2019 में जाति विरोधी नेता टीएम उमर फ़ारुख़ की पुण्यतिथि के मौक़े रंजीत ने राजा राज चोलन की यह कहकर आलोचना की थी कि उनके शासनकाल में जाति व्यवस्था प्रचलन में थी, जिसके दौरान दलितों की ज़मीनें ज़ब्त की गईं और देवदासी प्रथा शुरू हुई. इस पर तंजावुर पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उनके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी.
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नई दिल्लीः मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने फिल्मकार पा. रंजीत के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर रद्द कर दी है. दरअसल पा. रंजीत ने 2019 में यह कहकर चोल वंश की आलोचना की थी कि इस वंश के शासनकाल में दलितों पर अत्याचार किए गए थे.
जाति विरोधी नेता टीएम उमर फारुख की पुण्यतिथि के मौके पर पांच जून 2019 को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रंजीत ने राजा राज चोलन की यह कहकर आलोचना की थी कि उनके शासनकाल में जाति व्यवस्था प्रचलन में थी, जिसके दौरान दलितों की जमीनों को जब्त किया गया और देवदासी प्रणाली शुरू की गई.
इसके बाद तंजावुर पुलिस ने मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए रंजीत के खिलाफ जातिगत दुश्मनी पैदा करने के आरोप में मामला दर्ज किया.
शिकायत में कहा गया कि रंजीत ने कहा था कि वह उन मवेशियों का मांस खाते हैं, जिसे समाज के अन्य वर्ग पूजते हैं.
रंजीत की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जी. इलांगोवन की पीठ ने कहा कि फिल्मकार के विचार केवल जाति व्यवस्था को लेकर चिंता को दिखाते हैं और उससे आगे इसे उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चलाने के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता.
आदेश में कहा गया कि रंजीत के विचार ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जज ने अपने आदेश में कहा, ‘उत्पीड़कों की आवाज उत्पीड़न और अपराधीकरण के लिए नहीं है लेकिन सुने जाने, चर्चा और समाधान के लिए है. जाति व्यवस्था, इसकी शुरुआत, इसके प्रभाव और दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा चर्चित विषय हैं, जिन्हें इसकी शुरुआत से ही बोला जा रहा है.’
जज ने कहा कि इतिहास से पता चलता है कि जाति व्यवस्था ने समाज के एक वर्ग के दमन का मार्ग प्रशस्त किया और भूमिहीन गरीबों के एक समाज का निर्माण किया.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक सुधारों के रूप में कदम उठाए और संविधान ने सभी नागरिकों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया.
जस्टिस इलांगोवन ने कहा, ‘पत्थर के शिलालेखों, ताम्रपत्रों आदि के जरिये चोल युग के इतिहास का अध्ययन करने पर इतिहासकारों को पता चला कि चोल वंश के दौरान जाति व्यवस्था प्रचलित थी. पुलिस इस तरह की टिप्पणी करने वाले इतिहासकारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती. इतिहास का मुख्य उद्देश्य मौजूदा समय के समाज को सुधारने के लिए अतीत के समाज से सबक लेना है.’
जज ने कहा, ‘लेकिन इस समय याचिकाकर्ता द्वारा पेश किए गए विचारों से पता चलता है कि ये तथ्य सिर्फ इतिहास की किताबों से इकट्ठा किए गए हैं और उन्होंने खुद से इस पर कोई शोध नहीं किया इसलिए मौजूदा समय में चोल युग की आलोचना करना भले ही उचित नहीं हो लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रदत्त अधिकारों की सीमा से अधिक नहीं है. इन टिप्पणियों का उद्देश्य दो समूहों के लोगों के वीच वैमनस्य पैदा करना नहीं था.’
जज ने कहा कि शिकायत के मुताबिक रंजीत द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाला अपमानजनक शब्द यह है कि समाज का एक वर्ग मवेशियों को भगवान की तरह पूजता है लेकिन दलित उन्हें खाते हैं. इस पर जज ने कहा, ‘यह भारतीय समाज, विविध संस्कृति, भोजन की आदतें आदि की व्यवस्था है. इससे आगे इन्हें लेकर उन पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.’
जज ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ आदेशों का हवाला देकर कहा, ‘बिना किसी हिचक के हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दो समूहों के लोगों के बीच वैमनस्य पैदा करने की याचिकाकर्ता की ओर से ऐसी कोई मंशा नहीं थी.’
जज ने कहा कि रंजीत के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रहना कानून की प्रक्रिया का उल्लंघ होगा इसलिए याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार कर उनके खिलाफ दायर याचिका को रद्द किया जाता है.
रंजीत ने क्या कहा था
जून 2019 में रंजीत ने कहा था, ‘तंजावुर डेल्टा क्षेत्रों की भूमि जो हमारी थी, इन्हें चोल वंश के शासनकाल में साजिश के तहत हड़प लिया गया था. उनके शासनकाल में जाति व्यवस्था शुरू हुई थी, 400 महिलाओं को मंगला विलास में काम करने के लिए सेक्स वर्कर बना दिया गया था. उनके शासनकाल में देवदासी व्यवस्था शुरू की गई. उनके शासनकाल में लगभग 26 लोगों को कोलार गोल्ड फील्ड में बेच दिया गया था इसलिए तब से जातिगत भेदभाव शुरू हुआ था. यह कोई नई समस्या नहीं है.’
बता दें कि रंजीत के इन बयानों को लेकर कई कलाकार उनके समर्थन में आगे आए और कहा कि उन्हें चोल वंश की आलोचना करने का अधिकार है और उनके तर्क कोई नए नहीं थे.