रिथिंक आधार, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, बहुजन इकोनॉमिस्ट्स, पीयूसीएल, द इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, एमकेएसएस और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स सहित 14 संगठनों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि इससे सामूहिक तौर पर मताधिकार से वंचित किया जा सकता है.
नयी दिल्ली: लोकसभा ने सोमवार को विपक्ष के विरोध के बीच निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021 को मंजूरी दे दी.
इसके तहत मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता पहचान कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को चुनाव सुधारों से जुड़े इस विधेयक के मसौदे को अपनी मंजूरी दी थी. विधेयक के मुताबिक, चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष (जेंडर न्यूट्रल) बनाया जाएगा.
'The Election Laws (Amendment) Bill, 2021' passed in Lok Sabha.
The Bill seeks to allow electoral registration officers to seek the Aadhaar number of people who want to register as voters "for the purpose of establishing the identity".
House adjourned till tomorrow, 21st Dec. pic.twitter.com/QjGDjGhl4j
— ANI (@ANI) December 20, 2021
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि निर्वाचन सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. केंद्र सरकार समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से चुनाव सुधार हेतु प्रस्ताव प्राप्त कर रही है जिसमें भारत का निर्वाचन आयोग भी शामिल है. निर्वाचन आयोग के प्रस्तावों के आधार पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के उपबंधों में संशोधन करने का प्रस्ताव है.
इसी के अनुरूप निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक 2021 प्रस्तावित किया गया है.
इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक ही व्यक्ति के विभिन्न स्थानों पर नामांकन पर लगाम लगाने के लिए आधार प्रणाली के साथ निर्वाचक सूची को जोड़ने के उद्देश्य से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 23 में संशोधन करने की बात कही गई है.
इस विधेयक का नागरिक समाज संगठनों ने कड़ा विरोध किया. नागरिक अधिकार, चुनाव सुधार, अकादमिक और डिजिटल अधिकार की दिशा में काम कर रहे संगठनों का कहना है कि आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने वाला कोई भी प्रस्ताव एक गंभीर मामला है, जिसके लिए सावधानी और सार्वजनिक परामर्श की जरूरत होती है.
रिथिंक आधार, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, बहुजन इकोनॉमिस्ट्स, द पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, द इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, एमकेएसएस और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स सहित 14 संगठनों ने इस योजना का विरोध करते हुए बयान जारी कर कहा है कि इससे सामूहिक तौर पर मताधिकार से वंचित किया जा सकता है.
बयान में कहा गया, ‘मतदान के लिए पहचान से जुड़ी कठोर प्रक्रियाएं वोट देने के लोगों के अधिकार के लिए बाधा के रूप में काम करती हैं और इसे सही तौर पर मतदाताओं का दमन कहा जाता है, और यह सीधे लोकतंत्र पर प्रहार है, जिसकी किसी भी लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.’
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक भागीदारी का हक़ एक संवैधानिक अधिकार है जो कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत भी एक अधिकार के बतौर शामिल है.
Its extremely unfortunate that India's present ruling government thinks that wide-ranging changes to India's electoral law system – allowing the dangerous use of Aadhaar #digitalidentity – should be pushed through without debate, study in Parliament. Petrified of study, consensus https://t.co/5rg3GPS80R
— Raman Chima (@tame_wildcard) December 20, 2021
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, यह विधेयक चुनाव पंजीकरण अधिकारियों को यह अनुमति देता है कि वह पहले से ही मतदाता सूची में शामिल लोगों से उनकी आधार संख्या मांगें ताकि मतदाता सूची में उनकी एंट्री को प्रमाणित किया जा सके.
इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित कर सके कि एक ही व्यक्ति के नाम पर पंजीकरण एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों की सूची में है या नहीं.
इस संशोधन विधेयक में कहा गया है कि मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और मतदाता सूची में किसी भी एंट्री को आधार संख्या उपलब्ध कराने में असमर्थ होने पर डिलीट नहीं किया जाएगा. इस तरह के लोगों को अन्य वैकल्पिक दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी जाएगी.
इसके साथ ही मतदाता सूची को तैयार करने या उनका पुनरीक्षण करने के संबंध में कट ऑफ तारीखों के रूप में किसी कैलेंडर वर्ष में एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्टूबर को शामिल करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 14 के खंड (ख) का संशोधन करने की बात कही गई है.
निर्वाचन आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति देने के लिए कई ‘कट ऑफ तारीख’ की वकालत करता रहा है.
आयोग ने सरकार से कहा था कि एक जनवरी की ‘कट ऑफ तारीख’ के कारण मतदाता सूची की कवायद से अनेक युवा वंचित रह जाते हैं. केवल एक ‘कट ऑफ तारीख’ होने के कारण दो जनवरी या इसके बाद 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति पंजीकरण नहीं करा पाते थे और उन्हें पंजीकरण कराने के लिए अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता था.
विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय समिति द्वारा संसद के जारी शीतकालीन सत्र में हाल में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि विधि मंत्रालय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14-ख में संशोधन करना चाहता है. इस संशोधन में मतदाता पंजीकरण के लिए हर वर्ष चार ‘कट ऑफ तिथियों का प्रस्ताव किया गया था .
विधेयक के दस्तावेज के अनुसार, कानूनों को जेंडर न्यूट्रल बनाने के लिए ‘पत्नी’ शब्द को पति या पत्नी से बदलने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 20 तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 60 का संशोधन करने का प्रावधान किया गया है.
मौजूदा चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका पात्र नहीं है.
यह भी बताया गया है कि मतदान केंद्र के रूप में प्रयोग होने वाले, मतदान के बाद गणना, मतपेटियों, वोटिंग मशीनों एवं मतदान संबंधी सामग्रियों के भंडारण के लिए प्रयोग में आने वाले परिसरों को समर्थ बनाने के संबंध में भी प्रावधान किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)