नॉर्थ ईस्ट डायरीः चीन बोला- अरुणाचल प्राचीन काल से हमारा हिस्सा, विपक्ष ने पूछा- मौन क्यों पीएम

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, असम, नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा के प्रमुख समाचार.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, असम, नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा के प्रमुख समाचार.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

ईटानगर/आइजोल/कोहिमा/गुवाहाटी/इंफाल/अगरतला: चीन ने शुक्रवार को अरुणाचल प्रदेश में 15 और स्थानों का नाम अपनी भाषा में करने का बचाव करते हुए दावा किया कि तिब्बत का दक्षिणी भाग प्राचीन काल से चीनी क्षेत्र का हिस्सा है.

भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नाम बदलने के कदम पर गुरुवार को कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह राज्य हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा क्योंकि गढ़े गए नामों से तथ्य नहीं बदलेगा.

चीन ने भारत के पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में 15 और स्थानों के लिए चीनी अक्षरों, तिब्बती और रोमन वर्णमाला के नामों की घोषणा की, जिसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी.

मालूम हो कि चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘हमने इस तरह की रिपोर्ट देखी है. ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने का प्रयास किया है. चीन ने अप्रैल 2017 में भी इस तरह से नाम बदलने की कोशिश की थी.’

उन्होंने कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश सदैव भारत का अभिन्न अंग था और हमेशा रहेगा. अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम गढ़ने से यह तथ्य नहीं बदलेगा.’

भारत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया जानने पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘जांगनान (चीन के तिब्बत का दक्षिणी भाग) चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है.’

लिजियान ने चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर पोस्ट अपडेटेड टिप्पणियों में कहा, ‘यह प्राचीन काल से चीन का क्षेत्र रहा है.’ चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनान कहता है.

इससे पहले लिजियान ने कहा, ‘तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र से संबंधित है और यह चीन का अंतर्निहित क्षेत्र रहा है.’

लिजियान ने कहा, ‘चीन के जातीय अल्पसंख्यक जैसे मोइनबा और तिब्बती जातीय समूह इस क्षेत्र में लंबे समय से रह रहे हैं और काम कर रहे हैं और कई जगहों के नाम दिए गए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र के मानकीकृत प्रबंधन के लिए चीन में सक्षम अधिकारियों ने प्रासंगिक नियमों के अनुसार संबंधित क्षेत्र के लिए नाम प्रकाशित किए हैं. ये ऐसे मामले हैं जो चीन की संप्रभुता के अधीन हैं.’

चीन ने दूसरी बार अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के मानकीकृत चीनी नाम देने का प्रयास किया है. इससे पहले 2017 में छह स्थानों के मानकीकृत नामकरण की कोशिश की गई थी.

अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताए जाने के चीन के दावे को खारिज करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह भारत का अभिन्न अंग है. चीन शीर्ष भारतीय नेताओं और अधिकारियों के अरुणाचल प्रदेश के दौरे का विरोध करता रहता है.

कांग्रेस ने चीन के क़दम पर प्रधानमंत्री की ‘चुप्पी’ पर सवाल उठाया

कांग्रेस ने चीन के इस कदम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘चुप्पी’ पर सवाल उठाया है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चीन के इस कदम संबंधी खबरों का जिक्र करते हुए ट्विटर पर कहा, ‘अभी कुछ दिनों पहले हम 1971 के युद्ध में भारत की गौरवपूर्ण जीत को याद कर रहे थे. देश की सुरक्षा और विजय के लिए सूझ-बूझ और मजबूत फैसलों की जरूरत होती है. खोखले जुमलों से जीत नहीं मिलती.’

वही, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोदी सरकार को ‘कमजोर’ बताया और प्रधानमंत्री मोदी पर भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए चीनी खतरों पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया.

सुरजेवाला ने ट्विटर पर कहा, ‘साल के अंत में चीन हमारी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा है. चीन ने पहले ही पूर्वी लद्दाख में देपसांग मैदानों और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स का अतिक्रमण किया और कब्जा कर लिया है. चीन ने अरुणाचल में एक गांव बसाया है. ‘मिस्टर 56’ ने एक शब्द भी कहने से इंकार कर दिया. कमजोर सरकार, मौन पीएम.’

