जम्मू कश्मीरः आतंकियों की मदद के आरोप में तीन आदिवासी गिरफ़्तार, पुलिस के दावों पर उठे सवाल

तीनों व्यक्तियों को द रेजिस्टेंस फ्रंट के लिए काम करने के आरोप में पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया गया है. बीते दिनों सूबे में नागरिकों पर हुए हमलों की ज़िम्मेदारी लेने वाले द रेजिस्टेंस फ्रंट को प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का उपसंगठन माना जाता है. पुलिस के डोज़ियर में तीनों पर आधुनिक संचार तकनीक का इस्तेमाल करने की बात कहीं गई है, हालांकि एक के संबंधी ने बताया कि तीनों निरक्षर हैं और उन्होंने कभी स्मार्टफोन तक इस्तेमाल नहीं किया है.

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अमरीम गोजर की मां और पत्नी (फोटोः उमर मकबूल)

तीनों व्यक्तियों को द रेजिस्टेंस फ्रंट के लिए काम करने के आरोप में पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया गया है. बीते दिनों सूबे में नागरिकों पर हुए हमलों की ज़िम्मेदारी लेने वाले द रेजिस्टेंस फ्रंट को प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का उपसंगठन माना जाता है. पुलिस के डोज़ियर में तीनों पर आधुनिक संचार तकनीक का इस्तेमाल करने की बात कहीं गई है, हालांकि एक के संबंधी ने बताया कि तीनों निरक्षर हैं और उन्होंने कभी स्मार्टफोन तक इस्तेमाल नहीं किया है.

अरमीम गोजर की मां और पत्नी. (फोटोः उमर मकबूल)

बांदीपोराः आदिवासी महिला फातिमा बेगम सदमे की स्थिति में है और विश्वास नहीं कर पा रही कि उनके बेटे पर ‘ओवर ग्राउंड वर्कर’ होने का आरोप लगा है. ओवर ग्राउंड वर्कर उन्हें कहा जाता है, जो लॉजिस्टिक सहायता, नकदी, आश्रय और अन्य बुनियादी सुविधाओं के साथ आतंकियों की मदद करते हैं.

फातिमा बेगम (70) के बेटे अरमीम गोजर को द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का ओवर ग्राउंड वर्कर होने के आरोप में जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया है.

टीआरएफ ने कश्मीर में हाल ही में हुए हमले की जिम्मेदारी ली है. इन हमलों का शिकार हुए लोगों में से चार हिंदू और सिख समुदायों से हैं और तीन कश्मीरी मुस्लिम हैं. सुरक्षा एजेंसियों द्वारा टीआरएफ को प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का उपसंगठन माना जाता है.

पेशे से बढ़ई अरमीम (45) के अलावा अब्दुल बारी (50) और सुलेमान गोजर (50) के खिलाफ भी समान आरोपों में पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है.

इन्हें आठ अक्टूबर को बांदीपोरा पुलिस ने तलब किया था और बाद में उन्हें उनके घरों से 300 से अधिक किलोमीटर दूर जम्मू के कोट भलवाल जेल ले जाया गया.

द वायर  से बातचीत में फातिमा ने कहा कि उनका बेटा निर्दोष है और उसका आतंकियों से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हम गरीब लोग हैं और आतंकियों से हमारा दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. ये आरोप आधारहीन हैं.’ उन्होंने कहा कि उन्हें बार-बार अपने बेटे का रोता हुआ चेहरा याद आ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘कोट भलवाल जेल ले जाने से पहले मेरे बेटे ने मुझे गले लगाया और एक बच्चे की तरह मेरी गोद में रोया. वह मुझे बार-बार बता रहा था कि वह निर्दोष है और उसने मुझे जेल से बाहर निकालने के लिए कुछ करने को कहा. मुझे नहीं पता कि मैं क्या कर सकती हूं.’

फातिमा की तरह इन आदिवासी इलाकों के अन्य स्थानीय लोग भी इन तीनों की बेगुनाही की पुष्टि कर रहे हैं और उन पर लगे आरोपों का खंडन कर रहे हैं.

एक युवा ने पहचान उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘हमें सजा क्यों दी जा रही है? हमारा कसूर क्या है? हमारे इलाके से कोई आतंकवाद में शामिल नहीं हुआ लेकिन हमारे लोगों को अभी भी हिरासत में रखा गया है. हमने बीते तीन दशकों में चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में वोट किया है और किसी तरह की गैरकानूनी गतिविधि में शामिल नहीं हुए हैं. क्या यह शांतिपूर्ण तरीके से रहने का इनाम है?’

एक अन्य शख्स ने कहा, ‘हमने प्रधानमंत्री मोदी और उपराज्यपाल सहित प्रशासन से मामले को देखने और न्याय सुनिश्चित करने को कहा है. अगर इन लोगों का आतंक से थोड़ा-सा भी संबंध है तो उन्हें हमारे लोगों को सजा देने दो लेकिन अगर ये निर्दोष हैं तो जिन लोगों ने उन्हें फंसाया है, उन्हें सजा मिलनी चाहिए.’

