यूपी: गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों-छात्रों ने कुलपति के ख़िलाफ़ मोर्चा क्यों खोल रखा है

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह अपने 15 महीनों के कार्यकाल के दौरान लगातार विवादों में रहे हैं. फैकल्टी सदस्य और विद्यार्थी उन पर अनियमितता, मनमाने निर्णयों और शिक्षकों के साथ बदसलूकी के आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं.

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गोरखपुर विश्वविद्यालय. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह अपने 15 महीनों के कार्यकाल के दौरान लगातार विवादों में रहे हैं. फैकल्टी सदस्य और विद्यार्थी उन पर अनियमितता, मनमाने निर्णयों और शिक्षकों के साथ बदसलूकी के आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं.

गोरखपुर विश्वविद्यालय. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले के दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुलपति की कार्य प्रणाली और उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के खिलाफ शिक्षक और छात्र-छात्राएं सड़क पर आ गए हैं. कुलपति के खिलाफ सत्याग्रह करने पर कुलपति के आदेश पर हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त को निलंबित कर दिया गया है और उनके खिलाफ जांच के लिए कमेटी बना दी गई है.

प्रो. गुप्त का समर्थन करने वाले सात प्रोफेसरों को एक दिन का वेतन काटते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. इसके बावजूद छात्रों और शिक्षकों ने विश्वविद्यालय में शीतकालीन अवकाश होने तक सत्याग्रह किया.

हालत इतने आगे बढ़ गए कि कुलाधिपति/राज्यपाल के ओएसडी को गोरखपुर आाना पड़ा. छात्रों और शिक्षकों ने कुलपति को हटाने की मांग की है और उन्हें न हटाए जाने पर शीतावकाश के बाद फिर आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है.

कुलपति प्रो. राजेश सिंह को गोरखपुर विश्वद्यिालय का कार्यभार संभाले हुए 15 महीने हो गए हैं. इस दौरान वे लगातार विवादों में हैं. उनके खिलाफ आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है.

उन पर विश्वविद्यालय के अधिनियम, परिनियम की अवहेलना करते हुए मनमाने ढंग से कार्य करने, राज्य सरकार से स्वीकृति बिना ठीक ढंग से पाठ्यक्रम व जरूरी व्यवस्थाएं किए पांच दर्जन से अधिक पाठ्यक्रमों को शुरू कर देने, शिक्षकों का उत्पीड़न करने से लेकर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे हैं.

प्रो. राजेश सिंह गोरखपुर विश्वविद्यालय के आने के पहले बिहार के बिहार के पूर्णिया में कुलपति थे. वहां भी पूरे कार्यकाल के दौरान विवाद में रहे. उनके खिलाफ शिकायतों की जांच लोकायुक्त के यहां चल रही है. लोकायुक्त के यहां जांच लंबित होने के बावजूद गोरखपुर विश्वविद्यालय का कुलपति बनाए जाने पर भी सवाल उठे थे.

प्रो. राजेश सिंह ने यहां आते ही बड़ी-बड़ी बातें की थीं. इसमें विश्वविद्यालय में रोजगा परक पाठ्यक्रमों को शुरू करने और विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की बात कही लेकिन जल्द ही उनकी कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाजें उठने लगीं.

बैठकों में कुलपति के डांटने-डपटने वाली शैली, बात-बात पर नोटिस दिए जाने को लेकर पहले दबे स्वर में विरोध के स्वर उठे लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में कोविड-19 संक्रमण से दो शिक्षकों की मौत पर कुलपति के ‘संवेदनहीन रवैये’ पर कुछ शिक्षकों ने मुखर होकर आवाज उठाई.

टकराव और विवाद का सिलसिला

पिछले सात-आठ महीनों में कुलपति का विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. विनोद सिंह, गोरखपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (गुआक्टा) के पदाधिकारियों, पूर्व रजिस्ट्रार से टकराव हुआ.

पिछले वर्ष अप्रैल महीने में कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने तत्कालीन रजिस्ट्रार/ कुलसचिव ओमप्रकाश पर असहयोग का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटा दिया था और प्रो. अजय सिंह को कार्यवाहक कुलसचिव रजिस्ट्रार बना दिया.