‘56 इंच का सीना’ वाले तंज का इस्तेमाल 2014 के संसदीय चुनाव अभियान के दौरान मोदी के इस दावे के संदर्भ में किया जाता है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक मजबूत नीति अपनाएंगे.

कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि प्रधानमंत्री कब चीन की कार्रवाई का मुकाबला करने के लिए मजबूत कदम उठाएंगे.

वल्लभ ने पूछा, ‘क्या हमारी प्रतिक्रिया चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाने तक सीमित होगी, जबकि भारत-चीन व्यापार 100 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया है.’

उन्होंने कहा कि सरकार को चीनी कदमों का कड़ा जवाब देना चाहिए और ऐसे हर कदम में कांग्रेस के समर्थन का आश्वासन दिया.

चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ की खबर के अनुसार चीन ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में 15 और स्थानों के लिए चीनी अक्षरों, तिब्बती और रोमन वर्णमाला के नामों की घोषणा की है. चीन अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण तिब्बत होने का दावा करता है.

भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नाम बदलने के कदम को बीते 30 दिसंबर को स्पष्ट रूप से खारिज किया था और जोर देकर कहा था कि यह राज्य हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा क्योंकि ‘गढ़े’ गए नामों से यह तथ्य नहीं बदलेगा.

गौरतलब है कि चीन द्वारा यह नवीनतम कार्रवाई मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच चल रहे गतिरोध की पृष्ठभूमि के खिलाफ की गई है. जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में एक दर्जन से अधिक भारतीय और चीनी सैनिक की मौत हो गई थी.

लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को हुई झड़प के दौरान भारत के 20 सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे. बाद में चीन ने भी स्वीकार किया था कि इस घटना में उसके पांच सैन्य अधिकारियों और जवानों की मौत हुई थी. करीब 45 सालों में भारत-चीन सीमा पर हुई यह सबसे हिंसक झड़प थी.

तब से राजनयिक और सैन्य स्तर की कई वार्ताएं हुई हैं. विवाद के कुछ बिंदुओं से दोनों पक्षों ने तनाव को कम करने के प्रयास के तहत सैनिकों की कमी की है, फिर भी पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के अन्य बिंदुओं पर भारत और चीन के सैनिक एक दूसरे का सामना करना जारी रखे हुए हैं.
इस बीच भारतीय सेना के अधिकारियों और सैटेलाइट ​से ली गईं तस्वीरों ने इस बात की पुष्टि की है कि चीनी बलों ने अरुणाचल सीमा के साथ के क्षेत्रों में भी अपनी ताकत बढ़ा दी है.

मिजोरमः काम के लिए त्रिपुरा से आए पिता-पुत्र को पुलिस ने गोली मारी

मिजोरम में खेती के लिए गए उत्तरी त्रिपुरा जिले के एक व्यक्ति और उसके बेटे को पुलिस ने गोली मार दी.

जिले के पुलिस अधीक्षक भानुपाड़ा चक्रवर्ती के अनुसार रामुहाई रियांग (40) और उनके 14 वर्षीय बेटे कंचनपुर अनुमंडल के अन्य स्थानीय लोगों के साथ अक्सर खेती के लिए पड़ोसी राज्य जाते थे.

उन्होंने बताया कि शुक्रवार दोपहर मिजोरम पुलिस ने पिता-बेटे पर गोलियां चलाईं. गोलियां चलाने का कारण अभी स्पष्ट नहीं है.

उन्होंने कहा कि मिजोरम पुलिस का दावा है कि राज्य में आते समय दोनों के पास मादक पदार्थ थे.

चक्रवर्ती ने बताया, ‘हालांकि इस दौरान रामुहाई वहां से भागने और त्रिपुरा में प्रवेश करने में सफल रहे, लेकिन उनके बेटे को मिजोरम पुलिस ने हिरासत में ले लिया.’

उन्होंने कहा, ‘हमें पता चला है कि लड़के का आइजॉल के अस्पताल में ऑपरेशन हुआ. उसकी हालत स्थिर है.’ रामुहाई का जिले के धर्मनगर अस्पताल में इलाज चल रहा है.

