धनबाद जज की मौत के मामले में सीबीआई की चार्जशीट ‘उपन्यास’ जैसी है: झारखंड हाईकोर्ट

दो सप्ताह में यह दूसरी बार है कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को फटकारा है. इससे पहले 22 अक्टूबर को कोर्ट ने कहा था कि एजेंसी जांच पूरी करते हुई और ‘घिसे-पिटे ढर्रे’ पर आरोपपत्र दाखिल करते हुए ‘बाबुओं’ की तरह काम कर रही है.

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जज उत्तम आनंद.

दो सप्ताह में यह दूसरी बार है कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को फटकारा है. इससे पहले 22 अक्टूबर को कोर्ट ने कहा था कि एजेंसी जांच पूरी करते हुई और ‘घिसे-पिटे ढर्रे’ पर आरोपपत्र दाखिल करते हुए ‘बाबुओं’ की तरह काम कर रही है.

जज उत्तम आनंद.

रांची:  झारखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि धनबाद के जिला न्यायाधीश की अप्राकृतिक मौत के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दाखिल किया गया आरोप पत्र एक ‘उपन्यास’ की भांति है और एजेंसी दो आरोपियों के विरुद्ध हत्या के आरोप की पुष्टि नहीं कर पायी है.

भादंसं की धारा 302 के तहत पिछले सप्ताह आरोप पत्र दाखिल किया गया. यह धारा हत्या के आरोप में इस्तेमाल की जाती है.

मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की पीठ ने यह भी कहा कि केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई जांच पूर्ण नहीं है और उसकी जांच के दौरान कोई नया तथ्य सामने नहीं आया.

प्रभात खबर के अनुसार, अदालत ने सीबीआई की ओर से प्रस्तुत स्टेटस रिपोर्ट को देखने के बाद इसे ‘बेताल पच्चीसी’ की तरह बताया.

पीठ ने ‘बेताल पच्चीसी’ कहानी का जिक्र करते हुए मौखिक रूप से कहा कि इसमें नया कुछ नहीं कहा गया है. सीबीआई अब भी वहीं हैं, जहां से जांच शुरू की थी.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश उत्तम आनंद (49) की मौत के मामले की जांच की निगरानी से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि एजेंसी ने इस अदालत को अंधेरे में रखते हुए नियमित तरीके से आरोप पत्र दाखिल किया. न्यायालय ने कहा कि जांच विश्वसनीय नहीं है और यह उपन्यास की भांति है.

अदालत ने आगे कहा, ‘धारा 302 के तहत की गई चार्जशीट में हत्या का मकसद नहीं बताया गया है. सुनवाई में सीबीआई बिना इरादे के हत्या किए जाने को साबित कर सकती है. हत्या का इरादा न होने पर मकसद कभी साबित नहीं किया जा सकता.’

पीठ ने कहा कि जब जांच जिम्मा सीबीआई को सौंपा, तब शुरुआत में लग रहा था कि एजेंसी आंधी-तूफान की तरह काम कर रही है, पर हुआ क्या. क्या सीबीआई का जांच करने का यही तरीका है. यही पेशेवर तरीके से जांच हो रही है!

अदालत ने आगे कहा कि एजेंसी को ऐसा नहीं करना चाहिए, राज्य पुलिस भी ऐसा ही करती तो सीबीआई भी उससे अलग नहीं है. अगर ऐसे महत्वपूर्ण मामले का ये हश्र होगा, तो यह सिस्टम और देश के बहुत दुखद होगा।

एजेंसी के वकील ने और समय मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी.

दो सप्ताह में यह दूसरी बार है कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को फटकारा है. उसने 22 अक्टूबर का कहा था कि एजेंसी जांच पूरी करते हुई और ‘ढर्रे’ पर आरोपपत्र दाखिल करते हुए ‘बाबुओं’ की तरह काम करती हुई जान पड़ती है.

गौरतलब है कि धनबाद के 49 वर्षीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद बीते 28 जुलाई की सुबह टहलने निकले थे, जब रणधीर चौक के पास एक ऑटो रिक्शा उन्हें पीछे से टक्कर मारकर भाग गया. पहले इस घटना को हिट एंड रन केस माना जा रहा था, लेकिन घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पता चला कि ऑटो रिक्शा चालक ने कथित तौर पर जान-बूझकर जज को टक्कर मारी थी.

इससे पहले हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए फॉरेंसिक स्टेट लेबोरेटरी और राज्य सरकार से लैब में रिक्तियों को लेकर सवाल उठाया था. लैब टेक्नीशियन की अनुपस्थिति के कारण धनबाद में अपराध स्थल से एकत्र किए गए नमूने जांच के लिए राज्य से बाहर भेजे गए थे.

तब उच्च न्यायालय राज्य सरकार को कुंभकरण की तरह सोने के लिए फटकार लगाई थी और राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि फॉरेंसिक लैब में सभी नियुक्तियां तीन महीने के भीतर पूरी हो जाएं.

30 जुलाई को शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था और जांच पर झारखंड के मुख्य सचिव और डीजीपी से एक सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट मांगी थी और कहा था कि खबरें और वीडियो क्लिप से संकेत मिलता है कि ‘यह साधारण सड़क दुर्घटना का मामला नहीं था.’

गिरफ्तार ऑटो चालक लखन कुमार वर्मा धनबाद के सुनार पट्टी का रहने वाला है, जबकि दूसरा आरोपित राहुल वर्मा भी स्थानीय निवासी है.

लखन कुमार वर्मा ने स्वीकार किया है कि घटना के वक्त ऑटो वही चला रहा था. उसकी गिरफ्तारी गिरिडीह से हुई, जबकि दूसरे आरोपित राहुल वर्मा की गिरफ्तारी धनबाद स्टेशन से हुई. दोनों को घटना के अगले दिन बीते 29 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था.

पुलिस ने शुरू में न्यायाधीश की मौत के मामले की जांच शुरू की थी. धनबाद के एसएसपी और डीजीपी ने अदालत को त्वरित जांच का आश्वासन दिया था, हालांकि बीते 31 जुलाई को झारखंड सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.

इसके बाद सीबीआई ने बीते चार अगस्त से इस मामले की जांच कर रही है और हाईकोर्ट जांच में प्रगति की निगरानी कर रहा है. केंद्रीय एजेंसी मामले की जांच की स्थिति पर अदालत को सीलबंद रिपोर्ट सौंपती रही है.

सितंबर महीने की शुरुआत में मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा था कि घटना के पांच सप्ताह बाद भी तीन संदिग्धों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है, जबकि सीसीटीवी फुटेज में वे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, यह निराशाजनक है.

बीते 23 सितंबर को सीबीआई ने बताया था कि ऑटो चालक ने न्यायाधीश को जान-बूझकर टक्कर मारी थी और यह कोई हादसा नहीं था. घटना के पीछे के षड्यंत्र की जांच की जा रही है.

अदालत ने कहा था कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी न्यायिक अधिकारी की हत्या की गई है. इस घटना से न्यायिक अधिकारियों का मनोबल कम हुआ है और अगर इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा नहीं किया गया तो यह न्यायिक व्यवस्था के लिए सही नहीं होगा.

बीते अगस्त माह में सीबीआई द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद पहली बार इस मामले की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने जांच का उचित अपडेट नहीं दे पाने के लिए एजेंसी के जांच अधिकारी की खिंचाई करते हुए कहा था कि उन्हें विवरण के साथ मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)