ग्राउंड रिपोर्ट: नौ नवंबर को शिवपुरी ज़िले के रामनगर गधाई गांव में खेत के पास एक पुलिया बनाने को लेकर हुए विवाद के बीच कथित तौर पर पुलिस के लाठीचार्ज में दस महीने के शिशु की मौत हो गई. पीड़ित परिवार का कहना है कि उनके परिवार की महिलाओं को पीटा गया और अब उन्हीं के परिवार के पंद्रह सदस्यों के ख़िलाफ़ संगीन धाराओं में केस दर्ज किया गया है.
शिवपुरी जिले में करैरा-भितरवार मार्ग पर सड़क निर्माण कार्य चल रहा है. इसी मार्ग पर नरवर तहसील स्थित एक गांव रामनगर गधाई पड़ता है. मुख्य मार्ग यहीं से होकर गुजरता है. इसी मुख्य मार्ग के एक ओर दयाराम जाटव, कल्लाराम जाटव और हरूआराम जाटव नामक तीन भाई अपनी तीन पीढ़ियों के साथ कच्चे-पक्के मकानों में रहते हैं.
एक-एक दीवार से बंटे तीनों के मकानों में तीनों भाईयों की तीनों पीढ़ियां मिलाकर परिवार में करीब 45 सदस्य हैं और सभी खेती-किसानी पर निर्भर हैं. घर के सामने वाली पट्टी में करीब 100 मीटर की दूरी स्थित मुख्य मार्ग पर ही इस परिवार के खेत हैं, जो इनके गुजर-बसर का सहारा हैं.
इस छोटे-से गांव का नाम और इस सड़क निर्माण के बारे में 60 किलोमीटर दूर शिवपुरी जिला मुख्यालय में शायद कोई आम नागरिक जानता भी न हो, लेकिन 9 नवंबर को यही गांव राष्ट्रीय सुर्खियों में तब छा गया जब जाटव परिवार और जिला पुलिस व प्रशासन के बीच हुई एक झड़प में कथित तौर पर पुलिस की लाठी लगने से जाटव परिवार के सबसे छोटे सदस्य 10 माह के मासूम शिवा की मौत हो गई.
जाटव परिवार के घर पहुंचने पर मृत मासूम के करीब 70 वर्षीय दादा दयाराम जाटव दरवाजे पर ही फूट-फूट कर रो पड़े. उन्हें इंसाफ की आस है, बोले, ‘साहब, बहुत अन्याय हो रहो हमारे संग. हमारी मदद करवे कोओ नहीं.’
क्या हुआ था
शिवा के पिता अशोक जाटव ने द वायर को बताया, ‘हमारी जमीन के सामने ही पुलिया बना रहे थे, जिससे बस्ती का पूरा पानी हमारे खेत की ओर मुड़ जाता. पहले यहां कोई पुलिया नहीं थी. कुछ दिनों पहले सड़क निर्माण वाले ठेकेदार ने भी बताया था कि नक्शे में यहां कोई पुलिया स्वीकृत नहीं है, कुछ ग्रामीणों की मांग थी, लेकिन आपको आपत्ति है तो पुलिया नहीं बनेगी.’
उन्होंने आगे बताया, ‘इसलिए आश्वस्त होकर हमने कोई शिकायती आवेदन नहीं दिया. लेकिन 9 तारीख को पटवारी ने घटनास्थल पर मुझे बुलाया और आपत्ति का कारण पूछा. मैंने बताया कि ठेकेदार के मुताबिक स्वीकृत नक्शे में पुलिया नहीं है, इसलिए ऐसा समाधान निकालिए कि मेरे खेत को नुकसान न हो क्योंकि जब बस्ती में कुछ और मकान बनेंगे तो पुलिया कुछ सालों बाद नाले में तब्दील हो जाएगी.’
अशोक के मुताबिक, पटवारी ने उन्हें बताया कि पुलिया का निर्माण उनके ही खेत के सामने रहने वाले मलखान नाई के आवेदन पर हो रहा है. मलखान और जाटव परिवार के बीच वर्षों पुरानी रंजिश है, जिससे संबंधित एक मामला अदालत में भी विचाराधीन है.
अशोक बताते हैं, ‘पटवारी से बातचीत के दौरान मलखान व उसके परिजन लाठी-डंडे लाकर गालियां देने लगे. पटवारी ने हमें उनसे उलझने से रोका और बोला कि तहसीलदार मैडम आ रही हैं, वह मामला निपटाएंगी. तहसीलदार के सामने भी हमने अपनी बात रखी और उन्हें सुझाव भी दिया कि वे सामने वाली पट्टी की तरफ पुलिया बना दें क्योंकि वह तो सरकारी जमीन है और खाली पड़ी है. इससे किसी को व्यक्तिगत नुकसान नहीं होगा.’
