गुजरात हाईकोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार से छूट देने वाले क़ानून की समीक्षा करने पर सहमति जताई

गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया. आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद-2 में कहा गया है कि एक पुरुष का अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाना ‘बलात्कार’ नहीं है.

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(फोटो: Women's eNews/Flickr CC BY 2.0)

गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया. आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद-2 में कहा गया है कि एक पुरुष का अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाना ‘बलात्कार’ नहीं है.

(फोटो: Women’s eNews/Flickr CC BY 2.0)

नई दिल्लीः बलात्कार, असहमति से बने यौन संबंध और यौन उत्पीड़न को लेकर बने कड़े कानूनों के बावजूद भारत में कानून वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को लेकर ‘अपवाद’ है, जिसके तहत पत्नी की सहमति के बिना उससे यौन संबंध बनाने पर पति को सजा से छूट दी गई है.

आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद-2 में कहा गया है कि एक पुरुष का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध ‘बलात्कार’ नहीं है. भले ही उसने इसके लिए अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना मजबूर किया हो. यह अपवाद पति को अपनी पत्नी के यौन उत्पीड़न के लिए धारा 376 के तहत दंड से बचाव की छूट देता है, बशर्ते पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक हो. मतलब पति को बलात्कार के लिए दंडित नहीं किया जा सकता.

इस मामले पर गुजरात हाईकोर्ट ने बीते 14 दिसंबर को वैवाहिक बलात्कार को ‘अपवाद’ के रूप में वर्गीकृत करने की संवैधानिक वैधता की दोबारा जांच करने  पर सहमति जताई है.

गुजरात हाईकोर्ट ने ने कहा था कि अब इस पर विचार करने का समय आ गया है कि क्या वैवाहिक बलात्कार को दी गई छूट ‘स्पष्टत: मनमानी’ है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस निरल आर. मेहता की पीठ ने कहा, ‘यह उचित समय है कि रिट अदालत विचार करें कि क्या आईपीसी की धारा 375 का अपवाद-2 को मनमाना कहा जा सकता है और यह एक महिला के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की इच्छा के अधीन बनाता है.’

हाईकोर्ट ने वडोदरा के स्थानीय निवासी जयदीप वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की और इस मामले पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया.

अदालत ने इस नोटिस का जवाब अगली सुनवाई 19 जनवरी 2022 तक देने को कहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिका में कहा गया, ‘यह पत्नी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार, इनकार करने के अधिकार, प्रजनन विकल्पों के अधिकार और निजता के अधिकार के खिलाफ है.’

याचिका में यह भी कहा गया है वैवाहिक बलात्कार को दी गई छूट से यौन उत्पीड़न की सर्वाइवर्स के बीच एक बनावटी भेद पैदा करता है.

यह भी कहा गया कि पति अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए दंड का उत्तरदायी है, लेकिन उसे वैवाहिक बलात्कार के लिए दंडित नहीं किया जा सकता. यह ‘अतार्किक’ है.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला, पुरुष की निजी संपत्ति नहीं है और वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना हर महिला के पास यौन स्वायत्तता का अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट ने उस धारणा की भी आलोचना की थी कि विवाह के बाद महिला की यौन स्वायत्तता पति के अधीन हो जाती है. अदालत ने तर्क दिया कि यौन स्वायत्तता मानवीय गरिमा का अटूट अंग है.

सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून (Adultery Law) (आईपीसी की धारा 497) के अपराधीकरण के खिलाफ फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की थी कि यह प्रावधान महिलाओं को उनकी स्वायत्तता, गरिमा और निजता से वंचित करता है.

द वायर में पहले प्रकाशित एक लेख में यह विश्लेषण किया गया था कि किस तरह ‘विवाह’ और ‘सहमति’ दोधारी तलवार के तौर पर साबित हो सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र वीमेन जस्टिस रिपोर्ट 2011 के मुताबिक, 179 देशों में से 52 देशों (नेपाल, भूटान, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया) में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानून हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)