इसके उलट इस साल पांच फरवरी को राज्यसभा में इस संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की मौत के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है. हालांकि दिल्ली पुलिस ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दो व्यक्तियों की मौत और एक के आत्महत्या करने की जानकारी दी है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग एक साल तक हुए किसानों के आंदोलन के दौरान एक भी किसान की मृत्यु पुलिस कार्रवाई के फलस्वरूप नहीं हुई.
हालांकि बीते फरवरी माह में सरकार ने कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की मौत और एक आत्महत्या के मामले की जानकारी दी थी.
खुद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था, ‘देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की मौत के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दो व्यक्तियों की मौत और एक के आत्महत्या करने की जानकारी दी है.’
विभिन्न किसान संगठन तीनों केंद्रीय कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे थे. आंदोलन के दौरान 40 किसान संगठनों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार द्वारा उनकी प्रमुख मांगों को मान लिए जाने के बाद बीते नौ दिसंबर को आंदोलन स्थगित किए जाने की घोषणा की थी. किसान मोर्चा ने घोषणा की थी कि किसान 11 दिसंबर को दिल्ली की सीमाओं वाले विरोध स्थलों से घर लौट जाएंगे.
किसान मोर्चा को केंद्र सरकार द्वारा हस्ताक्षरित पत्र मिलने के बाद यह घोषणा हुई. पत्र में किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर एक समिति बनाने सहित उनकी लंबित मांगों पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त की गई है.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘किसान आंदोलन में मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा, इत्यादि का विशेष राज्य सरकार से संबंधित है. किसान आंदोलन के दौरान किसी भी किसान की मृत्यु पुलिस कार्रवाई के फलस्वरूप नहीं हुई है.’
कांग्रेस के धीरज प्रसाद साहू और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह द्वारा संयुक्त रूप से पूछे गए एक सवाल के जवाब में तोमर ने यह जानकारी दी.
उनसे पूछे गया था कि क्या सरकार किसानों के विरोध के दौरान मरने वाले किसानों के परिवारों को आजीविका या आर्थिक क्षतिपूर्ति प्रदान करने की योजना बना रही है या इसके लिए कोई प्रावधान किया है.
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सहित कुछ अन्य विपक्षी दल प्रदर्शन के दौरान हुई किसानों की मौत के मामले को लगातार उठा रहे हैं और उनके परिजनों को मुआवजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान बड़ी संख्या में पिछले साल नवंबर से तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और इन्हें वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे.
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कानूनों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की घोषणा की थी. इसके बाद सरकार ने 29 नवंबर को वर्तमान संसद सत्र के पहले दिन एक विधेयक के माध्यम से तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया था.
न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित एक अन्य सवाल के जवाब में तोमर ने कहा कि देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार फसल पैटर्न को बदलने, एमएसपी को अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने तथा जीरो बजट आधारित कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए एक औपचारिक समिति का गठन किया जाना सरकार के विचाराधीन है.
ज्ञात हो कि एमएसपी को कानूनी स्वरूप देना भी किसानों की एक प्रमुख मांग रही है. कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी फैसले की घोषणा करते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एमएसपी के लिए एक समिति गठित किए जाने की बात कही थी.
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप एमएसपी को कानूनी गारंटी दिए जाने संबंधी एक सवाल के जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय किसान आयोग ने एमएसपी कम से कम 50 प्रतिशत लाभ उत्पादन की भारित औसत लागत निर्धारित करने की सिफारिश की थी, जिसे 2018-19 में लागू किया गया है.
मालम हो कि इससे पहले बीते जुलाई महीने में केंद्र की मोदी सरकार ने संसद में बताया था कि तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ वर्ष 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है.
फरवरी माह में केंद्र सरकार ने कहा था कि किसान आंदोलन के दौरान हुई किसानों की मौत के बाद परिवारों और बच्चों को पिछले दो महीनों के दौरान प्रदान किए गए पुनर्वास और सहायता से संबंधित कोई रिकॉर्ड कृषि मंत्रालय के पास नहीं है.
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.
उस समय केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो इस साल नौ दिसंबर तक जारी रहा.
किसान संगठनों ने आंदोलन के दौरान 650 से अधिक किसानों की मौत की बात कही है.
बीते 26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रधानमंत्री के एक बयान को ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘भारत एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रहा है, जो संविधान को समर्पित लोगों के लिए चिंता का विषय है. लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों के लिए चिंता का विषय है और वो है पारिवारिक पार्टियां.’
26 नवंबर को ही किसानों के आंदोलन का एक साल पूरा हुआ था.
बहरहाल केंद्रीय कृषि मंत्री के इस ट्वीट के जवाब में किसान संगठन ने कहा था, ‘650 से ज्यादा किसानों की शहादत करवाकर एक साल तक सड़कों पर रखकर भी सिर्फ आधी मांगें मानने वाली सरकार लोकतंत्र का पाठ न पढ़ाए. मोदी सरकार और भाजपा अपने गिरेबां में झांके तथा देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाए. आपकी सरकार के कारण भी लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों में चिंता है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)