अशोक बताते हैं, ‘वे कहते हैं कि मैंने उन्हें यहां तक सुझाव दिया कि पुलिया के बजाय सड़क किनारे दोनों तरफ नाली बना दें, जिससे कि मेरे खेत में गंदा पानी नहीं जाएगा. इस पर उन्होंने मुझे आवेदन लिखकर लाने को कहा.’
बकौल अशोक, वे आवेदन लिख ही रहे थे कि अचानक पुलिस की तीन गाड़ियां आ गईं और प्रशासन ने जेसीबी से खुदाई शुरू कर दी, जिसे देखकर खेत में धान काट रही घर की औरतें भी मौके पर आ गईं.
वे बताते हैं, ‘मैंने तहसीलदार से फिर आग्रह किया कि आप मुझे नक्शा दिखा दें कि पुलिया स्वीकृत है या नहीं? लेकिन उन्होंने इसे अनदेखा करके खुदाई जारी रखने कहा. तब घर की महिलाएं भी विरोध में उतर आईं. इसे देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया और तहसीलदार जाकर कार में बैठकर तमाशा देखने लगीं.’
कैसे हुई मासूम की मौत
मृतक मासूम की मां वंदना का रो-रोकर बुरा हाल है. परिजनों के मुताबिक, उन्हें बच्चे की मौत का सदमा लगा है और उसी दिन से बीमार हैं. दो लोग उन्हें सहारा देकर बरामदे तक लाए, इस दौरान वे बस जोर से रोए जा रही थीं.
रोते हुए ही उन्होंने बताया, ‘हम तो खेत में धान काट रहे थे. लड़का गोद में थो. वहां से हमने देखो के अचानक से पुलिस वाले हमारे घरवालो और देवरानी-जेठानी को पीट रहे हैं और हमारे पति को भी पकड़ लओ है. हमने सोचो के पति को छुड़ा लें……..’
आगे वे और ज्यादा रोने लगती हैं और बताती हैं, ‘लेकिन हमें पतो नहीं थो के एक लाठी हमारी पैर में घलेगी (पड़ेगी) और दूसरी हमारे बच्चे के सिर में. हमको पतो ही नहीं चलो के जे सब कब भओ, हमारे पति ने ले लिया बेटे को हमसे, हम तो गैरहोश हो गए फिर. जब होश में आए तो सब बोले बच्चे को ले चलो… बच्चे को ले चलो.’
अशोक बताते हैं, ‘बच्चे को लेकर मैं भी बड़ी देर वहीं बहस करता रहा लेकिन जब मुझे शर्ट पर गीलेपन का एहसास हुआ तब देखा कि वह खून था और मेरा बेटा बेसुध हो चुका था, बस हल्की-हल्की सांसें चल रही थीं. तहसीलदार की गाड़ी में बच्चे को करैरा अस्पताल ले गए लेकिन वहां तक पहुंचते-पहुंचते वह दम तोड़ चुका था.’
पीड़ित परिवार पर ही दर्ज कर दिया मुकदमा
इससे आक्रोशित होकर परिजनों और भीम आर्मी के सदस्यों ने घटनास्थल पर मासूम का शव रखकर चक्का जाम कर दिया. विवाद बढ़ता देख शिवपुरी कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह, पुलिस अक्षीक्षक राजेश कुमार चंदेल और स्थानीय कांग्रेस विधायक प्रागीलाल जाटव भी मौके पर पहुंच गए और परिवार को उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया.
उसी दिन दो पुलिस कर्मियों उपनिरीक्षक अजय मिश्रा व जगदीश रावत और जाटव परिवार से रंजिश रखने वाले मलखान नाई पर तीन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जिसमें हत्या की धारा 302 और एससी-एसटी अत्याचार निवारण कानून की धारा शामिल हैं.
अशोक के मुताबिक, ‘कलेक्टर ने हमें सरकारी सहायता दिलाने, तहसीलदार को निलंबित करने और हममें से किसी के भी खिलाफ कोई कार्रवाई न होने की भी बात कही थी. लेकिन, बाद में हमारे परिवार के ही 15 लोगों के खिलाफ धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कर लिया.’
गौरतलब है कि पुलिस के दावे अनुसार, घटनाक्रम में करैरा थाने में पदस्थ एसआई राघवेंद्र सिंह यादव के सिर में भी गंभीर चोट आई है.
