किसान आंदोलन की सफलता से उत्साहित असम के संगठन सीएए विरोधी प्रदर्शन को करेंगे तेज़

असम में कई संगठनों के नेताओं ने कहा कि सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन ने कोविड​​-19 महामारी के कारण अपना ‘सामूहिक स्वरूप’ खो दिया, लेकिन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के निर्णय ने उनके आंदोलन को प्रेरणा दी है. पूर्वोत्तर में कई संगठन इस आशंका से सीएए का विरोध करते हैं कि इससे क्षेत्र की जनसांख्यिकी में परिवर्तन होगा.

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(फोटो: रॉयटर्स)

असम में कई संगठनों के नेताओं ने कहा कि सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन ने कोविड​​-19 महामारी के कारण अपना ‘सामूहिक स्वरूप’ खो दिया, लेकिन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के निर्णय ने उनके आंदोलन को प्रेरणा दी है. पूर्वोत्तर में कई संगठन इस आशंका से सीएए का विरोध करते हैं कि इससे क्षेत्र की जनसांख्यिकी में परिवर्तन होगा.

(फोटो: रॉयटर्स)

गुवाहाटी: किसानों के एक साल से अधिक लंबे आंदोलन के बाद तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले ने असम में कई संगठनों को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन को फिर से शुरू करने के लिए नया प्रोत्साहन दिया है.

वर्ष 2019 में कानून के खिलाफ आंदोलन शुरू करने वाले प्रमुख संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) से लेकर कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस), प्रदर्शनकारी नेताओं द्वारा गठित राजनीतिक संगठन राइजोर दल (आरडी) और असम जातीय परिषद (एजेपी) अपने संगठन के भीतर और अन्य समूहों के साथ आंदोलन को तेज करने के लिए चर्चा कर रहे हैं.

इन संगठनों के नेताओं ने कहा कि सीएए के खिलाफ आंदोलन ने कोविड​​-19 महामारी के कारण अपना ‘सामूहिक स्वरूप’ खो दिया, लेकिन कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय ने उनके आंदोलन को ‘प्रेरणा’ दी है.

पूर्वोत्तर में कई संगठन इस आशंका से सीएए का विरोध करते हैं कि इससे क्षेत्र की जनसांख्यिकी में परिवर्तन होगा.

कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में दमन के शिकार ऐसे हिंदुओं, जैनियों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है.

आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने का निर्णय इसलिए लिया गया, क्योंकि यह मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का लोगों के साथ अन्याय था.

नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) के भी सलाहकार भट्टाचार्य ने कहा, ‘अब केंद्र को सीएए को निरस्त करना होगा, क्योंकि यह पूर्वोत्तर के मूल लोगों के खिलाफ है. आसू और एनईएसओ सीएए को लेकर हमारे विरोध पर अडिग हैं. यह क्षेत्र के लोगों की पहचान के सवाल से जुड़ा है.’

उन्होंने कहा कि आसू पहले से ही एनईएसओ और 30 अन्य संगठनों के साथ बातचीत कर रहा है कि कैसे नई रणनीतियों के माध्यम से सीएए विरोधी आंदोलन को आगे बढ़ाया जाए.

भट्टाचार्य ने कहा, ‘आंदोलन कभी खत्म नहीं हुआ. हम अलग-अलग मंचों पर अपना विरोध जारी रखे हुए थे. कोविड-19 महामारी, लॉकडाउन और परीक्षाओं के कारण कुछ शिथिलता आई थी, लेकिन अब हम आंदोलन को तेज करने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं.’

पिछले साल केएमएसएस नेताओं द्वारा गठित रायजोर दल भी सीएए विरोधी आंदोलन को फिर शुरू करने के लिए तैयारी कर रहा है.

पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भास्को डि सैकिया ने कहा, ‘केंद्र के कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले के बाद असम के लोगों में यह भावना है कि सीएए विरोधी आंदोलन नहीं टिका. वे चाहते हैं कि इसे फिर से शुरू किया जाए.’

सैकिया ने कहा, ‘2019 में हमारे अध्यक्ष अखिल गोगोई सहित केएमएसएस के 40 नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन के बाद के चरणों में हमारी भागीदारी को बाधित कर दिया था. महामारी और लॉकडाउन जैसे अन्य व्यवधान भी हुए, लेकिन अब हम इस पर चर्चा कर रहे हैं कि इसे कैसे फिर से शुरू किया जाए.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) सीएए के विरोध पर दृढ़ है, इसके संयुक्त सचिव मुकुट डेका ने लोगों से अधिनियम के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया है.

उन्होंने कहा, ‘सभी को सीएए के खिलाफ एक साथ आना चाहिए. तभी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इसे निरस्त किया जाए. आंदोलन को पुनर्जीवित करने का मुद्दा 27 नवंबर को केएमएसएस की बैठक में उठाया जाएगा, जिसमें जिले के साथ-साथ केंद्रीय नेता भी शामिल होंगे.’

असम जातीय परिषद (एजेपी) के प्रवक्ता जियाउर रहमान ने कहा, ‘हम एक राजनीतिक दल हैं और हम राजनीतिक रूप से सीएए के खिलाफ लड़ेंगे. जिन संगठनों ने पहले इस कानून के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, उन्हें इसे फिर से शुरू करना चाहिए. हम उनका समर्थन करेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘केंद्र ने अभी तक सीएए को लागू करने के लिए नियम नहीं बनाए हैं, जो अधिनियम के लोगों के विरोध के डर को इंगित करता है, लेकिन सरकार इसे जब चाहे कर सकती है. इसलिए इस पर दबाव बनाए रखने के लिए सीएए विरोधी आंदोलन होना चाहिए.’

असम में सीएए विरोधी आंदोलन दिसंबर 2019 में छात्र और युवा संगठनों के नेतृत्व में एक जन आंदोलन के रूप में शुरू हुआ, लेकिन बाद में प्रदर्शन के दौरान हिंसा की घटनाएं भी हुई थीं.

अखिल गोगोई और उनके कुछ सहयोगियों की गिरफ्तारी के बाद सीएए के खिलाफ आंदोलन की गति धीमी होती गई थी.

बता दें कि गोगोई को 12 दिसंबर 2019 को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था. उस दौरान प्रदेश में सीएए  का विरोध पूरे जोरों पर था. गोगोई की गिरफ्तारी कानून व्यवस्था के मद्देनजर एहतियात के तौर पर हुई थी और इसके अगले दिन उनके तीन सहयोगियों को हिरासत में लिया गया था. बीते एक जुलाई को उन्हें रिहा किया गया था.

सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान गठित राजनीतिक दलों का भी इस साल के विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन रहा. एजेपी का खाता नहीं खुला और केवल रायजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई शिवसागर सीट से जीत सके.

बीते जुलाई में जेल से छूटने के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र के पहले दौरे के दौरान अखिल गोगोई ने कहा था कि राज्य में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन को पुनर्जीवित किया जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)