मध्य प्रदेश: विमुक्त समुदायों की मांग, आबकारी क़ानून में हुए संशोधनों पर पुनर्विचार करें मुख्यमंत्री

मध्य प्रदेश के विमुक्त समुदाय के सदस्यों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र लिखकर हाल ही में राज्य के आबकारी अधिनियम में किए गए संशोधनों पर दोबारा विचार करने को कहा है. साथ ही उन्होंने क़ानून में आदिवासियों को मिली कुछ छूटों में उनके समुदाय को शामिल करने की भी मांग की है.

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. (फोटो साभार: फेसबुक/ChouhanShivraj)

मध्य प्रदेश के विमुक्त समुदाय के सदस्यों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र लिखकर हाल ही में राज्य के आबकारी अधिनियम में किए गए संशोधनों पर दोबारा विचार करने को कहा है. साथ ही उन्होंने क़ानून में आदिवासियों को मिली कुछ छूटों में उनके समुदाय को शामिल करने की भी मांग की है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. (फोटो साभार: फेसबुक/ChouhanShivraj)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के विमुक्त समुदाय के सदस्यों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक खुला पत्र लिखकर उन्हें मध्य प्रदेश आबकारी कानून, 1952 में किए गए हाल के संशोधनों पर पुनर्विचार करने को कहा है. इस पत्र का देश भर के 83 कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों ने समर्थन किया है.

मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम औपनिवेशिक युग का कानून है जो राज्य में सभी शराब के आयात, निर्यात, बिक्री, निर्माण और परिवहन को विनियमित करता है.

इस पत्र में दो महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है – पहला, संशोधन कुछ अपराधों की गंभीरता को बढ़ाता है, जिसमें नकली शराब से मौत का अपराध दोहराने पर सजा-ए-मौत का प्रावधान किया गया है.  दूसरा, जबकि मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की है कि आदिवासियों को अब महुआ बनाने और बेचने की अनुमति दी जाएगी, और उनके खिलाफ आबकारी अधिनियम के तहत दर्ज गौण मामलों को वापस ले लिया जाएगा, इस तरह की छूट विमुक्त समुदायों को नहीं दी गई.

इस साल की शुरुआत में क्रिमिनल जस्टिस एंड पुलिस एकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि कैसे 1952 के अधिनियम का इस्तेमाल विमुक्त, एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है.

विमुक्त समुदाय के सदस्यों का पूरा पत्र नीचे पढ़ सकते हैं.

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माननीय मुख्यमंत्री जी,

हम आपको यह पत्र/याचिका आपके द्वारा 5 अक्टूबर 2021 को की गई घोषणा के संदर्भ में लिख रहे हैं. झाबुआ में आयोजित जनजातीय सम्मलेन में आपने कहा था कि जनजातीय भाई-बहनों को नई आबकारी नीति के तहत परंपरागत शराब बनाने और बेचने की छूट मिलेगी. आपकी इस घोषणा की हम सराहना करते हैं और इससे जुड़ी हमारी चिंता और मांगों को आपके सामने रखना चाहते हैं.

जैसा कि आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश में 51 विमुक्त, घुमक्कड़ और अर्धघुमक्कड़ समुदाय हैं. इन समुदायों में से कुछ समुदायों की जीवन शैली और संस्कृति अनुसुचित जनजातियों से मिलती है. कंजर और कुचबंदिया समुदायों में व्यक्ति के जन्म से उसकी मृत्यु तक सारे पर्वो में पारंपरिक रूप से महुए की शराब का उपयोग होता है और समुदाय के लोग अपनी आजीविका के लिए भी महुए की शराब छोटी मात्रा में बेच के अपना गुज़ारा करते हैं.

लेकिन अगस्त 2021 में आबकारी अधिनियम में किए गए हेरिटेज लिकर (पारंपरिक शराब) से संबंधित संशोधन का फायदा हमारे समुदायों को नहीं मिल पाएगा क्योंकि इतनी समानता के बावजूद हमें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं गिना जाता है.