तत्कालीन रजिस्ट्रार ओमप्रकाश भी अड़ गए और उन्होंने कुलपति को चुनौती देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार कुलपति उन्हें पद से नहीं हटा सकते. बाद में शासन की तरफ से भी कहा गया कि रजिस्ट्रार को कुलपति नहीं हटा सकते. यह झगड़ा तब शांत हुआ जब रजिस्ट्रार का तबादला कर दिया गया.

इसके बाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. विनोद सिंह से कुलपति का तब टकराव हुआ जब कोरोना से दिवंगत हुए दो शिक्षकों के परिजनों को शिक्षक कल्याण कोष से अनुग्रह राशि देने के लिए उन्होंने कुलपति को पत्र लिखा. इस पर कुलपति ने कहा कि यह आवेदन दोनों शिक्षकों के परिजनों की तरफ से आना चाहिए.

इस पर प्रो. विनोद सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की. उन्होंने शिक्षक संघ का चुनाव कराने लिए कुलपति से चुनाव अधिकारी नामित करने के लिए पत्र लिखा लेकिन उस पर कुलपति ने कोई जवाब नहीं दिया. इससे आहत होकर प्रो. सिंह ने शिक्षक संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

कुलपति प्रो. राजेश सिंह का गोरखपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ यानी गुआक्टा के पदाधिकारियों से भी टकराव हो चुका है. उन्होंने गुआक्टा के अध्यक्ष, महामंत्री और पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही शुरू कर दी थी. कुलपति का कहना था कि तीनों शिक्षक नेता बिना समय लिए और पूर्व अनुमति के जबरदस्ती कुलपति कक्ष में आ गए थे.

उन्होंने तीनों शिक्षक नेताओं के खिलाफ नोटिस जारी कर दी और उनके महाविद्यालयों के प्राचार्यों से इनके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा. कुलपति के इस निर्णय के खिलाफ गुआक्टा पदाधिकारियों ने आंदोलन किया और वे इस मामले को कुलाधिपति राज्यपाल से भी मिलने गए.

इस बीच उनका अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष को कुलपति द्वारा बुरी तरह डपटने वाला एक वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हो चुका है.

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग विवाद

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति ने मीडिया में दावा किया कि क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में टॉप 100 विश्वविद्यालयों में गोरखपुर विश्वविद्यालय को स्थान मिला है. उनके इस दावे पर इसी विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके प्रो. अशोक कुमार ने सवाल उठाए थे और कहा कि क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग 2022 और 2021 में भी गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम नहीं है.

वर्ष 2020 की सूची में 96 रैंक पर जो नाम दिख रहा है, उसे केवल असेसमेंट के लिए शामिल किया गया है. यह विषय सोशल मीडिया पर कई दिनों तक छाया रहा था.

इस मुद्दे पर कुलपति प्रो. राजेश सिंह विश्वविद्यालय के शिक्षकों से खफा हो गए थे. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग की उपलब्धि का बखान सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय के अधिकतर विभागाध्यक्षों और शिक्षकों ने नहीं किया.

कुलपति ने कहा कि वह जल्द ही आदेश जारी करेंगे कि सभी विभागाध्यक्ष व शिक्षक ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर एकाउंट बनाएं और रोज विश्वविद्यालय के बारे में सकारात्मक पोस्ट लिखें.

छात्र भी आंदोलित

विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं छात्रसंघ का चुनाव न कराने, छात्रावासों की खराब व्यवस्था, प्री-पीएचडी के करीब एक हजार छात्र-छात्राओं की नई प्रणाली के तहत परीक्षा कराने के मुद्दे को लेकर आंदोलित हैं.

पीएचडी में शैक्षणिक सत्र 2019-20 में प्रवेश और पढ़ाई 2018 के शोध अध्यादेश के अनुसार हुई है लेकिन उनकी अब तक परीक्षा नहीं हो सकी है. कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने नया शोध अध्यादेश जारी हुआ है और वे इसी के मुताबिक प्री-पीएचडी छात्रों की परीक्षा कराने पर अड़े हैं जिसके छात्र विरोध में हैं. प्री-पीएचडी छात्र-छात्राएं पिछले तीन महीने से इसे लेकर आंदोलन कर रहे हैं.

