भारत ने सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा संबंधी प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट किया

भारत ने इस क़दम का विरोध करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का उचित मंच ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ यानी यूएनएफसीसीसी है, न कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद. भारत के अलावा वीटो का अधिकार रखने वाले रूस ने इस प्रस्ताव के विपक्ष में वोट किया, जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

भारत ने इस क़दम का विरोध करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का उचित मंच ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ यानी यूएनएफसीसीसी है, न कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद. भारत के अलावा वीटो का अधिकार रखने वाले रूस ने इस प्रस्ताव के विपक्ष में वोट किया, जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के उस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ सोमवार को मतदान किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से जोड़ने की बात की गई है.

भारत के अलावा वीटो का अधिकार रखने वाले रूस ने इस प्रस्ताव के विपक्ष में वोट किया, जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया.

भारत ने तर्क दिया कि यह कदम जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन यानी कि यूएनएफसीसीसी द्वारा ग्लासगो में कड़ी मेहनत से किए गए सर्वसम्मत समझौतों को कमजोर करने का प्रयास है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, ‘जब जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम उठाने और जलवायु न्याय की बात आती है, तो भारत सबसे आगे रहता है, लेकिन सुरक्षा परिषद इनमें से किसी भी मामले पर चर्चा करने का स्थान नहीं है, बल्कि ऐसा करने की कोशिश उचित मंच पर जिम्मेदारी से बचने और कदम उठाने की अनिच्छा से दुनिया का ध्यान भटकाने की इच्छा से प्रेरित प्रतीत होती है.’

उन्होंने भारत के फैसले का कारण बताते हुए कहा, ‘आज का यूएनएससी प्रस्ताव ग्लासगो में बनी आम सहमति को कमजोर करने का प्रयास है. यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र की वृहद सदस्यता के बीच केवल कलह के बीज बोएगा.’

तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत के पास प्रस्ताव के खिलाफ ‘मतदान करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, तिरुमूर्ति ने कहा, ‘यह (यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया) विकासशील देशों की तत्काल जरूरतों और विकसित देशों की प्रतिबद्धताओं दोनों की बात करता है. यह शमन, अनुकूलन, वित्त पोषण, प्रौद्योगिकी, हस्तांतरण, क्षमता निर्माण आदि के बीच संतुलन की बात करता है. वास्तव में यह जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पेश करता है, जो कि न्यायसंगत और निष्पक्ष है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए, हमें खुद से यह पूछने की जरूरत है कि हम इस मसौदा प्रस्ताव के तहत सामूहिक रूप से क्या कर सकते हैं, जो कि यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया के तहत हासिल नहीं किया जा सकता है.’

तिरुमूर्ति ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव की आवश्यकता क्यों है, जबकि हमारे पास ठोस जलवायु कार्रवाई के लिए यूएनएफसीसीसी के तहत प्रतिबद्धताएं हैं? इसका ईमानदार जवाब यह है कि सुरक्षा परिषद के दायरे में जलवायु परिवर्तन लाने के उद्देश्य के अलावा इस प्रस्ताव की कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसी कोशिश इसलिए की जा रही है, ताकि अधिकांश विकासशील देशों की भागीदारी के बिना और आम सहमति को मान्यता दिए बिना निर्णय लिया जा सके. और यह सब अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के नाम पर किया जा सकता है.’

भारतीय प्रतिनिधि ने कहा, ‘इसलिए हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह प्रस्ताव जलवायु परिवर्तन के निर्णयों को यूएनएफसीसीसी, जिसमें व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय का प्रतिनिधित्व है, से छीनकर सुरक्षा परिषद को देने की कोशिश है.’

उन्होंने कहा, ‘विडंबना यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई सदस्य ऐतिहासिक उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन के मुख्य योगदानकर्ता हैं. यदि सुरक्षा परिषद को इसकी जिम्मेदारी दी जाती है तो कुछ देशों को जलवायु संबंधी सभी मुद्दों पर निर्णय लेने की पूरी छूट मिल जाएगी. यह स्पष्ट रूप से न तो वांछनीय है और न ही स्वीकार्य है.’

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की भारत की प्रतिबद्धता को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए और वह ‘जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वास्तविक कार्रवाई तथा गंभीर जलवायु न्याय का हमेशा समर्थन करेगा.’

आयरलैंड और नाइजर के नेतृत्व में पेश किए गए प्रस्ताव में ‘जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा प्रभावों संबंधी जानकारी शामिल करने’ का आह्वान किया गया था, ताकि परिषद ‘संघर्ष या जोखिम बढ़ाने वाले कारकों के मूल कारणों पर पर्याप्त ध्यान दे सके.’

इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से जलवायु संबंधी सुरक्षा जोखिमों को संघर्ष निवारण रणनीतियों का ‘एक केंद्रीय घटक’ बनाने के लिए भी कहा गया है.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर रूस ने भी किया वीटो

रूस ने भी जलवायु परिवर्तन को अंतरराष्ट्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा बताने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अपनी तरह के पहले प्रस्ताव पर बीते सोमवार को वीटो कर दिया.

इसी के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली संस्था में वैश्विक तापमान वृद्धि को लेकर निर्णय निर्धारण में अधिक केंद्रीय बनाने के लिए एक साल तक चला प्रयास विफल हो गया.

आयरलैंड और नाइजीरिया के नेतृत्व में इस प्रस्ताव में ‘जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा असर पर जानकारी को’ संघर्षों से निपटने के लिए परिषद की रणनीतियों में शामिल करने का आह्वान किया गया है.

आयरलैंड के राजदूत गेराल्डिन बायर्ने नैसन ने कहा कि यह ‘लंबे समय से लंबित’ था और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा संबंधित शीर्ष संस्था इस मुद्दे को उठाए.

परिषद ने 2007 के बाद से जलवायु परिवर्तन की सुरक्षा पर पड़ने वाले असर पर कभी-कभी ही चर्चा की है और उसने प्रस्ताव पारित किए, जिसमें विशिष्ट स्थानों जैसे कि विभिन्न अफ्रीकी देशों और इराक में तापमान वृद्धि के खतरनाक असर का जिक्र किया गया है.

फिलहाल, जलवायु परिवर्तन पर सभी मामलों पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का उपयुक्त मंच ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी)’ है, जिसके 190 से अधिक सदस्य हर साल कई बार मिलते हैं, जिसमें साल के आखिर में दो सप्ताह का वार्षिक सम्मेलन भी शामिल है.

बीते सोमवार के प्रस्तावित प्रस्ताव में कहा गया है कि खतरनाक तूफान, समुद्र का बढ़ता स्तर, बार-बार आने वाली बाढ़ और सूखा तथा ताप वृद्धि के अन्य असर सामाजिक तनाव और संघर्ष भड़का सकते हैं, जिससे ‘वैश्विक शांति, सुरक्षा और स्थिरता को अहम जोखिम हो सकता है.’

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 113 ने इसका समर्थन किया, जिसमें परिषद के 15 में से 12 सदस्य शामिल हैं. लेकिन भारत और वीटो का अधिकार रखने वाले रूस ने इसके विपक्ष में वोट किया, जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया.

रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने शिकायत की कि यह प्रस्ताव ‘एक वैज्ञानिक और आर्थिक मुद्दे को राजनीतिक सवाल’ में बदल देगा और परिषद का ध्यान विभिन्न स्थानों पर संघर्ष के ‘वास्तविक’ स्रोतों से भटका देगा.

भारत और चीन ने संघर्ष को जलवायु परिवर्तन से जोड़ने के विचार पर सवाल खड़ा किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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