तालिबान शासन में काम में जोख़िम होने के बावजूद महिला पत्रकारों की लड़ाई जारी: रिपोर्ट

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स और नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया इन इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट उन महिला पत्रकारों पर केंद्रित है, जो अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में रह रही हैं और जो बाहर हैं, जिनकी आजीविका को तालिबान के आने के चलते भारी झटका लगा है.

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इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स और नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया इन इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट उन महिला पत्रकारों पर केंद्रित है, जो अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में रह रही हैं और जो बाहर हैं, जिनकी आजीविका को तालिबान के आने के चलते भारी झटका लगा है.

तालिबान की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करतीं अफगानी महिलाएं. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: तालिबान के क्रूर शासन में अफगानिस्तान की महिला पत्रकारों के अनुभवों को रेखांकित करने वाली एक रिपोर्ट में उनके जीवन की दर्दनाक तस्वीर पेश की गई है. एक समय जहां मीडिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही थी, इस देश में अब वे हाशिये पर पड़ी हैं.

इन देयर ओन वर्ड्स: अफगान वूमेंस जर्नलिस्ट्स स्पीक (In Their Own Words: Afghan Women Journalists Speak) नामक इस रिपोर्ट को इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) और नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया इन इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया है.

यह रिपोर्ट उन महिला पत्रकारों पर केंद्रित है, जो अभी भी अफगानिस्तान में रह रही हैं और जो बाहर हैं, उनकी आजीविका को तालिबान के आने के चलते भारी झटका लगा है.

उदाहरण के लिए, एक यूनियन ने आईएफजे को बताया कि महिला पत्रकारों में बेरोजगारी 95 फीसदी है. अगस्त में तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के बाद से अफगानिस्तान में 257 से अधिक मीडिया आउटलेट बंद हो गए हैं.

सितंबर के आसपास सेंटर फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ अफगान वूमेन जर्नलिस्ट्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार, काबुल में केवल 39 महिला पत्रकार काम कर रही थीं, जो 2020 में 700 पत्रकारों की तुलना में भारी गिरावट है. अकेले राजधानी शहर में 108 मीडिया आउटलेट थे, जिसमें साल 2020 में 4,940 लोग कार्यरत थे.

आईएफजे ने रिपोर्ट के जरिये अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मानवीय सहायता, वीजा, स्थानांतरण, वर्क परमिट और महिला पत्रकारों को अपना पेशा जारी रखने के लिए समर्थन देने का आग्रह किया है.

रिपोर्ट में इंटरव्यू से पता चलता है कि कई महिला पत्रकार अपने करिअर के अचानक अंत के अलावा दैनिक जोखिम और भय में रहती हैं.

इंटरव्यू देने वालों में से एक उत्तरी अफगानिस्तान की एक टेलीविजन समाचार रिपोर्टर अमल हैं, जिनके भाई और पिता तालिबान द्वारा मारे गए थे और उन्हें सत्ताधारी ताकतों द्वारा धमकियों के बीच खुद को सुरक्षित रखने के लिए लगातार आगे बढ़ना पड़ता है.

अफगान पत्रकारों की एक सुरक्षा समिति के मुताबिक, नवंबर 2020 के बाद से कुल 12 पत्रकार मारे गए हैं और 230 पत्रकारों को चोटों, मारपीट, धमकियों और अपमान का सामना करना पड़ा है. अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता संभालने के बाद से कम से कम 67 पत्रकारों को हिंसा का सामना करना पड़ा है.

रिपोर्ट में उन महिला पत्रकारों की वित्तीय और कूटनीतिक बाधाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जो सबसे अधिक जोखिम में हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति को देखते हुए कि सरकारों को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए.

अधिकांश महिलाओं ने तालिबान के निरंतर खतरे की ओर इशारा किया, तब भी जब वे सत्ता में नहीं थे. यह इस आशंका को बल देता है कि तालिबान का उदार शासन का वादा शायद खोखला है.

एक 39 वर्षीय पत्रकार नूर बेगम, जो कि निर्वासन में हैं, ने कहा कि साल 2015, 2016 और अंत में अगस्त 2021 में उनके द्वारा बनाए गए विशेष रेडियो और टेलीविजन स्टेशनों को तालिबान के सदस्यों ने नष्ट कर दिया था.

महिलाओं को पत्रकारिता की शिक्षा देने की बेगम के प्रयासों को तालिबान और धार्मिक विद्वानों दोनों की धमकियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वह काफी हद तक अडिग रहीं. उन्हें अपने परिवार के साथ तीन बार अपना घर बदलना पड़ा था. अब, देश से भागकर बेगम को अमेरिका में नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ी है, जहां आश्रय शिविर के निवासियों के लिए कई प्रतिबंध हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं तालिबान और उनके सहयोगियों को दिखाना चाहती हूं कि महिलाएं कभी हार नहीं मानती हैं.’

रिपोर्ट में उद्धृत पत्रकारों ने अपने परिवार के सदस्यों और पीछे छूटे सहयोगियों की सलामती को लेकर चिंता जाहिर की है. उदाहरण के लिए एक 25 वर्षीय टीवी प्रस्तोता और रिपोर्टर, जो तुर्की भाग जाने में सफल रहीं, अपने परिवार के केवल तीन सदस्यों को ही वहां ला सकी हैं.

वहीं कनाडा से अनुभवी पत्रकार माकिया ने कहा कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में एक पत्रकार के रूप में काम करना असंभव है.

वह कहती हैं, ‘उनमें से बहुतों को तालिबान ने पीटा है और इसलिए यह मेरे और मेरे सभी सहयोगियों के लिए एक आपदा है कि वे अभी भी अफगानिस्तान में हैं. मैं चाहती हूं कि अंतरराष्ट्रीय पत्रकार संगठन और उनके देश पत्रकारों को अफगानिस्तान से ले जाएं.’

यूएनएचसीआर के अनुमानों के अनुसार, नवंबर 2021 तक अफगानिस्तान में 34 लाख लोग संघर्ष से प्रभावित हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे हैं.

(इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)