भाजपा के सत्ता में आने के पहले दस वर्ष बाद 2016 में छात्रसंघ का चुनाव हुआ था. उसके बाद वर्ष 2017 में चुनाव की घोषणा हुई लेकिन ऐन वक्त पर तोड़फोड़ और हिंसा की बात कर चुनाव टाल दिया गया.

उसके बाद से हर वर्ष छात्रसंघ का चुनाव कराने के लिए छात्र-छात्राएं आवाज उठा रहे हैं लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है. कुलपति राजेश सिंह द्वारा भी इस सवाल की अनदेखी किए जाने से छात्र नाराज है.

नोटिसों की सुनामी

गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति द्वारा बात-बात में दिए जा रहे नोटिस खूब चर्चा में रहते हैं. प्रो. कमलेश गुप्त बताते हैं कि उन्हें अब तक 20 से अधिक नोटिस मिल चुके हैं. अब तो उन्होंने गिनती करना भी छोड़ दिया है.

अभी हाल ही में कारण बताओ नोटिस पाए एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने बताया कि विश्वविद्यालय के 300 शिक्षकों में से करीब 100 शिक्षकों को किसी न किसी बात पर नोटिस मिल चुके हैं.

एक वरिष्ठ महिला शिक्षक को बैठक में सवाल उठाने पर अगले दिन नोटिस मिला. हालांकि यह नोटिस उन्हें बिना अनुमति लिए शहर से बाहर जाने पर दिया गया था, जबकि यह शिक्षक अवकाश के दिन ही शहर के पास ही अपने घर गई थीं.

शिक्षकों को मिलने वाले नोटिस में अक्सर दो-तीन दिन के अंदर जवाब मांगा जाता है. बहुधा मामलों में नोटिस बाद में मिलता है और मीडिया में इसकी जानकारी पहले आ जाती है.

प्रो. कमलेश गुप्ता के सत्याग्रह का समर्थन करने वाले सात प्रोफेसरों को जो कारण बताओ नोटिस मिला, उसकी खबर 21 दिसंबर को ही मीडिया में आ गई थी. बाद में यह भी खबर आ गई कि इन प्रोफेसरों को एक दिन का वेतन भी काटा जाएगा जबकि इन प्रोफेसरों को कारण बताओ नोटिस 24 दिसंबर को मिला जो 23 दिसंबर को निर्गत किया गया था. इस नोटिस को जारी करने के पहले ही 21 दिसंबर को इन सातों प्रोफेसरों का एक दिन का वेतन काटने का आदेश हो चुका था.

इन सभी प्रोफेसर ने कुलाधिपति के ओएसडी को इसकी जानकारी दी और पूछा कि दंडित करने का निर्णय ले लिए जाने के बाद आरोप पत्र निर्गत करना क्या दुर्भावना और पूर्वाग्रह नहीं है?

शिक्षक, भवन, प्रयोगशालाओं के बिना पांच दर्जन से अधिक स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रम शुरू किए गए

कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने इस सेशन में पांच दर्जन से अधिक स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों को शुरू किया है और इसमें एडमिशन भी दिया गया है.

इन पाठ्यक्रमों में इंजीनियरिंग, कृषि, होटल मैनेजमेंट एंड केटरिंग, बैंकिंग एंड इंश्योरेंस से लेकर योगा, वैदिक मैथमेटिक्स तक के पाठ्यक्रम शामिल है. तमाम विषयों में डिप्लोमा, पीजी डिप्लोमा, एडवांस डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए गए हैं. योगा के पांच पाठ्यक्रम शुरू किए हैं तो नाथ पंथ पर सर्टिफिकेट कोर्स और पीजी डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया है.

इन पाठ्यक्रमों को संचालित करने की जिम्मेदारी जिन विभागों और शिक्षकों को दी गई है उनमें से अधिकतर विभाग व शिक्षकों को इन पाठ्यक्रमों के बारे में कोई जानकारी या विशेषज्ञता नहीं हैं.

