याचिकाकर्ता आदि-द्रविड़ समुदाय से संबंध रखता है और उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है. उन्हें पिछड़े वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. उन्होंने हिंदू धर्म के अरुणथाथियार समुदाय से संबंध रखने वाली महिला से शादी की है. जिसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. उन्होंने अंतर जातीय प्रमाण पत्र जारी करने का आवेदन किया था, ताकि सरकारी नौकरी में लाभ ले सके.
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि व्यक्ति द्वारा धर्मांतरण करने से उसकी जाति नहीं बदलती और इसके आधार पर अंतर जातीय प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने यह फैसला पिछले सप्ताह मेट्टुर तालुका के सेलम कैंप निवासी एस.पॉल राज की रिट याचिका खारिज करते हुए दिया.
याचिकाकर्ता ने याचिका में 19 जून, 2015 को सेलम जिला प्रशासन द्वारा जारी आदेश को रद्द करने और अधिकारियों को उसे अंतर जातीय प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.
याचिकाकर्ता आदि-द्रविड़ समुदाय से संबंध रखता है और उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है. उन्हें 30 जुलाई 1985 को समाज कल्याण विभाग द्वारा जारी सरकारी आदेश के तहत पिछड़े वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. उन्होंने हिंदू धर्म के अरुणथाथियार समुदाय से संबंध रखने वाली महिला से शादी की है.
याचिकाकर्ता की पत्नी को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम, 1976 के तहत अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया है.
इसलिए याचिकाकर्ता ने 28 दिसंबर, 1976 को कार्मिक और प्रशासन सुधार विभाग द्वारा जारी सरकारी आदेश के आधार पर अंतर जातीय प्रमाण पत्र जारी करने का आवेदन किया था, ताकि सरकारी नौकरी में लाभ ले सके.
हालांकि, सेलम जिला प्रशासन ने जून 2015 में याचिकाकर्ता के आवेदन को रद्द कर दिया जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय का रुख किया था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ईसाई आदि-द्रविड़ से ताल्लुक रखता है, जो कि एक अनुसूचित जाति समुदाय भी है और उसके धर्मांतरण के बाद उसे पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र जारी किया गया था. याचिकाकर्ता की पत्नी, माना जाता है कि अनुसूचित जाति से है.
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जब याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी दोनों जन्म से अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, केवल इसलिए कि धर्म परिवर्तन के आधार पर याचिकाकर्ता ने धर्म बदल दिया है, तो यह उसे अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकारी नहीं बनाता है.
अदालत ने कहा कि अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का उद्देश्य कुछ कल्याणकारी योजनाएं प्रदान करना है और ऐसी परिस्थितियों में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अति पिछड़ा वर्ग और अन्य के रूप में विभिन्न जातियों का वर्गीकरण, अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र दावा करने का आधार नहीं हो सकता है.
न्यायाधीश ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह जाति/समुदाय है, जिसे ध्यान में रखा जाना है. जब पति और पत्नी दोनों एक ही हैं, तो वे विभिन्न योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र के हकदार नहीं हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)