नगालैंड में नागरिकों की हत्याओं के बाद पूर्वोत्तर में आफ़स्पा हटाने की मांग ने फ़िर ज़ोर पकड़ा

बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में 14 आम लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों ने सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफ़स्पा हटाने की मांग की है. मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा ने कहा है आफ़स्पा निरस्त किया जाना चाहिए.

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नगालैंड के मोन जिले में बीते पांच दिसंबर को सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 नागरिकों की मौत पर स्थानीय लोगों ने कैंडल मार्च निकाला. (फोटो: पीटीआई)

बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में 14 आम लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों ने सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफ़स्पा हटाने की मांग की है. मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा ने कहा है आफ़स्पा निरस्त किया जाना चाहिए.

नगालैंड के मोन जिले में बीते पांच दिसंबर को सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 नागरिकों की मौत पर स्थानीय लोगों ने कैंडल मार्च निकाला. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी/शिलॉन्ग/कोहिमा: नगालैंड में सुरक्षा बलों के 14 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा को वापस लेने की मांग जोर पकड़ने लगी है.

पहले ही कई नागरिक संगठन और इलाके के राजनेता वर्षों से अधिनियम की आड़ में सुरक्षा बलों पर ज्यादती का आरोप लगाते हुए इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

नागरिक समूह, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्वोत्तर क्षेत्र के नेता वर्षों से इस ‘कठोर’ कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और इस कानून की आड़ में सुरक्षा बलों पर ज्यादती करने का आरोप लगाते हैं. आफस्पा अशांत क्षेत्र बताए गए इलाकों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है.

आफस्पा ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सेना और केंद्रीय बलों को कानून के खिलाफ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी और बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने का अधिकार देता है. साथ ही केंद्र की मंजूरी के बिना अभियोजन और कानूनी मुकदमों से बलों को सुरक्षा प्रदान करने की शक्ति देता है.

मालूम हो कि नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में बीते शनिवार (4 दिसंबर)  को कम से कम 14 आम लोगों की मौत हो गई. यह घटना उस समय हुई, जब कुछ दिहाड़ी मजदूर पिकअप वैन से एक कोयला खदान से घर लौट रहे थे. इसके बाद हुए दंगों में एक जवान की मौत हो गई है.

पुलिस ने बताया था कि प्रतिबंधित संगठन ‘एनएससीएन-के’ के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की सूचना मिलने के बाद इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वैन पर कथित रूप से गोलीबारी की थी.

आफस्पा असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगडिंग और तिरप जिलों के साथ असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में आने वाले इलाकों में लागू है.

क्षेत्र के छात्र संघों के एक छत्र निकाय नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) ने कहा कि अगर केंद्र पूर्वोत्तर के लोगों के कल्याण और कुशलता के बारे में चिंतित है तो उसे कानून को निरस्त करना चाहिए.

एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी. जिरवा ने कहा, ‘अन्यथा यह क्षेत्र के लोगों को और अलग-थलग कर देगा.’

उन्होंने कहा, ‘सशस्त्र बल पूर्वोत्तर में सजा से मुक्ति के साथ काम कर रहे हैं और उन्हें सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 (आफस्पा) के रूप में सख्त कानून लागू होने से और बल मिल गया है.’

उन्होंने दावा किया कि नगालैंड के मोन की घटना से अतीत की भयानक यादें ताजा हो गईं, जब कई मौकों पर सुरक्षा बलों ने उग्रवाद से लड़ने के नाम पर नरसंहार किया, निर्दोष ग्रामीणों को प्रताड़ित किया और महिलाओं से बलात्कार किया.

प्रभावशाली नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ) ने पांच दिनों के शोक की घोषणा की है, साथ ही आदिवासियों से इस अवधि के दौरान किसी भी उत्सव में भाग नहीं लेने के लिए कहा है.

राजनीतिक दल द इंडिजिनस प्रोग्रेसिव रिजनल अलायंस (टीआईपीआरए) के अध्यक्ष प्रद्योत देब बर्मा ने कहा कि जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और आफस्पा जैसे कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए.

असम से राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुयान ने कहा कि ग्रामीणों की हत्या सभी के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की घटनाओं के कारण ही हम कठोर आफस्पा के नवीनीकरण के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे हैं. यह पहली घटना नहीं है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह आखिरी होगी.’

वहीं, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा, ‘सुरक्षा बलों की कार्रवाई एक अक्षम्य और जघन्य अपराध है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि यह घटना क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए सरकार की अनिच्छा को दर्शाती है.

उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए कठोर और अलोकतांत्रिक आफस्पा को निरस्त किया जाना चाहिए.

‘मणिपुर वीमेन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क’ और ‘ग्लोबल अलायंस ऑफ इंडिजिनस पीपल्स’ की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेप्राम ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि इस क्षेत्र के नागरिकों और स्थानीय लोगों को मारने में शामिल किसी भी सुरक्षा बल पर कभी आरोप नहीं लगाया गया और न ही गलती के लिए उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया.

छह दिसंबर 2021 को मोन जिले में सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए नागरिकों को अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए एक समारोह में शामिल स्थानीय लोग. (फोटो: पीटीआई)

आफस्पा को औपनिवेशिक कानून बताते हुए नेप्राम ने कहा कि यह सुरक्षा बलों को हत्या करने का लाइसेंस देता है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता उत्पल बोरपुजारी ने कहा कि भले ही नागरिकों को ‘झूठी खुफिया जानकारी’ के आधार पर मार दिया गया है, लेकिन आफस्पा अपराधियों को प्रतिरक्षा प्रदान करेगा.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, सरकार के साथ शांति वार्ता में लगे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) के पांच गुटों में से एनएससीएन-आईएम (इसाक-मुइवा) ने कहा, ‘इस घटना ने हाल के इतिहास में भारतीय सुरक्षा बलों की बेहूदगी और पागलपन को सबसे क्रूर तरीके से उजागर किया गया है. नगाओं के लिए काला दिन, क्योंकि वे 4 दिसंबर, 2021 की शाम को कोन्याक क्षेत्र के ओटिंग गांव में मासूम ग्रामीणों की बर्बर हत्या के शोक में है.’

1997 में युद्धविराम समझौता और 2015 में एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले इस विद्रोही समूह ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बलों द्वारा नागरिकों की हत्या वैध नगा राजनीतिक आंदोलन को दबाने का एक कार्य था.

संगठन ने कहा, ‘भारत-नगा राजनीतिक संवाद, जिसने दो दशकों से अधिक समय के दौरान बहुत कुछ देखा है, के जारी होने के बावजूद नगाओं के खिलाफ हिंसा बेरोकटोक जारी है. यह घटना 1997 में हस्ताक्षरित भारत-नगा युद्धविराम के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सों में से एक है.’

एनएससीएन के निकी सुमी नेतृत्व वाले खापलांग गुट (एनएससीएन-के) ने भी चल रही शांति वार्ता के बीच हुईं हत्याओं पर दुख व्यक्त किया.

संगठन ने एक बयान में कहा, ‘लंबे समय से नगाओं ने सुरक्षा बलों के अत्याचारों का खामियाजा उठाया है, जो दोस्ती की आड़ में आते हैं, लेकिन निर्दोष जनता पर सबसे जघन्य कृत्य करते हैं. नगा न्याय की मांग करते हैं. भारत सरकार और नगालैंड सरकार को भी देरी नहीं करनी चाहिए बल्कि उचित जांच शुरू करनी चाहिए और निर्दोष जनता के जीवन से खेलने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करनी चाहिए.’

वहीं, इस घटना की जांच की मांग करते हुए फोरम फॉर नगा रिकंसिलिएशन (एफएनआर) ने कहा कि आफस्पा अपने स्वभाव से शांति विरोधी था और राज्य सरकार को इसे निरस्त करने और नागरिक क्षेत्रों से सशस्त्र बलों को हटाने की सिफारिश करनी चाहिए.

प्रभावशाली नगा मदर्स एसोसिएशन (एनएमए) ने सभी नगा जनजातियों से राज्य की राजधानी में चल रहे हॉर्नबिल महोत्सव को नहीं मनाने की अपील की.

एसोसिएशन ने कहा, ‘हमारी नगा परंपरा में भोज करना वर्जित है, जब हम अपने घरों में अपने मृतकों का शोक मनाते हैं. दुनिया को हमारे दुख और पीड़ा को जानने दीजिए और आफस्पा के तहत जारी सैन्यीकरण और हत्याओं के खिलाफ हमारे विरोध की आवाज सुनी जाए.’

संगठन ने मांग की कि राज्य सरकार आफस्पा के तहत मानवाधिकारों के बार-बार उल्लंघन का संज्ञान ले और इस अधिनियम को निरस्त करे.

एनएमए ने कहा, ‘हम मांग करते हैं कि एसआईटी के अलावा एक उच्चस्तरीय जांच आयोग का गठन किया जाए, जिसमें नागरिक समाज भी शामिल हो, ताकि घटना की उचित जांच के साथ और दोषियों को कानून के अनुसार दंडित किया जा सके. हम मांग करते हैं कि भारतीय सेना की सभी छावनियों को सभी नागरिक क्षेत्रों और बस्तियों से तुरंत स्थानांतरित कर दिया जाए.’