योगा व नाथ पंथ के पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी दर्शनशास्त्र विभाग को दी गई है तो राजनीति विज्ञान विभाग को फिल्म प्रोडक्शन, एडवरटाइजिंग एंड पब्लिक रिलेशन, न्यू मीडिया, इलेक्शन स्ट्रेटजी, पॉलिटिकल लीडरशिप के साथ-साथ हॉस्पिटल मैनेजेमेंट में सर्टिफिकेट कोर्स संचालित करने की जिम्मेदारी दी गई है.

इसी विभाग के एक प्रोफेसर को होटल मैनेजमेंट एंड केटरिंग के चार वर्षीय पाठ्यक्रम का कोआर्डिनेटर बनाया गया है.

एक साथ इतनी संख्या में नए पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं कि विश्वविद्यालय के सक्षम लोगों को भी नहीं पता है कि कितने पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं और किस पाठ्यक्रम में कितने एडमिशन हुए हैं.

इस संबंध में रजिस्ट्रार विश्वेश्वर प्रसाद ने पूछने पर बताया गया कि 39 नए पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं. कुछ पाठ्यक्रमों में इस वर्ष कोई एडमिशन नहीं हो पाया है.

उन्होंने ज्यादा जानकारी के लिए स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों के निदेशक प्रो. विनय पांडेय से बातचीत करने को कहा. प्रो. पांडेय से पूछने पर उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रमों की संख्या और उसमें प्रवेश की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी विश्वविद्यालय खुलने पर कार्यालय से ही मिल सकती है.

इन सभी कोर्सेज को संचालित करने का निर्णय हड़बड़ी में और प्रक्रिया का पालन न करते हुए राज्य सरकार की बिना अनुमति के करने का आरोप है.

इन पाठ्यक्रमों को संचालित करने के लिए न तो शिक्षकों का चयन किया गया है न तो कक्षाओं, प्रयोगशाला, लाइब्रेरी का प्रबंध किया गया है. जल्दबाजी में बिना तैयारी के एडमिशन ले लिया गया है और पढ़ाई भी शुरू कर दी गई है. इन पाठ्यक्रमों के लिए भारी-भरकम फीस ली गई है. कई पाठ्यक्रमों में इस वर्ष कोई एडमिशन नहीं हुआ है.

लॉ विभाग ने इस वर्ष दो स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रम-पीजी डिप्लोमा इन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स और पीजी डिप्लोमा इन साइबर लॉ में दो सेमेस्टर (एक वर्ष) का पाठ्यक्रम शुरू किया, जिसकी फीस प्रत्येक सेमेस्टर 25 हजार रुपये निर्धारित की गई है, लेकिन इन दोनों कोर्सेज के लिए इतने कम आवेदन आए कि इसे इस वर्ष शुरू नहीं किया जा सका.

लॉ विभाग पहले से शिक्षकों और शिक्षण कक्षाओं की कमी से जूझ रहा है फिर भी यहां दो नए पाठ्यक्रम शुरू किए गए. चार वर्ष पहले यहां बीए एलएलबी का पांच वर्ष का कोर्स शुरू किया गया. इस कोर्स के लिए अभी तक शिक्षण कक्ष का इंतजाम नहीं हो पाया है और इनकी कक्षाएं शिफ्ट में देर शाम तक चलानी पड़ी रही हैं.

इसके लिए कम से कम 15 शिक्षकों की जरूरत है लेकिन अभी तक संविदा पर तीन शिक्षकों की ही नियुक्ति की गई है.

यह हाल अन्य पाठ्यक्रमों का भी है. बीटेक की पढ़ाई के लिए कोई भवन ही नहीं हैं. एडमिशन दिए जाने के बाद मूल्यांकन भवन पर बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी का बोर्ड लगा दिया गया. विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में होटल मैनेजमेंट एंड केटरिंग का विभाग बनाने की बात की जा रही है. इसी तरह लड़कियों की पढ़ाई के लिए अलग से बने दीक्षा भवन के एक हिस्से को कृषि संकाय घोषित कर दिया गया है.

बताया गया है कि इन कोर्स के लिए पाठ्यक्रम बहुत हड़बड़ी में तैयार कराए गए हैं.