एसपी ने कहा कि वांगमुन पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है और जांच जारी है. अंतरराज्यीय सीमा पर अतिरिक्त बल तैनात किया गया है, जहां स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में है.

असमः कांग्रेस ने हिमंता सरकार को समर्थन की घोषणा करने वाले विधायक को निलंबित किया

मुख्यमंत्री हिमंता के साथ विधायक शशिकांत दास (फोटो साभार: एएनआई)

असम में कांग्रेस ने शुक्रवार को अपने विधायक शशिकांत दास को यह कहते हुए पार्टी से निलंबित कर दिया कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के साथ मौजूद दास ने 20 दिसंबर को घोषणा की थी कि वह सरकार में शामिल हो गए हैं लेकिन कांग्रेस में बने रहेंगे.

विधानसभा परिसर में मुख्यमंत्री के चेंबर से टिप्पणी करने के तुरंत बाद कांग्रेस ने राहा से पहली बार विधायक बने दास को कारण बताओ नोटिस दिया था और एक दिन के भीतर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था.

कांग्रेस ने बयान जारी कर कहा कि पार्टी ने अनुशासन का बार-बार उल्लंघन करने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उन्हें अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित रहने तक तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है.

दशकों से कांग्रेस में रहे दास ने कहा था कि वह शर्मा को कई वर्षों से जानते हैं और असम में सभी समुदायों के विकास के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए सक्रिय कदमों से प्रभावित हैं.

राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अक्टूबर में एक अन्य विधायक शर्मन अली अहमद को पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने के लिए निलंबित कर दिया था.

अहमद को सितंबर में दरांग जिले में बेदखली अभियान के संबंध में उनकी कथित सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसमें दो नागरिकों की मौत हो गई थी और पुलिसकर्मियों सहित 20 से अधिक घायल हो गए थे.

मौजूदा समय में 126 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या 62 है, जबकि उसकी सहयोगी अगप के नौ सदस्य हैं और यूपीपीएल के सात विधायक हैं. विपक्ष में कांग्रेस के 27, एआईयूडीएफ के 15, बीपीएफ के तीन और माकपा का एक विधायक है. एक निर्दलीय विधायक भी है.

असम में जनजातीय उग्रवाद का युग समाप्त हो गया: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने शनिवार को कहा कि राज्य में जनजातीय उग्रवाद का युग समाप्त हो गया है क्योंकि सभी उग्रवादी संगठन सरकार के साथ वार्ता के लिए आगे आ रहे हैं.

शर्मा ने संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि उल्फा (आई) द्वारा संप्रभुता की मांग एक बाधा है और उनकी सरकार गतिरोध को तोड़ने की कोशिश कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘जनजातीय उग्रवाद का युग समाप्त हो गया है… हमारी अंतिम बाधा उल्फा (आई) है. उसे छोड़ कर, अन्य सभी संगठनों ने हथियार डाल दिये हैं. ’

मुख्यमंत्री ने कहा कि नागरिक समाज संस्थाओं और छात्र संगठनों ने राज्य में जनजातीय उग्रवाद की समस्या को खत्म करने में सकारात्मक भूमिका निभाई है.

उन्होंने कहा कि असम के छह-सात जिलों को छोड़ कर राज्य से सेना हटा ली गई है और जब इस साल आफस्पा की समीक्षा की जाएगी, तब राज्य सरकार कोई व्यावहारिक निर्णय लेगी.

शर्मा ने कहा, ‘जहां तक आफस्पा की बात है, असम 2022 में कुछ तर्कसंगत कदम उठाये जाएंगे… कैसे और कब, हम नहीं जानते. लेकिन मैं आशावादी हूं. हम 2022 को उम्मीद भरे वर्ष के तौर पर देख रहे हैं. आफस्पा के बारे में कुछ सकारात्मक क्षण होंगे.’’

असम में नवंबर 1990 में आफस्पा लगाया गया था और तब से इसे हर छह महीने पर राज्य सरकार द्वारा सीमक्षा के बाद विस्तारित किया गया.

