रक्षा संपत्तियों को पट्टे पर न दें, अपने उपयोग के लिए रखें: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने तीन लोगों की की रिट याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए यह सुझाव दिया. तीनों पेट्रोल पंप के मालिक हैं. तीनों ने एक दशक से अधिक समय से किराये के रूप में कई करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने पर रक्षा विभाग द्वारा उन्हें ज़मीन से हटाए जाने की कार्रवाई को चुनौती दी है.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

मद्रास हाईकोर्ट ने तीन लोगों की की रिट याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए यह सुझाव दिया. तीनों पेट्रोल पंप के मालिक हैं. तीनों ने एक दशक से अधिक समय से किराये के रूप में कई करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने पर रक्षा विभाग द्वारा उन्हें ज़मीन से हटाए जाने की कार्रवाई को चुनौती दी है.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

चेन्नई: रक्षा विभाग अपनी संपत्तियों को किराये के लिए व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को पट्टे पर देने के बजाय उन्हें अपने पास बनाए रखे ताकि और अधिक ढांचागत सुविधाओं को प्रदान किया जा सके. यह सुझाव मद्रास उच्च न्यायालय ने दिया है.

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने मेजर सी. साथिया मूर्ति गोपालन एवं दो अन्य लोगों की रिट याचिकाओं को 23 नवंबर को खारिज करते हुए यह सुझाव दिया.

तीनों पेट्रोल पंप के मालिक हैं. तीनों ने एक दशक से अधिक समय से किराये के रूप में कई करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने के लिए विभाग द्वारा उन्हें जमीन से हटाए जाने की कार्रवाई को चुनौती दी है.

तथ्यों एवं परिस्थितियों पर गौर करने के बाद न्यायाधीश ने पाया कि रक्षा विभाग को अपनी संपत्तियों की देखरेख करने में कठिनाई आ रही है और उनमें से कुछ को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पट्टे पर दे रखा है.

न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि रक्षा संपत्तियों का उपयोग उसे अपने फायदे के लिए ढांचागत सुविधाओं में करना चाहिए.

अदालत ने कहा कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) को किराये पर दी गई पंप की जमीन पर याचिकाकर्ता दस वर्षों से अधिक समय से काबिज हैं, इसलिए उन्हें इसे खाली करवाने पर सवाल खड़े करने का अधिकार नहीं है.

साथ ही आईओसी को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता पंप को तत्काल प्रभाव से सभी पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति बंद करें. उन्होंने कहा कि इस जमीन को खाली कर देना चाहिए और उसे रक्षा संपदा अधिकारी (डीईओ) को दो महीने के अंदर सौंप देना चाहिए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कई लोगों ने रक्षा संपत्ति का पिछले एक दशक से अधिक समय से करोड़ों रुपये किराये का भुगतान नहीं किया है.

न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि यदि इन्हें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए तीसरे पक्ष को पट्टे पर दिया जा रहा है, तो विभाग को ऐसे किरायेदारों या पट्टा धारकों से किराया एकत्र करना भी मुश्किल हो रहा है और पट्टेदारों को खाली करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तो रक्षा संपत्तियों का उपयोग अपने स्वयं के लाभ के लिए बुनियादी ढांचा सुविधाएं प्रदान करने के लिए किया जाना है.

अदालत ने कहा कि अधिकारी सुझाव पर विचार कर सकते हैं और ऐसी संपत्तियों के निपटान के लिए विचार की गई प्रक्रियाओं का पालन करके, यदि आवश्यक हो तो रक्षा मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करके निर्णय ले सकते हैं.

न्यायाधीश ने कहा कि रक्षा विभाग इन वाणिज्यिक मुद्दों को कई वर्षों तक अदालतों में मुकदमा चलाने का जोखिम नहीं उठा सकता है, जिससे जनहित और रक्षा विभाग के लिए बहुत नुकसान होगा.

न्यायाधीश ने कहा कि अदालत को जनहित को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित करना होगा, क्योंकि आईओसी और याचिकाकर्ताओं द्वारा रक्षा संपत्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है.

साथ ही कहा कि 12 सप्ताह के भीतर रक्षा विभाग के सक्षम अधिकारियों के साथ बातचीत करके आवश्यक हो तो किराये के बकाया का निपटान करे.

न्यायाधीश ने कहा कि यदि यह राशि का निपटान करने में विफल रहता है, तो डिफेंस एस्टेट ऑफिसर आईओसी के खिलाफ सार्वजनिक ऋण के रूप में बकाया की वसूली के लिए सभी उचित कार्रवाई शुरू करने के लिए स्वतंत्र होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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