एक वरिष्ठ शिक्षक ने बताया कि विभागाध्यक्षों और शिक्षकों पर बहुत अधिक दबाव में डालकर आधा-अधूरा पाठ्यक्रम तैयार किया गया है. पाठ्यक्रम तैयार करने की यूजीसी द्वारा निर्धारित गाइडलाइन लर्निंग आउटकम बेस्ड कैरीकुलम फ्रेमवर्क (एलओसीएफ) का पालन नहीं किया गया है. इन कोर्सेज को पढ़ाने के लिए 40 से 50 संविदा और गेस्ट टीचर की नियुक्ति की गई है. इन शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण का पालन नहीं किए जाने का भी आरोप है.

प्रो. कमलेश गुप्ता ने कुलाधिपति को की गई शिकायत में इसको प्रमुख मुद्दा बनाया है. उन्होंने कहा कि स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों का संचालन विश्वविद्यालय के आय-व्यय को प्रभावित करता है. इसलिए उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 52 (ब) के अनुसार इसके लिए राज्य सरकार की मंजूरी आवश्यक है.

प्रो. गुप्त ने इस बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन से सवाल पूछा कि क्या बीएससी एजी, एमएससी एजी और बीटेक जैसे नए स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों के लिए राज्य सरकार से अनुमति ली गई है लेकिन इस बारे में उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया.

वे सवाल उठाते हैं कि जिस पाठ्यक्रम को चलाने के लिए न भूमि है, न भवन है, न प्रयोगशाला है, न पुस्तकालय उसके लिए शासन की अनुमति कैसे मिल सकती है?

आर्थिक संकट

विश्वविद्यालय पिछले छह महीने से आर्थिक संकट से गुजर रहा है. शिक्षकों-कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं मिल रहा है. आउटसोर्स कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिला हैं.

वर्तमान आर्थिक संकट का कारण है कि सरकार ने विश्वद्यिालय को गैर-वेतन मद में निर्धारित धनराशि नहीं दी है. आर्थिक संकट से निकलने के लिए विश्वविद्यालय दो दशक पहले की गई 52.98 करोड़ की एफडी तोड़ने जा रहा है.

विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र इसको लेकर भी सवाल उठा रहे हैं कि जब आर्थिक संकट है तो विश्वविद्यालय में फिजूलखर्ची क्यों हो रही है? बड़ी संख्या में स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों से एडमिशन से आए धन का क्या हुआ? आखिर मोटी-मोटी तनख्वाह पर सलाहकार क्यों और किसलिए रखे गए है?

वरिष्ठ प्रोफेसरों की उपेक्षा

कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर यह भी आरोप है कि उन्होंने वरिष्ठ शिक्षकों की उपेक्षा कर अपने कुछ खास शिक्षकों को ही सभी जिम्मेदारियां दे रखी हैं. अवकाश पर जाने की स्थिति में कुलपति किसको चार्ज देकर जाते हैं, यह किसी को नहीं पता रहता है.

दिसंबर महीने के आखिरी सप्ताह में जब वह शैक्षणिक अवकाश के लिए छुट्टी पर गए तो पता चला कि उन्होंने वरिष्ठता सूची में 22वें स्थान वाले प्रोफेसर अजय सिंह को कार्यभार सौंपा है. यह जानकारी भी तब पता चली जब सत्याग्रह करने वाले प्रो. कमलेश गुप्त ने कुलसचिव से यह जानकारी मांगी कि कुलपति के अवकाश पर जाने की स्थिति में कुलपति का कार्यभार कौन देख रहा है जिससे वे मिलना चाहते हैं.

कुलसचिव ने प्रो. गुप्त को लिखित रूप से बताया कि कुलपति प्रो. राजेश सिंह के अवकाश अवधि में कुलपति पद का दायित्व निर्वहन अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. अजय सिंह कर रहे हैं.

गुआक्टा के पदाधिकारियों ने भी कुलाधिपति को की गई शिकायत में आरोप लगाया है कि कुछ शिक्षकों को ही सभी पदों पर कार्यभार सौंपा गया है. इस शिकायती पत्र में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के तीन शिक्षक एक से अधिक लाभ के पद पर कार्य कर रहे है जबकि एक्ट की धारा 34 (2) में दी गई व्यवस्था के अनुसार विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय का कोई भी शिक्षक लाभ के एक से अधिक पदों पर नहीं रह सकता है.

