देश भर के डॉक्टरों के प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होने की वजह क्या है

देश भर के डॉक्टरों की मांग है कि नीट-पीजी पास किए 50,000 एमबीबीएस डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग कराई जाए, ताकि नए डॉक्टरों की भर्ती से उन पर मरीज़ों का बोझ घटे और कोरोना वायरस महामारी की आगामी आशांका को लेकर वे ख़ुद को उचित रूप से तैयार कर सकें.

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New Delhi: Doctors stage a protest outside Maulana Azad Medical College over postponement of National Eligibility Entrance Test postgraduate (NEET PG) counselling 2021, in New Delhi, Monday, Dec. 27, 2021. (PTI Photo/Kamal Kishore)(PTI12 27 2021 000024B)

देश भर के डॉक्टरों की मांग है कि नीट-पीजी पास किए 50,000 एमबीबीएस डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग कराई जाए, ताकि नए डॉक्टरों की भर्ती से उन पर मरीज़ों का बोझ घटे और कोरोना वायरस महामारी की आगामी आशांका को लेकर वे ख़ुद को उचित रूप से तैयार कर सकें.

नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी के खिलाफ प्रदर्शन करते डॉक्टर्स. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस के ओमीक्रॉन वैरिएंट का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है, लेकिन इन सब के बीच देश के हजारों सरकारी डॉक्टर्स अस्पताल बंद कर विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं.

उनकी मांग है कि राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-पोस्टग्रैजुएट (नीट-पीजी) पास किए 50,000 एमबीबीएस डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग कराई जाए.

नीट-पीजी की परीक्षा इस साल सितंबर में हुई थी. काउंसलिंग के बाद इन डॉक्टर्स को मेडिकल कॉलेजों में आगे की पढ़ाई और इलाज करने के लिए दाखिला मिलता है.

नीट-पीजी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) द्वारा कराया जाता है, जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के अधीन आता है. यह देश में सभी मेडिकल प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है.

देश के डॉक्टर्स इसलिए तत्काल काउंसलिंग की मांग कर रहे हैं, क्योंकि नये डॉक्टरों की भर्ती से उन पर मरीजों का बोझ घटेगा और महामारी की आगामी आशांका को लेकर खुद को सुचारू रूप से तैयार कर सकेंगे.

पोस्टग्रैजुएट परीक्षा पास करने के बाद युवा डॉक्टर्स तीन साल की अवधि के लिए जूनियर रेजिडेंट के रूप में काम करते हैं. इस दौरान मुख्य रूप से उनकी ट्रेनिंग कराई जाती है, जहां वे इमरजेंसी विभाग में मरीजों का इलाज करते हैं और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में योगदान देते हैं.

चूंकि जूनियर रेजिडेंट के पद पर नियुक्ति रोक दी गई है, इसलिए भारत के अस्पतालों में कम से कम 50,000 डॉक्टरों की कमी हो गई है, जिसके कारण कोरोना महामारी की गंभीरता और बढ़ने पर स्थिति अत्यधिक भयावह हो सकती है.

आमतौर पर नीट-पीजी परीक्षा हर साल जनवरी में कराई जाती थी, लेकिन इस साल महामारी के चलते इसे सितंबर तक टाल दिया गया था. अब चूंकि पहले परीक्षा जनवरी में होती थी, तो काउंसलिंग मार्च तक हो जाती थी. लेकिन इस साल सरकार ने कहा था कि देरी के चलते यह नवंबर में होगी. अब दिसंबर भी बीत गया है और काउंसलिंग नहीं हो पाई है, जिसके चलते डॉक्टरों में काफी रोष है.

नीट-पीजी उत्तीर्ण छात्रों की काउंसलिंग में देरी की एक बड़ी वजह केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 फीसदी आरक्षण लागू करने की घोषणा भी है. ईडब्ल्यूएस कोटा कानून जनवरी 2019 में संसद से पारित हुआ था.

