इससे पहले डीयू के कुलपति योगेश सिंह द्वारा गठित एक समिति ने सिफ़ारिश की थी कि एडमिशन प्रक्रिया में पर्याप्त निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी चाहिए. केरल बोर्ड के छात्रों को शत-प्रतिशत अंक मिलने के कारण बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय में उनके दाख़िले की तादाद बढ़ गई है.
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की कार्यकारी परिषद ने अगले साल 2022 से दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के प्रस्ताव को शुक्रवार को मंजूरी दे दी. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
कार्यकारी परिषद (ईसी) विश्वविद्यालय से संबंधित निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है, कुछ सदस्यों द्वारा असहमति जताए जाने के बावजूद कार्यकारी परिषद ने प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
गौरतलब है कि अकादमिक परिषद की बैठक 10 दिसंबर को हुई थी और इसने इस प्रस्ताव को पहले ही मंजूरी दे दी थी.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, ‘2022-23 सत्र से एडमिशन के लिए परीक्षा होगी. हमने देखा है कि कुछ राज्यों के बोर्ड ने अधिक अंक दिए हैं कुछ ने कम. इस परीक्षा से सभी छात्रों को बराबरी का मौका मिलेगा. ये परीक्षा बोर्ड की परीक्षा के बाद एक महीने के अंदर कराएंगे और ये दो भागों में होगी. पहला भाग, सबके लिए कॉमन एप्टीट्यूट और दूसरा विषय पर आधारित.’
उन्होंने यह भी बताया कि साल में दो बार यह परीक्षा करवाने पर भी विचार किया जा रहा है. परीक्षा हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में भी होगी।
सिंह ने यह भी बताया कि प्रवेश परीक्षा करवाने के लिए अलग से एक समिति भी गठित की जाएगी।
सिंह द्वारा गठित नौ सदस्यीय समिति ने सिफारिश की थी कि दाखिले की प्रक्रिया में पर्याप्त निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय को सामान्य प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी चाहिए. केरल बोर्ड के छात्रों को शत-प्रतिशत अंक मिलने के कारण बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय में दाखिले की तादाद बढ़ गई है.
अमर उजाला ने दिसंबर की शुरुआत में इसी समिति के हवाले से बताया था कि देश के 39 बोर्ड में से डीयू में आए छात्रों में केरल बोर्ड से आए छात्रों का औसत सर्वाधिक था.
डीन (परीक्षा) डीएस रावत की अध्यक्षता में गठित समिति को स्नातक पाठ्यक्रमों में अधिक और कम प्रवेश के कारणों की जांच करनी थी, सभी स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के बोर्ड-वार वितरण का अध्ययन करना था, स्नातक पाठ्यक्रमों में इष्टतम प्रवेश के लिए वैकल्पिक रणनीतियों का सुझाव देना था और गैर-क्रीमी लेयर की स्थिति के संदर्भ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों के प्रवेश की जांच करनी थी.
समिति ने सुझाव दिया है कि तमाम प्रकार की चुनौतियों के मद्देनजर एक सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित की जा सकती है.
उल्लेखनीय है कि इसी साल अक्टूबर महीने में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने केरल के छात्रों पर लगाया ‘मार्क्स जिहाद’ का आरोप लगाया था.
किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर और आरएसएस समर्थित नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के पूर्व अध्यक्ष राकेश कुमार पांडेय ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा था कि डीयू के एक कॉलेज के 20 सीटों वाले पाठ्यक्रम में 26 छात्रों को केवल इसलिए प्रवेश देना पड़ा क्योंकि उन सभी के पास केरल बोर्ड से 100 प्रतिशत अंक थे. पिछले कुछ वर्षों से केरल बोर्ड ‘मार्क्स जिहाद’ लागू कर रहा है.
पांडेय ने यह दावा भी किया था कि 100 प्रतिशत अंकों के साथ केरल बोर्ड के छात्रों को डीयू में आवेदन देना यह सब योजना के तहत किया गया है.
उनका कहना था, ‘यह कुछ ऐसी चीज का संकेत देता है जिसकी जांच की जानी चाहिए. कोई भी व्यक्ति केरल बोर्ड से बड़ी संख्या में आ रहे छात्रों को सामान्य नहीं मान सकता. इनमें से ज्यादा छात्र न तो हिंदी में और न ही अंग्रेजी में सहज हैं. इन सभी छात्रों ने 11वीं कक्षा में 100 प्रतिशत अंक नहीं हासिल किए थे.’
उस समय केरल के सामान्य शिक्षा मंत्री और माकपा नेता वी. शिवनकुट्टी ने कहा था कि ऐसे बयानों को केवल केरल के छात्रों के दाखिले को रोकने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है. अगर उन्हें मेरिट के अलावा अन्य मामलों पर दाखिले से वंचित रखा जा रहा है तो यह पूरी तरह गलत है. अगर केरल के छात्रों को मामूली वजहों से दाखिला नहीं दिया जा रहा है तो यह लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन की तरह है.
पांडेय के बयान की व्यापक आलोचना हुई थी. सांसद जॉन ब्रिटास ने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर प्रोफेसर के खिलाफ दंडात्मक और विभागीय कार्रवाई करने की मांग की थी, वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रोफेसर की पोस्ट को हास्यास्पद करार दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)