, चीन ने इस आरोप से इनकार किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)