कुलाधिपति से शिकायत

कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ आवाज लगातार राजभवन तक पहुंच रही हैं. सबसे पहले गुआक्टा अपनी शिकायतों को लेकर कुलाधिपति के पास गया. कुलाधिपति ने इस मसले पर गुआक्टा पदाधिकारियों से बातचीत भी की.

इसके बाद प्रो. कमलेश गुप्त ने कुलाधिपति को लिखित शिकायत की है. उन्होंने अपनी शिकायत में कुलपति पर शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार करने, अपशब्द कहने, धमकी देने, नियम विरुद्ध कार्य करने, कोविड प्रोटोकॉल व गाइडलाइन का पालन न करते हुए शिक्षकों-कर्मचारियों की जान खतरे में डालने, कोविड से मृत शिक्षकों को शिक्षक कल्याण कोष से अनुग्रह राशि नहीं देने, शिक्षकों पर अवैधानिक कार्य करने का दबाव डालने, शोध प्रवेश परीक्षा में अनियमितता, विज्ञापनों पर पानी की तरह पैसा बहाने, बगैर जरूरत और मांग के 75000 रुपये मासिक पर सलाहकारों की नियुक्ति करने का आरोप लगाया है.

उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि आखिर कुलपति ओएमआर शीट वाली खर्चीली और विद्यार्थियों को तनाव में डालने वाली परीक्षा पर इतना बल क्यों दे रहे हैं? इसके लिए विद्या परिषद की संस्तुति नहीं ली गई है. विश्वविद्यालय में जिन विषयों की पढ़ाई बहुविकल्पीय पद्धति से नहीं हुई है, उनकी परीक्षा भी बहुविकल्पीय पद्धति से ली जा रही है जो छात्र-छात्राओं को तनाव में डाल रही है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने कुलपति पद पर आवेदन करते समय अपने विरुद्ध पूर्णिया विश्वविद्यालय, बिहार में चल रही गंभीर जांच के तथ्य को छुपाया था.

प्रो. गुप्त का आरोप है कि कुलपति केवल और केवल अपनी मर्जी से विधि विरुद्ध आदेश सब पर थोप रहे हैं. वे पाठ्यक्रम समिति, संकाय परिषद, विद्या परिषद, प्रवेश समिति, परीक्षा समिति और वित्त समिति जैसे विश्वविद्यालय के संवैधानिक निकायों को पंगु बना चुके हैं और अब कार्यपरिषद को भी निष्प्रभावी बनाने में लगे हुए हैं.

उन्होंने प्रोफेसर राजेश सिंह जी को कुलपति पद से तत्काल हटाने और उनके कार्यकाल में हुई विश्वविद्यालय की समस्त आय-व्यय की जांच कराने की मांग की है.

सत्याग्रह पर बैठे प्रोफेसर कमलेश गुप्त व अन्य शिक्षक. (फोटो: मनोज सिंह)

प्रो. कमलेश गुप्त का निलंबन

प्रो. गुप्त को उम्मीद थी कि कुलाधिपति कार्यालय उनकी शिकायतों का संज्ञान लेगा और कार्यवाही करेगा लेकिन वह तब हैरत में पड़ गए जब कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी द्वारा भेजा गया पत्र मिला जिसमें बताया गया था कि उनके द्वारा की गई शिकायत को कुलपति को भेज दिया गया है और उनसे कहा गया है कि वे इसकी जांच कर कार्यवाही से अवगत कराएं.

प्रो. गुप्त ने इस पर सवाल उठाया कि कुलपति के खिलाफ की गई शिकायत की जांच स्वयं कुलपति कैसे कर सकते हैं?

उन्होंने 21 दिसंबर से सत्याग्रह करने की घोषणा की. सत्याग्रह के पहले ही दिन उन्हें निलंबित कर दिया गया. प्रो. गुप्त 28 दिसंबर को हिंदी विभाग के अध्यक्ष बनने वाले थे लेकिन कुलपति ने उनके निलंबन का हवाला देते हुए उनकी जगह एक दूसरे प्रोफेसर को विभागाध्यक्ष बना दिया.