घटनाक्रम के दो दिन बाद राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर जाटव परिवार की 4 महिलाओं समेत 15 सदस्यों और 20-25 अज्ञात लोगों पर सीआरपीसी की धारा 307, 353, 186, 332, 147, 148, 149 और 336 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है. इससे पूरा परिवार दहशत में है और पुलिस व प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है.
परिवार के एक सदस्य सुरेश जाटव भी मामले में नामजद हैं. वे अपनी बात रखते हुए हाथ जोड़कर रोने लगते हैं, ‘हमारो तो अब बस परमात्मा ही है बचाने वाला. हमारे तो अंडी-बच्चा तक सब जेल जा रहे हैं. हम तो अपनी संपत्ति के लिए लड़ रहे थे. कोई अनर्थ न कर रहे थे. पूरा प्रशासन एक तरफ, हम लोग एक तरफ. उन्होंने हमको और हमारी औरतों को घसीट-घसीटकर मारा-पीटा. हमारा बच्चा मार डाला. फिर भी हमारी कोई सुनवाई नहीं है. उल्टा हम पर ही मुकदमा लगा दिया.’
परिवार का दावा है कि जो परिजन उस समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे और बच्चे की खबर सुनकर बाद में मिलने आए, उन पर भी मुकदमा दर्ज कर लिया है. इसलिए मृतक मासूम की बुआ गीता डरी हुई हैं.
वे कहती हैं, ‘मैं तो उस समय दतिया में थी. वे मेरा भी नाम अज्ञात में डाल सकते हैं.’ वे भी न्याय की गुहार लगाती हैं. इस दौरान घर की औरतें और बुजुर्ग अपने शरीर पर लगे चोटों के निशान दिखाए, जो पुलिस पर लग रहे आरोपों को आधार देते हुए लगते हैं.
अशोक सवाल करते हैं, ‘हम 35 लोगों को हत्या के प्रयास का आरोपी बनाया है. अगर इतने लोग हमला करेंगे तो क्या दरोगा को सिर्फ एक ही जगह सिर में चोट लगेगी? हमको गलत फंसा रहे हैं. लोग हमारा साथ देने से डर रहे हैं क्योंकि 20-25 अज्ञात में उनका भी नाम डाल सकते हैं.’
भीम आर्मी के करैरा विधानसभा अध्यक्ष महेंद्र बौद्ध भी ऐसा ही कहते हैं, ‘आप गौर करिए कि पुलिस के मुताबिक जब 30-35 लोगों ने एक को मारा है तो दस-बीस जगह तो चोट लगती. पुलिस-प्रशासन कम था और जाटव परिवार के लोग ज्यादा, टकराव होता तो पुलिस-प्रशासन अधिक घायल होता लेकिन उलटा परिवार की महिलाओं को जिस बेरहमी से मारा है, उनकी हालत देखते बनती है. दरोगा के सिर में एक-दो टांकों समान छोटा-सा कट था. गंभीर चोट नहीं थी.’
पुलिस और प्रशासन का पक्ष
घटना के तीन दिन बाद कुछ ग्रामीणों, जिन्हें जाटव परिवार द्वारा आरोपी बनाए गए मलखान नाई के समाज वाला और उनका समर्थक बताया जा रहा है, ने शिवपुरी पुलिस अक्षीक्षक को ज्ञापन देकर दावा किया है कि जाटव परिवार ने स्वयं मासूम की हत्या की है क्योंकि उसके दिल में छेद था, जिसका इलाज कराने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. इसलिए मामले में पुलिस व मलखान नाई को फंसाने के लिए उन्होंने अपना बच्चा मार डाला.
करैरा पुलिस एसडीओपी गुरुदत्त शर्मा भी द वायर से बात करते हुए इन दावों का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि जितने भी वीडियो सामने आए हैं उसमें पूरी कार्रवाई के दौरान कहीं भी बच्चा नज़र नहीं आ रहा है. इससे ग्रामीणों का दावा ही सही लगता है.
मामले की स्वतंत्र जांच कराने कि लिए इसे स्थानीय पुलिस को न सौंपकर कोलारस एसडीओपी अमरनाथ वर्मा को सौंपा है. वे भी गुरुदत्त की बात दोहराकर हमसे कहते हैं, ‘अभी तक की जांच में ऐसे साक्ष्य नहीं मिले हैं कि बच्चा घटनास्थल पर मौजूद था.’
जिन वायरल वीडियो का हवाला देकर यह कहा जा रहा है कि घटनास्थल पर बच्चा मौजूद नहीं था, अगर उन्हीं को आधार बनाएं तो पुलिस द्वारा जाटव परिवार पर दर्ज की गई एफआईआर के एक तथ्य पर भी सवाल उठता है.