आफस्पा को वापस लिया जाना चाहिए: मेघालय के मुख्यमंत्री

नगालैंड में हुई इस घटना पर मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा ने सोमवार को कहा कि ‘सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958’ (आफस्पा) निरस्त किया जाना चाहिए.

संगमा ने ट्वीट में कहा, ‘आफस्पा वापस लिया जाना चाहिए.’

संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) राज्य में भाजपा की सहयोगी है. राज्य की कांग्रेस इकाई ने भी मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए उनसे इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए एक बैठक बुलाने की अपील की.

आफस्पा को 2018 में मेघालय से वापस ले लिया गया था.

इससे पहले बीते रविवार को संगमा न कहा था कि ओटिंग गांव में लोगों की मौत से उन्हें गहरा दुख हुआ है. उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ‘शोकग्रस्त परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना. मैं घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने और शांति बहाल करने की प्रार्थना करता हूं.’

संगमा के ट्वीट के जवाब में कांग्रेस विधायक आम्परिन लिंगदोह ने ट्वीट किया, ‘हमें अपने लोगों पर अत्याचार रोकने के लिए तत्काल इस कानून को वापस लिए जाने की मांग करना चाहिए. कृपया जल्द से जल्द बैठक बुलाएं.’

हाइनीवट्रेप यूथ काउंसिल (एचवाईसी) ने भी शांत पूर्वोत्तर के निर्माण के लिए आफस्पा वापस लिए जाने की मांग की.

एचवाईसी के महासचिव रॉयकूपर सिनरेम ने कहा, ‘हम भारत सरकार से मांग करते हैं कि अगर वह वास्तव में क्षेत्र में शांति चाहते हैं तो सश्त्र बलों पर लगाम लगाएं, क्योंकि इस तरह की घटनाओं से अस्थिरता ही आएगी जो कि इस क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है.’

खासी स्टूडेंट्स यूनियन (केएसयू) ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सरकार को मूल निवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाना चाहिए. यूनियन ने एक बयान में भारत सरकार से तत्काल अफस्पा वापस लेने की मांग की.

केएसयू अध्यक्ष लम्बोक मारंगर ने सरकार से नगालैंड के मोन जिले में असैन्य नागरिकों की मौत के मामले में शामिल ‘दोषी और खून के प्यासे’ कर्मचारियों के खिलाफ सख्त और कठोर कार्रवाई की मांग की.

नगालैंड में शोक, हॉर्नबिल उत्सव एक दिन के लिए रुका

नगालैंड के प्रतिष्ठित हॉर्नबिल उत्सव के मुख्य स्थल किसामा में सुरम्य नगा विरासत गांव में सोमवार को वीराना पसरा रहा, क्योंकि सरकार ने मोन जिले में आम नागरिकों को मार डाले जाने के खिलाफ एकजुटता दर्शाने के लिए आज के लिए निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द कर दिया.

सुरक्षा बलों की कथित गोलीबारी में मारे गए नागरिकों के साथ एकजुटता दिखाते हुए नगालैंड के किसामा में हो रहे हॉर्नबिल उत्सव के आयोजन स्थल पर तख्तियां और काला झंडा लगाया गया. (फोटो: पीटीआई)

वार्षिक दस-दिवसीय हॉर्नबिल उत्सव एक दिसंबर से शुरू हुआ, जिसमें राज्य की विभिन्न जनजातियां अपनी परंपराओं का प्रदर्शन करती हैं. उत्सव में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक भाग ले रहे हैं. इसमें अमेरिका, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के राजनयिकों ने भी हिस्सा लिया है.

मोन में आम लोगों की हत्या पर गुस्सा व्यक्त करते हुए, पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) के तहत छह जनजातियों और कुछ अन्य जनजातियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग नहीं लेने का फैसला किया.

कोन्यक जनजाति का शीर्ष संगठन, कोन्यक यूनियन ने भी त्योहार से कदम पीछे हटाने का फैसला किया. मारे गए लोग इसी जनजाति से थे.

इसके बाद लगभग सभी आदिवासी निकायों ने अगली सूचना तक उत्सव में भाग नहीं लेने का फैसला किया.

बाद में राज्य सरकार ने अधिसूचित किया कि कार्यक्रम सोमवार को नहीं होंगे. किसामा के आसपास का पूरा इलाका वीरान नजर आया और सिर्फ पुलिसकर्मी मौजूद रहे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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