प्रो. गुप्त पर विश्वविद्यालय के पठन-पाठन के माहौल को खराब करने, बिना सूचना आवंटित कक्षाओं में न पढ़ाने, समय सारिणी के अनुसार न पढ़ाने, असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए टिप्पणी करने, विद्यार्थियों को अपने घर बुलाकर घरेलू कार्य कराने तथा उनका उत्पीड़न करने, बात नहीं सुनने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा में फेल करने की धमकी देने, महाविद्यालयों में मौखिकी परीक्षाओं में धन उगाही करने, छात्राओं के प्रति ठीक से व्यवहार नहीं करने, नई शिक्षा नीति, नये पाठ्यक्रम तथा सीबीसीएस प्रणाली के बारे में दुष्प्रचार करने, सोशल मीडिया पर बिना विश्वविद्यालय के संज्ञान में लाए भ्रामक प्रचार फैलाने, अनुशासनहीनता, दायित्व निर्वहन के प्रति घोर लापरवाही तथा कर्तव्य विमुखता का आरोप लगाए गए हैं.

विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रो. गुप्त को कुलसचिव की ओर से समय-समय पर आठ नोटिस जारी किए गए हैं मगर उनकी ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया है. उनके द्वारा लगातार सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय प्रशासन और अधिकारियों की गरिमा को धूमिल किया जा रहा है. इनका यह आचरण विश्वविद्यालय के परिनियम के अध्याय 16 (1) की धारा 16 की उपधारा, 2, 3 तथा 4 तथा उत्तर प्रदेश सरकार के कंडक्ट रूल 1956 के विरुद्ध है.

निलंबन के बावजूद प्रो. गुप्त ने चार दिन तक सत्याग्रह किया और उनके सत्याग्रह को विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, पूर्व शिक्षकों सहित नगर के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों का भी समर्थन मिला. छात्रों ने भी उनके समर्थन में प्रदर्शन किया.

विश्वविद्यालय में शीतावकाश होने पर उन्होंने शहर में तीन दिन तक जनसंपर्क अभियान चलाते हुए लोगों को विश्वविद्यालय में हो रही गड़बड़ियों के बारे में बताया. उन्होंने कहा है कि वे तीन जनवरी तक इंतजार करेंगे कि कुलाधिपति कार्यालय क्या कार्रवाई करता है. इसके बाद वह आंदोलन के अगले चरण की घोषणा करेंगे.

इसी बीच राज्यपाल कुलाधिपति के विशेष कार्याधिकारी पंकज एल. जानी 26 दिसंबर को गोरखपुर आए और छात्रों, शिक्षकों, विभागाध्यक्षों, निलंबित किए गए प्रो. कमलेश गुप्त और उन सात प्रोफेसरों से भी मुलाकात की, जिन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.

उन्होंने कार्यवाहक कुलपति, कुलसचिव, प्रॉक्टर से भी बातचीत कर विश्वविद्यालय के हालात के बारे में जानकारी ली. उन्होंने कहा कि वे कुलाधिपति को अपनी रिपोर्ट देंगे.

पंकज एल. जानी से मिलने वाले शिक्षकों ने बताया कि अधिकतर विभागाध्यक्षों ने उनसे कहा कि विश्वविद्यालय की परिस्थितियां तनावपूर्ण और दबाव वाली हैं. छात्रों के प्रतिनिधिमंडल ने भी कुलपति को हटाने की मांग की और कहा कि चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) को अगले शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाए.

शीतावकाश खत्म होते ही तीन जनवरी को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षकों की आम सभा ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान कर दिया.

आम सभा में मौजूद 175 से अधिक उपस्थित शिक्षकों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हुए कुलाधिपति से तत्काल हस्तक्षेप करते हुए मौजूदा कुलपति को कार्य विरत करते हुए उनके शिक्षक एवं परिसर विरोधी कृत्यों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की है.

इसके अलावा नियमों, अधिनियमों, परिनियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए प्रो. कमलेश गुप्त के निलंबन, सात शिक्षकों की वेतन कटौती के आदेश तथा अब तक निर्गत 65 से अधिक कारण बताओ नोटिस को तुरंत वापस लेने की मांग की गई.

इस बीच सोमवार को प्रो. राजेश सिंह ने विभिन्न विभागाध्यक्षों से मुलाकात की थी. खबर यह भी है कि अब 13 विभागाध्यक्षों को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस वापस लिए जाएंगे.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)