उक्त एफआईआर में एसआई राघवेंद्र के हवाले से कहा गया है कि उनके सिर में कुल्हाड़ी का प्रहार करके जान लेने की कोशिश की गई, लेकिन किसी भी वीडियो में कुल्हाड़ी नज़र नहीं आती.
साथ ही गुरुदत्त कहते हैं, ‘उक्त परिवार से पूरा गांव परेशान है. उसका पेशा है कि झूठे एससी-एसटी मुकदमे दर्ज कराकर समझौते के बदले पैसा वसूलना.’
इन आरोपों पर अशोक कहते हैं, ‘क्या अपने बच्चे को भी कोई मारता है भला? फिर वह चाहे लंगड़ा, बहरा, गूंगा, कैसा भी हो. मारना होता तो दस महीने भी क्यों पालते? वे केस को हल्का करने कुछ भी बोलेंगे. जन्म के समय दिल में छेद जरूर था, लेकिन इलाज के बाद वह नॉर्मल था और इलाज बंद.’
वे आगे कहते हैं, ‘सात झूठे मुकदमे दर्ज कराने वाली बात भी निराधार है. हमने केवल दो मुकदमे दर्ज कराए हैं. एक मुकदमा तो इस मामले में आरोपी मलखान नाई के ही खिलाफ अदालत में विचाराधीन है.’
शिवपुरी एसपी राजेश चंदेल ने द वायर से कहा, ‘हर एंगल से जांच चल रही है. मामला कोर्ट देखेगा, जो भी होगा, सामने आ जाएगा. हमने तो अपने ही पुलिसकर्मियों पर एफआईआर दर्ज की है. परिवार के खिलाफ झूठी एफआईआर करने का सवाल है तो फैक्ट यही है कि एक पुलिसवाले को चोट लगी है, वह अस्पताल में भर्ती रहा. बाकी कहने को तो इस देश में सब स्वतंत्र हैं, लेकिन कोर्ट में साक्ष्य चलते हैं. हमारी उस परिवार से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी, हम उनके पड़ोसी थोड़ी हैं या उनके साथ हमारा ज़मीन-जायदादा का झगड़ा हो, जो हम उनके साथ गलत करते.’
प्रशासनिक कार्रवाई के संबंध में शिवपुरी कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह कहते हैं, ‘फिलहाल हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है, वो पुलिस केस है, उस हिसाब से जांच चल रही है.’
परिवार द्वारा उन पर लगाए वादाखिलाफी के आरोपों पर उन्होंने कहा, ‘जांच में जो आएगा, उसे छोड़ थोड़ी न सकते हैं. यह जांच का विषय है. इसमें जिसका भी नाम आएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. रही मुआवजे की बात को अभी थोड़ी जांच और होने दीजिए.’
इस बीच जाटव परिवार ने स्थानीय कांग्रेस विधायक प्रागीलाल जाटव पर आरोप लगाया है कि वे पड़ोसी व सजातीय होते हुए भी साथ नहीं दे रहे हैं और आरोपी (मलखान) के पक्ष में खड़े हैं. दूसरी ओर मलखान पक्ष का कहना है कि पुलिसकर्मियों और उन पर गलत मुकदमा विधायक के दबाव में ही दायर हुआ है.
इस पर सवाल किए जाने पर प्रागीलाल ने द वायर को बताया, ‘यह सच है कि परिवार ने बच्चा खोया है, उसे न्याय मिलना चाहिए. मेरे दबाव में ही पुलिसकर्मियों पर एफआईआर हुई लेकिन फिर भी पीड़ित परिवार मुझसे इसलिए खफा है क्योंकि वह गलत तरीके से गांव के कुछ लोगों को फंसाना चाहता था, मैंने इस पर आपत्ति की.’
पीड़ित परिवार का सहयोग कर रहे महेंद्र बौद्ध मामले में जातीय विद्वेष या भेदभाव की बात से इनकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘यह आपसी रंजिश का मामला है और जातीय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए. गांव में हमेशा से सौहार्द्रपूर्ण माहौल रहा है.’
इसी तरह पहले तो अशोक ने कहा कि ‘जातिगत भेदभाव जैसा कोई मसला नहीं है’ हालांकि बाद में अपनी बात से पलटते हुए उन्होंने कहा, ‘लेकिन हो सकता है कि उनके मन में कुछ हो. सभी आरोपी उच्च जाति से हैं. क्या पता अगर हम किसी और जाति से होते तो निशाना न बनते. जातिगत घृणा तो हुई है, उसी का हम शिकार हुए हैं.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)