पंजाब लिंचिंगः अख़बारों के संपादकीय में उठी प्रशासन से स्पष्ट प्रतिक्रिया की मांग

अंग्रेज़ी के प्रमुख अख़बारों ने पंजाब में 'बेअदबी' की घटनाओं पर प्रकाशित संपादकीयों को नेताओं द्वारा मॉब लिंचिग की घटना की निंदा न किए जाने पर केंद्रित किया है. इनमें कहा गया कि यह चुप्पी चुनावों से पहले मतदाताओं के एक वर्ग को नाराज़ नहीं करने के उद्देश्य से है.

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(फोटोः स्क्रीनशॉट)

अंग्रेज़ी के प्रमुख अख़बारों ने पंजाब में ‘बेअदबी’ की घटनाओं पर प्रकाशित संपादकीयों को नेताओं द्वारा मॉब लिंचिग की घटना की निंदा न किए जाने पर केंद्रित किया है. इनमें कहा गया कि यह चुप्पी चुनावों से पहले मतदाताओं के एक वर्ग को नाराज़ नहीं करने के उद्देश्य से है.

(फोटोः स्क्रीनशॉट)

नई दिल्लीः अंग्रेजी भाषा के अखबारों के संपादकीय मुख्य रूप से पंजाब में बेअदबी के प्रयासों के बाद नेताओं द्वारा मॉब लिंचिंग की निंदा नहीं करने पर केंद्रित हैं.

द ट्रिब्यून ने ‘लिंचिंग्स इंडिफेंसबल’ शीर्षक के साथ संपादकीय में कहा कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किसी भी दुर्भावनापूर्ण कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए लेकिन दो लोगों की निर्मम हत्या इस कानून की घोर अवहेलना को दर्शाती है.

अखबार ने अमृतसर बेअदबी घटना के लिए एसजीपीसी को जिम्मेदार ठहराया, जिनकी वजह से स्थिति नियंत्रण से बाहर गई.

अखबार ने कपूरथला जिले की घटना में सबूतों की कमी की ओर इशारा करते हुए इस तरह के मामलों से निपटने में आगामी चुनावों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला.

संपादकीय में कहा गया, ‘बेअदबी पंजाब में अत्यंत भावनात्मक मुद्दा है, 2015 में भी इस तरह की घटनाओं ने राज्य को हिलाकर रख दिया था. राज्य में अगले साल होने जा रहे चुनावों की वजह से निहित स्वार्थ सांप्रदायिक सौहार्द को बाधित करने में पूरी ताकत झोंक सकते हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में बेअदबी के प्रयास की निंदा की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि सिखों के सबसे पवित्र स्थल पर इसके बाद जो अपराध हुआ, वह  भयानक था.

संपादकीय में कहा गया, ‘एसजीपीसी प्रमुख से लेकर अकाल तख्त जत्थेदार तक, राज्य के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके से लेकर नए मुख्यमंत्री तक नेताओं ने बेअदबी के प्रयास की आलोचना की लेकिन उन्होंने उन लोगों के बारे में एक शब्द नहीं कहा या उनकी निंदा नहीं की, जिन्होंने इन घटनाओं को अंजाम देकर कानून अपने हाथ में लिया और आरोपियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी.’

संपादकीय में कहा गया कि यह चुप्पी चुनावों से पहले मतदाताओं के वर्ग को नाराज नहीं करने के उद्देश्य से काम करती है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय में लिंचिंग को चिंताजनक बताते हुए इंडियन एक्सप्रेस की तरह ही समान शब्दों का उपयोग कर मॉब लिंचिंग को भयानक बताया.

अखबार के संपादकीय में कहा गया, ‘विशेष रूप से सबसे निंदनीय कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा बेअदबी के आरोपी को सार्वजनिक रूप से फांसी देने की मांग करना था.’

संपादकीय में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि किसी तरह से पुलिस और सीबीआई 2015 की बेअदबी की घटनाओं को सुलझाने में भी असफल रही है, जो अभी भी कई सिखों के लिए ताजा घाव बना हुआ है और इसी घाव ने इस तरह की हिंसक भीड़ घटनाओं के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा की.

संपादकीय में कहा गया, ‘न्याय नहीं मिलने की सामूहिक भावना को लिंचिंग का कारण या बहाना नहीं बनाया जा सकता.’

अखबार ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समय में इस तरह के विभाजन का फायदा उठाने की संभावनाओं को भी उजागर किया.

हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय में पंजाब में कानून और व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंता जताई गई और इसे अस्थिर पंजाब में राजनीति और धर्म का मिश्रण बताया.

हालंकि संपादकीय में पंजाब की सीमाओं, सरकार के अशांति को इस्तेमाल करने, चुनाव और किसान प्रदर्शनों पर ज्यादा जोर दिया गया था- बिना यह ध्यान दिए कि क्या इनमें से कोई भी बेअदबी के दावों को लेकर ऐसी निर्मम प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकता था.

इसके अंत में बेअदबी की घटनाओं की जांच- जिसमें लिंचिंग की घटनाओं बस नाम के लिए शामिल किया गया था-  और संभावित रूप से किसी बड़ी साजिश का पता लगाने की मांग गई थी.

संपादकीय में कहा गया, ‘मौजूदा संदर्भ को देखते हुए लिंचिंग की इन दोनों घटनाओं की उचित रूप से पूर्ण जांच की जानी चाहिए ताकि इसके पीछे की मंशा का पता लगाया जा सके और अगर इन घटनाओं में कोई बड़ी साजिश है तो इसके पीछे जिम्मेदार लोगों और एजेंसियों की पहचान करनी चाहिए. पंजाब को इस तरह जलने नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह पूरे भारते के लिए बुरा होगा. ‘

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में  पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)