प्रेस क्लब ने संसद में मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबधों को हटाने का आग्रह किया

पिछले वर्ष कोविड-19 फैलने के बाद से संसद सत्र के दौरान प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बहुत सीमित संख्या में पत्रकारों, फोटो पत्रकारों, कैमरामैन को संसद परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है. दूसरी ओर कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश पर लगे कथित प्रतिबंध के ख़िलाफ़ मीडियाकर्मियों ने विरोध प्रदर्शन किया है.

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(फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

पिछले वर्ष कोविड-19 फैलने के बाद से संसद सत्र के दौरान प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बहुत सीमित संख्या में पत्रकारों, फोटो पत्रकारों, कैमरामैन को संसद परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है. दूसरी ओर कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश पर लगे कथित प्रतिबंध के ख़िलाफ़ मीडियाकर्मियों ने विरोध प्रदर्शन किया है.

(फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली/बेलगावी: प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने राजधानी दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से कोविड-19 खतरे के मद्देनजर संसद परिसर में मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने का बुधवार को आग्रह किया.

वहीं, कर्नाटक में बेलगावी स्थित ‘सुवर्ण सौध’ (विधानसभा) में वीडियो पत्रकारों के प्रवेश पर पुलिस प्रशासन द्वारा कथित रोक को लेकर विभिन्न मीडिया संस्थानों के कर्मचारियों खास तौर पर टेलिविजन में काम करने वाले पत्रकारों ने परिसर के सामने बुधवार को प्रदर्शन किया.

बताया जा रहा है कि धर्मांतरण विरोधी विधेयक को कर्नाटक विधानसभा में पेश किए जाने की पृष्ठभूमि में यह कदम उठाया गया है.

दिल्ली में ‘स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ और संवैधानिक लोकतंत्र की 70वीं वर्षगांठ’ नामक विषय पर प्रेस क्लब के सेमिनार में कई वक्ताओं ने प्रेस गैलरी और संसद के केंद्रीय कक्ष में मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया.

लोकसभा सदस्य एनके प्रेमचंद्रन ने संसद के भीतर मीडियाकर्मियों की पहुंच संबंधी मांग का समर्थन करते हुए कहा, ‘उन्हें प्रवेश से वंचित करना प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ है, क्योंकि मीडिया संसद का हिस्सा है.’

उन्होंने कहा कि पत्रकारों की संसद तक पहुंच नहीं होने से लोगों को जानकारी हासिल करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाएगा.

सेमिनार में लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने भी संसद की कार्यवाही की कवरेज के लिए मीडिया तक निर्बाध पहुंच का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, ‘मीडिया संसद और लोगों के बीच संचार की मुख्य कड़ी है. अगर इसे पहुंच से वंचित किया जाता है, तो लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान होता है. आप संसद को प्रेस से अलग नहीं कर सकते हैं.’

मीडिया के प्रवेश से इनकार के विरोध में वरिष्ठ पत्रकार अनंत बैगतकर ने बीते 21 दिसंबर को राज्यसभा की मीडिया सलाहकार समिति के सचिव के पद से इस्तीफा दे दिया था.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘संसद में मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर वर्तमान में लगाए गए अनुचित प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) की भावना के अनुरूप नहीं है.’

इसमें कहा गया है, ‘क्योंकि संविधान सर्वोच्च कानून है, इसलिए हम सरकार से मीडियाकर्मियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने की अपील करते हैं.’

मालूम हो कि बीते दो दिसंबर को संसद में मीडियाकर्मियों एवं कैमरामैन के प्रवेश पर नियंत्रण लगाए जाने को लेकर पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किया था. आरोप लगाया था कि यह आने वाले दिनों में संसद सत्र के दौरान वहां से कार्यवाही को कवर करने पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ लगाने की दिशा में उठाया गया कदम है.

पिछले वर्ष कोविड-19 फैलने के बाद से संसद सत्र के दौरान प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बहुत सीमित संख्या में पत्रकारों, फोटो पत्रकारों, कैमरामैन को संसद परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है.

कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ मीडिया कर्मियों का प्रदर्शन

कर्नाटक के बेलगावी स्थित ‘सुवर्ण सौध’ (विधानसभा) में वीडियो पत्रकारों के प्रवेश पर पुलिस प्रशासन द्वारा कथित रोक को लेकर विभिन्न मीडिया संस्थानों के कर्मियों खास तौर पर टेलिविजन में काम करने वाले पत्रकारों ने परिसर के सामने बुधवार को प्रदर्शन किया. यहां विधानमंडल का सत्र चल रहा है.

हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी के हस्तक्षेप के बाद विरोध प्रदर्शन एक घंटे के भीतर ही वापस ले लिया गया. कागेरी ने स्पष्ट किया कि न तो उनकी तरफ से और न ही उनके कार्यालय की तरफ से मीडिया को रोकने का कोई का निर्देश दिया गया है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने गृहमंत्री और पुलिस आयुक्त (बेलगावी) से बात की. उन दोनों ने भी स्पष्ट किया कि उन्होंने कोई नए निर्देश जारी नहीं किए हैं. ऐसा प्रतीत होता कि किसी स्तर पर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है.’

मीडियाकर्मियों ने जब उन्हें ‘पुलिस अधीक्षक के आदेश’ के बारे में बताया तो अध्यक्ष ने कहा, ‘अगर कोई आदेश जारी किया गया है तो मैं उसके बारे में जानकारी लूंगा और उसकी सत्यता तथा पृष्ठभूमि के बारे में पता लगाऊंगा. इस बीच अध्यक्ष के तौर पर मैं सरकार और अधिकारियों को आपको सामान्य की तरह अपनी गतिविधियां जारी रखने की अनुमति देने का निर्देश दूंगा. आप अपना काम जारी रखें.’

सूत्रों के अनुसार, स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर अपने उच्च अधिकारियों से निर्देश के बाद प्रवेश प्रतिबंधित किया था.

बीते 21 दिसंबर को कुछ पत्रकार और वीडियो पत्रकार मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से प्रतिक्रिया लेने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे थे और इस घटना से वरिष्ठ अधिकारी नाराज हो गए और उन्होंने सुवर्ण सौध परिसर में मीडिया को ‘नियंत्रित’ करने का निर्णय लिया.

पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि विधानसभा में सरकार द्वारा धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश करने की पृष्ठभूमि में मीडिया के प्रवेश को प्रतिबंधित करने से कई तरह के संदेह उत्पन्न हुए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, धर्मांतरण विरोधी विधेयक को कर्नाटक विधानसभा में पेश किए जाने के एक दिन बाद मीडियाकर्मियों को विधेयक पर निर्धारित बहस से पहले बुधवार को सुवर्ण सौध में प्रवेश करने से रोक दिया गया.

सुबह जब मीडियाकर्मी विधानसभा पहुंचे तो मार्शलों, जिन्होंने कोई सटीक कारण नहीं बताया, ने कहा कि अध्यक्ष के कार्यालय से मीडियाकर्मियों को सदन में प्रवेश करने से रोकने के निर्देश आए हैं. हालांकि स्पीकर विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.

पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा शासित कर्नाटक सरकार द्वारा मीडिया प्रतिबंधों की निंदा की और कहा कि यह संविधान का एक पैर तोड़ने का प्रयास है.

कुमारस्वामी ने एक ट्वीट में कहा, वे (भाजपा) जो कह रहे हैं कि वे संविधान को बदल देंगे, उन्होंने अब हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को अनुमति नहीं देकर हमारे संविधान का एक स्तंभ तोड़ दिया है.’

कुमारस्वामी ने आगे कहा, ‘अध्यक्ष कहते हैं कि उन्हें मीडिया प्रतिबंध के बारे में पता नहीं है, लेकिन मीडिया को विधानसभा में शामिल नहीं होने का संदेश कैसे भेजा गया, यह स्पीकर कार्यालय की चूक है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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