आपकी सरकार से हमारी यही मांग है कि इस नई आबकारी नीति में विमुक्त समुदायों को भी महुए की शराब बनाने व बेचने की छूट मिल सके, ऐसा प्रावधान किया जाए. इस कदम से हमारी आजीविका और संस्कृति भी सुरक्षित रहेंगी और हमारे समुदाय के लोग झूठे मुक़दमे और पुलिस के दमन से भी बच पाएंगे.

आपकी घोषणा के दूसरे हिस्से में आपने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ किए गए गौण आपराधिक मामले भी वापस लिए जाएंगे. यह बहुत सराहनीय कदम है. इसी संदर्भ में हम अपने समुदायों से जुड़ी कुछ चिंताएं और तथ्य आपके समक्ष रखना चाहते हैं.

यह देखा गया है कि आबकारी संबंधित अपराधों या दूसरे गौण अपराधों में पुलिस हमारे समुदायों को निशाना बनाती है. एक शोध यह दिखाता है कि 2018-2020 के बीच आबकारी अधिनियम के तहत की गई गिरफ्तारियों में से 56% गिरफ़्तारियां आदिवासी, दलित, अन्य पिछड़े वर्ग और विमुक्त समुदाय के लोगों की हुईं. खासकर विमुक्त समुदाय के अभियुक्तों की संख्या उनकी सामान्य जनसंख्या से भी अधिक है. और तो और  ज़्यादातर मामलों में उन्हे अपने घरों और निजी स्थानों से बहुत छोटी मात्रा में शराब रखने के अपराध में गिरफ्तार किया जाता है.

इस शोध में यह भी पाया गया कि गिरफ़्तारी के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) के मामले में दिए गए निर्देश का पालन नहीं किया जा रहा.

इस मामले में माननीय न्यायालय ने गिरफ़्तारी के लिए कुछ शर्ते चिह्नित की हैं, जिन्हें पूरा करना अनिवार्य है. इन चिह्नित शर्तों में से एक शर्त यह है कि जिन मामलों में 7 साल या उससे कम अवधि के कारावास का प्रावधान है, उन मामलों में गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं होगी.

उक्त शोध में यह भी पाया गया कि ज़्यादातर मामले धारा 34 (1) तहत दर्ज किये गए हैं जिसमें कारावास की अवधि 7 साल से कम है, और इन मामलों में अनावश्यक गिरफ्तारी से काफी हद तक बचा जा सकता है. इसलिए हम यह मांग करते हैं कि विमुक्त समुदायों के खिलाफ भी ऐसे गौण मामले वापस लिए जाएं.

साथ ही धारा 49ए में संशोधन द्वारा मृत्युदंड का जो प्रावधान किया गया हैं वह हमारे समुदाय के दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक है. उक्त शोध के आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस प्रावधान का भी हमारे समुदाय के खिलाफ दुरुपयोग हो सकता है. इसलिए हम मांग करते हैं कि संशोधन से फांसी की सज़ा को हटाया जाए.

अतः हम आपकी सरकार से आशा करते है कि लंबे समय से चली आ रही हमारे समुदाय की इन निम्नलिखित मांगों को स्वीकार कर ठोस कदम उठाएगी:

1. नई आबकारी नीति में विमुक्त समुदायों को भी महुए की शराब बनाने व बेचने की छूट मिलेगी.
2. विमुक्त समुदायों के खिलाफ आबकारी अधिनियम के तहत दर्ज किए गए गौण आपराधिक मामले वापस लेगी.
3. आबकारी अधिनियम में किए गए संशोधन से फांसी की सज़ा हटाई जाएगी.

यह पूरा पत्र और इसका समर्थन करने वालों के नाम नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं.

Vimukta Communities Letter to MP CM by The Wire on Scribd

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