फातिमा के दूसरे बेटे मुहम्मद मुबीन गोजर ने द वायर  को बताया, ‘हम सभी वहां गए थे और बाद में वहां से जम्मू कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के कैंप में शिफ्ट किया गया था. हमें दो दिनों तक कैंप में रखा गया था और वहां से बांदीपोरा पुलिस स्टेशन ले जाए जाने से पहले हमसे पूछताछ की गई.’

उन्होंने कहा कि उन्हें 21 अक्टूबर को पता चला कि उनके भाई सहित तीन लोगों को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था और बाद में जम्मू शिफ्ट किया गया.

दाएं हाथ को लकवा लगने के बाद 2010 से बिस्तर पकड़ चुके मुबीन ने कहा, ’20 अक्टूबर को उन्हें अपने कपड़ों और कंबलों के साथ जेल से बाहर आने को कहा गया. मुझे लगा कि उन्हें रिहा किया जा रहा है लेकिन जब अगले दिन मैंने साथी कैदियों से सुना तो मैं चौंक गया कि उन्हें जम्मू ले जाया गया.’ मुबीन को 23 अक्टूबर को रिहा किया गया था.

अत्यंत गरीबी में जी रहे अब्दुल बारी का परिवार भी शोकाकुल है. अब्दुल बारी की पत्नी सकीना बेगम ने बताया, ‘मेरे पति घर चलाने के लिए छोटे-मोटे काम करते थे. आप गांव में उनके बारे में किसी से भी पूछ सकते हैं. कोई भी उनके खिलाफ कुछ भी गलत नहीं कहेगा.’

सकीना चल नहीं सकतीं और वह बांदीपोरा में अपने पति से मिल भी नहीं सकीं, जहां उनके पति को 12 दिनों तक हिरासत में रखा गया.

सकीना ने कहा, ‘मेरे पास शाम के खाने के पैसे भी नहीं है. मेरे पास उनसे मिलने के लिए जम्मू जाने और केस लड़ने के लिए वकील का इंतजाम करने तक के पैसे नहीं हैं.’

स्थानीय लोगों के मुताबिक, हिरासत में लिए गए इन तीन लोगों में से एक मुहम्मद सुलेमान गोजर की पत्नी परवीना बेगम ने द वायर  को बताया, ‘मेरे पति चरवाहे का काम करते हैं और इस काम में बहुत कम आय हैं और परिवार के रोजाना के खर्चे बमुश्किल ही पूरे हो पाते हैं.’

परवीना और उनके बच्चे अभी भी अस्थाई शेल्टर में रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने पति की हिरासत बंदी के बाद भेड़ें उनके मालिक को लौटा दी हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं दुविधा में हूं कि क्या मुझे अपने पति का केस आगे लड़ना चाहिए या घर चलाने के लिए कुछ करना चाहिए. मेरे पति की गैरमौजूदगी में मेरे बच्चों का ध्यान कौन रखेगा.’

पुलिस डोजियर में क्या कहा गया

पुलिस द्वारा तैयार किए गए और बांदीपोरा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित तीन अलग-अलग डोजियर में तीनों पर लगाए गए आरोप एक जैसे ही हैं.

डोजियर के मुताबिक, तीनों पर टीआरएप से जुड़े होने का आरोप लगाया गया है. डोजियर में दावा किया गया है कि इन सभी की उम्र 45 साल है. हालांकि, बारी और सुलेमान के परिवार का कहना है कि इनकी उम्र 50 साल है.

दिलचस्प यह है कि यह डोजियर उनके खिलाफ दर्ज किसी एफआईआर पर आधारित नहीं है. दस्तावेज में कहा गया है कि उन्हें पहले धारा 107 और 151 के तहत हिरासत में लिया गया था.

तीनों परिवारों का दावा है कि उन्हें आठ अक्टूबर से पहले हिरासत में नहीं लिया गया, जिस दिन उन्हें पुलिस ने तलब किया था.

डोजियर में कहा गया कि तीनों को 19 अक्टूबर तक सीआरपीसी की धारा 107 और 151 के तहत हिरासत में लिया गया था. 19 अक्टूबर को ही उन्हें पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था. उन पर सुरक्षा एजेंसियों से बचने के लिए आधुनिक संचार तकनीक का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया है.

हिरासत में लिए गए एक शख्स के संबंधी गुलाम मुस्तफा गोजर ने कहा कि इनमें से किसी ने भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं किया है.

उन्होंने कहा, ‘वे अशिक्षित हैं, कभी स्कूल नहीं गए. वे आधुनिक संचार ऐप का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. उनके फोन अभी भी पुलिस के कब्जे में हैं.’

उन्होंने कहा कि 23 अक्टूबर को रिहा किए गए मुबीन के पास ही स्मार्टफोन था, जिसे उसने कोविड-19 के बाद बच्चों की ऑनलाइन क्लास के लिए लिया था.

बांदीपोरा के वरिष्ठ अधीक्षक जाहिद मलिक ने कहा कि डोजियर में सब कुछ विस्तार में हैं. मैं इस पर और कुछ नहीं कह सकता.

बांदीपोरा के उपायुक्त ओवैस अहमद ने कहा कि डिटेंशन आदेश में किसी तरह की विसंगति होने पर हिरासत में लिए गए शख्स कानूनी रास्ता अख्तियार कर सकते हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)