इस कोटा के तहत पात्र होने के लिए सामान्य श्रेणी से आने वाले व्यक्ति की पारिवारिक आय आठ लाख रुपये सालाना से अधिक नहीं होनी चाहिए. इस कानून के कई प्रावधानों को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए कई लोगों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

कोर्ट ने कई सुनवाई के बाद इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया है, जहां यह मामला लंबित है.

इस बीच जुलाई, 2021 में एनटीए ने एक नोटिस जारी कर कहा है कि सरकार 2021-22 सत्र से ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने जा रही है. जबकि इस कानून पर अभी सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आया है.

इस घोषणा के चलते कुछ वर्गों में रोष उत्पन्न हुआ, जिसके बाद एक नीट-पीजी अभ्यार्थी एनटीए के इस नोटिफिकेशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी.

नीट-पीजी पास कर चुके छात्र ने दलील दी कि अभी तक ईडब्ल्यूएस कोटा कानून की संवैधानिक वैधता तय नहीं की गई है, इसलिए भारत सरकार इसे लागू नहीं कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की भी सुनवाई शुरू की, जिसमें एक बड़ा सवाल यह उठा कि आखिर सरकार ने किस आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा में आठ लाख रुपये की आय सीमा निर्धारित की है. चूंकि यही सीमा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण में भी है, इसलिए न्यायालय ने सरकार से सवाल पूछा कि क्या वे ‘असमान को समान’ बनाना चाह रहे थे.

मामले की 25 नवंबर की सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण के प्रावधानों पर विचार करने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन करेगी और इसकी रिपोर्ट आने तक काउंसलिंग नहीं कराई जाएगी.

इस बीच जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि क्या वे इस कोटा के अमल को अगले साल तक के लिए टाल सकते हैं, क्योंकि काउंसलिंग को रोकना छात्रों के पूरे साल को प्रभावित करेगा.

अब इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में छह जनवरी 2022 को होनी है.

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इसे लेकर एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है.

द वायर साइंस  ने मंत्रालय के अधिकारियों से इस संबंध में सवाल-जवाब किया और रिपोर्ट की डेडलाइन पूछी, लेकिन उन्होंने कोई जवाब देने से इनकार कर दिया.

हालांकि इसी के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने छह दिसंबर को कानून मंत्रालय को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को बताएं कि हम काउंसलिंग पर आगे बढ़ना चाहते हैं, क्योंकि इसमें देरी करने पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

कानून मंत्रालय से कहा गया था कि वे इस दिशा में जरूरी कदम उठाएं और जल्द से जल्द कोर्ट का रुख करें.

द वायर साइंस  ने स्वास्थ्य मंत्रालय और कानून मंत्रालय दोनों से यह जानना चाहा कि इसके बाद क्या हुआ, लेकिन अब तक किसी ने कोई जवाब नहीं दिया.

इस मामले को कई सांसदों ने संसद के शीतकालीन सत्र में उठाया था. हालांकि सरकार ने अपने लिखित जवाब में दावा किया कि ईडब्ल्यूएस कोटा में आठ लाख की सीमा तय करने का फैसला व्यापक अध्ययन के बाद लिया गया था. हालांकि, यही सरकार अब इस पर पुनर्विचार कर रही है.

बहरहाल डॉक्टरों का आंदोलन जारी है, अधिकतर अस्पताल बंद हैं, मरीजों को बेहद तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है, महामारी की तीसरी लहर का खतरा बढ़ता ही जा रहा है और वरिष्ठ डॉक्टरों ने तत्काल समाधान न निकलने पर इस्तीफा देने की भी चेतावनी दी है.

इन सब के बीच मोदी सरकार महज आश्वासन दे रही है कि इसका हल निकाला जा रहा है. हालांकि अभी तक कुछ भी ठोस तौर पर निकलकर सामने नहीं आया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग नहीं होती है तो हमें महामारी का बेहद विकराल रूप देखना पड़ सकता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)