कार्मिक मामलों के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य सरकारों को स्पष्ट करना चाहिए कि वे सीबीआई पर भरोसा करती हैं या नहीं, क्या वे चुनिंदा तरीके से एजेंसी पर भरोसा करती हैं और उनके अनुरूप मामले को लेकर ही चुनिंदा सहमति देना जारी रखे हुए हैं.
नई दिल्ली: कार्मिक मामलों के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बीते रविवार को कहा कि राज्य सरकारों को स्पष्ट करना चाहिए कि वे सीबीआई पर भरोसा करती हैं या नहीं, क्योंकि वे अपने न्यायाधिकार क्षेत्र में एजेंसी के कार्य करने की सहमति को वापस ले रही हैं लेकिन जनदबाव में चुनिंदा मामलों की जांच सीबीआई को भेज रही हैं.
मंत्री ने इस मौके पर सीबीआई के 47 अधिकारियों को सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक से सम्मानित किया.
उत्तर प्रदेश के हाथरस बलात्कार और हिमाचल प्रदेश के गुड़िया रेप मामले की जांच करने वाली सीबीआई की उपाधीक्षक सीमा पाहुजा को बेहतरीन जांच अधिकारी का स्वर्ण पदक मंत्री ने प्रदान किया.
‘अलंकरण समारोह’ को संबोधित करते हुए कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मामलों के राज्यमंत्री ने राज्यों द्वारा सीबीआई को मामलों की जांच के लिए दी गई आम सहमति को वापस लेने पर चिंता जताई. साथ ही कहा कि लेकिन उन्हें (राज्यों को) जहां उपयुक्त लगता है वहां वे चुनिंदा मामलों की जांच के लिए सहमति देने के विशेषाधिकार पर कायम हैं.
सिंह ने राजनीतिक वर्ग, समाज और राष्ट्र के स्तर पर विस्तृत आत्मचिंतन का आह्वान करते हुए सवाल किया कि क्या कि इस तरह का व्यवहार उचित है.
उन्होंने कहा कि राज्यों को स्पष्ट करना चाहिए कि वे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पर भरोसा करती हैं या नहीं, क्या वे चुनिंदा तरीके से एजेंसी भरोसा पर करती हैं और जो उनके अनुरूप मामले होते हैं उन पर चुनिंदा सहमति देना जारी रखे हुए हैं.
दरअसल सीबीआई ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ द्वारा शासित है. सीबीआई इस अधिनियम की धारा छह के तहत काम करती है. सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके तहत सीबीआई अपना काम विभिन्न राज्यों में करती है, लेकिन अगर राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी.
चूंकि सीबीआई के पास केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर अधिकार क्षेत्र है, यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच तभी कर सकती है जब संबंधित सरकार इसकी सहमति देती है.
हालांकि, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा एजेंसी को सौंपे गए मामलों की जांच के लिए इस सहमति की जरूरत नहीं होती है.
राज्य सरकारों को आम सहमति वापस लेने के अपने फैसले पर ‘ पुनर्विचार’ करने का आह्वान करते हुए सिंह ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा जनदबाव में मामलों को सीबीआई जांच की अनुशंसा करना जारी है, जो इंगित करता है कि लोगों का इस एजेंसी में बहुत भरोसा है.
उन्होंने कहा, ‘इसी प्रकार, कई मौकों पर न्यायपालिका द्वारा भी जटिल और महत्वपूर्ण मामलों की जांच सीबीआई को दी गई है.’
इस कार्यक्रम में मुख्य सतर्कता आयुक्त सुरेश एन. पटेल और सचिव (कार्मिक) प्रदीप कुमार त्रिपाठी भी शामिल हुए.
मालूम हो कि अब तक आठ राज्यों ने सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली है. उनका आरोप है कि पिछले कुछ सालों में सीबीआई का इस्तेमाल विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है.
सीबीआई ने अपने एक बयान में कहा कि सीबीआई निदेशक सुबोध जायसवाल ने एजेंसी के लिए ‘विजन 75’ की व्याख्या करते हुए कहा है कि इसने आधुनिकीकरण, क्षमताओं के उन्नयन, जांच और सतर्कता के लिए उच्च मानक स्थापित करने और नए युग के अपराध से निपटने के लिए अत्याधुनिक क्षमताओं का लाभ उठाने की एक व्यापक आंतरिक प्रक्रिया शुरू की है.
उन्होंने कहा कि सीबीआई ने ऐसी 75 चीजों की पहचान की है, जिन्हें हतोत्साहित करने की जरूरत है ताकि संगठन की दक्षता को बढ़ाया जा सके.
सीबीआई ने अपने निदेशक का हवाला देते हुए कहा, ‘दुनिया भर में न केवल अपराधियों पर मुकदमा चलाने पर बल्कि अपराध की आय की वसूली पर भी जोर दिया जा रहा है. इसके लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नई क्षमताओं से लैस होने और मौजूदा मानक संचालन प्रक्रियाओं की समीक्षा करने की भी आवश्यकता है. हमारा मानना है कि आज की समस्याओं को कल के कौशल और ज्ञान का उपयोग करके हल नहीं किया जा सकता है.’
सरकार द्वारा सीबीआई और ईडी निदेशकों के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने के विवाद की पृष्ठभूमि में सिंह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार सीबीआई और अन्य सभी जांच संस्थानों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बनाए रखने और इसे मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार की प्रतिबद्धता शासन में अधिक पारदर्शिता, अधिक नागरिक केंद्रितता और अधिक जवाबदेही लाने की है और उच्च स्थानों पर भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए देश में लोकपाल जैसी संस्था का गठन करना इसी दिशा में संकेत करता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)