गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया कि वे नॉन-वेज स्ट्रीट वेंडरों की जब्त की गई सामग्री को क़ानून के अनुसार तत्काल वापस करें. बीते दिनों गुजरात के वडोदरा, राजकोट और भावनगर के बाद अहमदाबाद नगर निगम के नेताओं ने खुले में मांस बिक्री पर बैन लगाने की मांग की थी, जिसके बाद कथित तौर पर मांसाहारी व्यंजन बेचने वालों को हटाने का अभियान शुरू हो गया था.
नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को 25 स्ट्रीट वेंडरों की उस याचिका का निपटारा किया, जिसमें अहमदाबाद नगर निगम द्वारा मांसाहारी फूड की बिक्री के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को चुनौती दी गई थी.
न्यायालय ने निगम को निर्देश दिया कि वे ऐसे लोगों की जब्त की गई सामग्री को कानून के अनुसार तत्काल वापस करें.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा, ‘आप लोगों की समस्या क्या है? आपको मांसाहार नहीं पसंद है, ये आपका विचार है. आप ये कैसे निर्णय ले सकते हैं कि मैं बाहर क्या खाऊंगा? कल आप ये तय करेंगे कि मुझे घर के बाहर क्या खाना चाहिए?’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील रोनिथ जॉय ने न्यायालय को बताया कि राजकोट के एक पार्षद ‘सड़कों पर मांसाहारी भोजन बेचने को लेकर नाराज’ हो गए थे, जिसके बाद से अहमदाबाद में अंडे और मांस की अन्य व्यंजनों को बेचने वाले ठेले के खिलाफ कदम उठाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि अहमदाबाद के रहने वाले याचिकाकर्ताओं की गाड़ियां जब्त कर ली गई हैं, जबकि इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं हुआ था.
इस पर जस्टिस वैष्णव ने पूछा, ‘नगर निगम (जब रेहड़ी वाले लोग मांसाहारी भोजन बेचते हैं) को क्या तकलीफ है?’
राज्य की पैरवी कर रहे सहायक सरकारी वकील और शहरी आवास एवं शहरी विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को संबोधित करते हुए अदालत ने कहा, ‘निगम आयुक्त को बुलाइए और उनसे पूछिए कि वह क्या कर रहे हैं. कल वे कहेंगे कि मुझे गन्ने का रस नहीं बेचना चाहिए, क्योंकि इससे मधुमेह होता है? या कॉफी (क्योंकि यह) स्वास्थ्य के लिए खराब है?’
इस संबंध में अहमदाबाद नगर निगम की ओर से पेश हुए वकील सत्यम छाया ने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं को कुछ गलतफहमी हो गई है, क्योंकि ‘सभी मांसाहारी ठेले आदि को हटाने का कोई अभियान नहीं चल रहा है. ये सड़क पर अतिक्रमण करने वालों के लिए है, जिससे सार्वजनिक यातायात या पैदल चलने वालों को बाधा होती है.’
इस पर न्यायालय ने पूछा कि क्या मांसाहार विक्रेताओं को निशाना बनाने के लिए अतिक्रमण हटाने का स्वांग रचा जा रहा है, क्योंकि जो पार्टी सत्ता में है, उसने कहा है कि अंडे नहीं बिकने चाहिए और आप लोगों को हटाने लगे.
कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा, ‘अपने निगम कमिश्नर को कहिए कि वे यहां मौजूद रहें. आपकी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से अंधाधुंध लोगों को हटाने की?.’
छाया ने कहा कि ऐसा नहीं है और अपनी बात को बल देने के उन्होंने अवरुद्ध फुटपाथों की तस्वीरों का हवाला दिया. इस पर जस्टिस वैष्णव ने कहा, ‘यदि अतिक्रमण है, तो ये हटना चाहिए. लेकिन ये कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं होनी चाहिए कि आज सुबह कोई बयान देता है कि ‘कल से मुझे अपने आसपास अंडा खाने की दुकान नहीं दिखनी चाहिए’.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि निगम द्वारा इस तरह की कार्रवाई तभी होनी चाहिए, जब फुटपाथ या लोगों की आवाजाही या ट्रैफिक प्रभावित होती हो.
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस तरह का अभियान कानून के अनुसार चलाए जाए और ये किसी खास वर्ग तक ही सीमित नहीं होना चाहिए.
अंत में हाईकोर्ट ने नगर निगम के वकील का हवाला देते हुए कहा कि जिन लोगों के सामान जब्त किए गए हैं, उसे जल्द से जल्द कानून के अनुसार वापस लौटाए जाएं.
मालूम हो कि बीते दिनों गुजरात के वडोदरा, राजकोट और भावनगर के बाद अहमदाबाद नगर निगम के नेताओं ने खुले में मांस बिक्री पर बैन लगाने की मांग की थी, जिसके बाद कथित तौर पर मांसाहारी व्यंजन बेचने वालों को हटाने का अभियान शुरू हो गया था. राज्य के सभी आठ नगर निगमों पर भाजपा का शासन है.