नगालैंड में सेना के हाथों पिछले साल दिसंबर में 13 आम लोगों के मारे जाने और एक अन्य घटना में एक और व्यक्ति के मारे जाने के बाद असम में भी आफस्पा हटाने की मांग ने जोर पकड़ ली है.

नगालैंड: मुख्यमंत्री की पार्टी का केंद्र से आफस्पा रद्द करने का आग्रह

नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में आम लोगों की मौत के विरोध और आफस्पा हटाने की मांग को लेकर उत्तर-पूर्व के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. (फोटो: पीटीआई)

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की पार्टी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (पीडीपीपी) ने राज्य में सशस्त्रबल (विशेष शक्ति) अधिनियम 1958 (आफस्पा) की समयसीमा का विस्तार करने के केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है.

मालूम हो कि बीते चार दिसंबर को सेना की एक टुकड़ी द्वारा मोन जिले में की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद लगभग सभी राजनीतिक दलों और नगा सिविल सोसाइटी संगठनों ने आफस्पा को वापस लेने की मांग की थी.

आफस्पा नगालैंड में दशकों से लागू है. केंद्र ने बीते गुरुवार को नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था. इस निर्णय का राज्य भर में विरोध हो रहा है.

यह कदम केंद्र सरकार द्वारा नगालैंड से विवादास्पद आफस्पा को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन के कुछ दिनों बाद उठाया गया है.

नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के बाद बढ़े तनाव को कम करने के मकसद से दशकों से नगालैंड में लागू विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आफस्पा) को हटाने की संभावना पर गौर करने के लिए बीते 26 दिसंबर को केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है. यह समिति 45 दिन में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एनडीपीपी ने जारी बयान में कहा कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर अधिसूचनाएं और आदेश जारी करना अनुचित है और इसका युवा पीढ़ी की महत्वाकांक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से तब जब लोग उत्सुकता से नगा शांति वार्ता के अंतिम समाधान का इंतजार कर रहे हैं.

बयान में कहा गया, नगालैंड पर्यटन और सेवा क्षेत्र में विकास कर रहा है और पर्यटन के लिहाज से लोकप्रिय स्थान के रूप में उभरा है लेकिन अशांत इलाकों में अनावश्यक रूप से आफस्पा बढ़ाने से आर्थिक विकास की दिशा में हमारे प्रयासों पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

एनडीपीपी ने बयान में कहा, संघर्षविराम बीते पच्चीस सालों से लागू है और इससे नगालैंड में कानून व्यवस्था की स्थिति शांतिपूर्ण रही है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की यह अधिसूचना केंद्रीय गृहमंत्री, नगालैंड और असम के मुख्यमंत्रियों, नगालैंड के उपमुख्यमंत्री और नगा पीपुल्स फ्रंट के नेता और नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री के बीच दिल्ली में 23 दिसंबर को हुई उच्चस्तरीय बैठक को ही कमतर करता है.

नगा संगठनों और आदिवासी समूहों ने आफ़स्पा की अवधि बढ़ाए जाने की निंदा की

इससे पहले प्रमुख नगा संगठनों ने  आफस्पा को और छह महीने तक बढ़ाने संबंधी केंद्र के फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए कहा है कि इस कदम का मकसद नगाओं की आने वाली पीढ़ियों को दबाए रखना है.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में नगा जनजातियों के निकाय ‘नगा होहो’ के महासचिव के एलु नडांग ने कहा, ‘भारत सरकार ने नगा लोगों की इच्छाओं की अनदेखी की है. सभी नगा लोग भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं और अधिनियम को निरस्त करने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं. नगा लोग इसे नहीं मानते. हम अधिनियम को निरस्त करने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाने के वास्ते किसी भी हद तक जाएंगे.’

उन्होंने आश्चर्य जताया कि राज्य में शांति के बावजूद आफस्पा को क्यों बढ़ाया गया. उन्होंने कहा, ‘जब तक सेना को निर्दोष लोगों को गोली मारने का अधिकार है, तब तक हमारी भूमि में शांतिपूर्ण माहौल नहीं हो सकता है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि आम लोग या नगा राजनीतिक समूह राज्य में कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं कर रहे हैं बल्कि सशस्त्र बल ऐसा कर रहे है.

ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) के अध्यक्ष आर. त्सापिकिउ संगतम ने कहा कि संगठन ने आफस्पा के विस्तार पर चर्चा के लिए सात जनवरी को एक बैठक बुलाई है.

नगा मदर्स एसोसिएशन (एनएमए) की सलाहकार प्रो. रोजमेरी दजुविचु ने आफस्पा के विस्तार पर अफसोस जताते हुए कहा कि नागरिकों के विरोध और मोन जिले में हत्याओं की चल रही जांच के बीच ऐसा नहीं होना चाहिए था. उन्होंने कहा कि आफस्पा के विस्तार को टाला जा सकता था.

राज्य सरकार के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी से अभी तक इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), जो नगालैंड में सर्वदलीय संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (यूडीए) सरकार का हिस्सा है, ने एक बयान में कहा कि यह हैरान और अपमानित करने वाला है. क्योंकि 23 दिसंबर की बैठक के कुछ दिनों बाद आफस्पा को बढ़ाया गया है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने की थी.

23 दिसंबर के बैठक में नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, उप-मुख्यमंत्री यानथुंगो पैटन और एनपीएफ विधायक दल के नेता टीआर जेलियांग, साथ ही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने भाग लिया था. इसमें यह निर्णय लिया गया था कि नगालैंड में आफस्पा वापस लेने की संभावना पर गौर करने के लिए केंद्र एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करेगा.

एनपीएफ द्वारा गुरुवार को जारी एक बयान में कहा गया है, ‘यह विस्तार आफस्पा केंद्र सरकार द्वारा छोटे राज्यों, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी भारत की आवाजों के प्रति पूरी तरह से अवहेलना का प्रकटीकरण है. वह भी यह देखते हुए कि नगालैंड विधानसभा ने आफस्पा पर विचार-विमर्श करने के लिए 20 दिसंबर को एक विशेष एकदिवसीय सत्र बुलाया था. सदन ने सर्वसम्मति से इसे आफस्पा निरस्त करने की मांग करने का संकल्प लिया था.’

बयान में कहा गया है कि पार्टी नगालैंड से आफस्पा को हटाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके अपनाएगा और जब तक केंद्र सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं करती तब तक वह चुप नहीं बैठेगी.

नगालैंड सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, हालांकि यह एक सामान्य अभ्यास है (‘अशांत क्षेत्र’ की स्थिति का विस्तार), जो हर छह महीने में किया जाता है. इस बार यह ऐसे समय आया, जब लोगों की भावनाएं (14 लोगों की मौत से) आहत हैं.’

मालूम हो को कि बीते चार दिसंबर को सेना की एक टुकड़ी द्वारा मोन जिले में की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद आफस्पा को वापस लेने के लिए नगालैंड के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

बीते 19 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.

नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है.

इन्होंने कहा है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

मणिपुर: प्रदेश को ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा देना अब ज़रूरी नहीं- राज्य मानवाधिकार आयोग

मणिपुर मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) ने कहा है कि मणिपुर को ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा देना अब जरूरी नहीं है, क्योंकि विद्रोहियों से जुड़ीं गतिविधियों में उल्लेखनीय गिरावट आई है.

आयोग ने सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम यानी आफस्पा को निरस्त करने को लेकर साल 2020 में एक स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसी संबंध में मणिपुर के अतिरिक्त डीजीपी ने एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिस पर विचार करने के बाद बीते 29 दिसंबर को आयोग ने यह सिफारिश की.

यह स्वत: संज्ञान मामला फॉरेंसिक स्टडी एंड प्लेसमेंट के चेयरमैन टीएच सुरेश द्वारा दायर एक याचिका को लेकर दर्ज किया गया था.

सुरेश ने राज्य के ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा रद्द करते हुए आफस्पा को हटाने की मांग की थी. उन्होंने दलील दी थी कि इस कानून की आड़ में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है.

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, एक जनवरी, 2021 से 22 सितंबर, 2021 के बीच विभिन्न संगठनों से जुड़े 180 उग्रवादियों को गिरफ्तार किया गया था.

इसके अलावा पुलिस ने कहा कि राज्य में सक्रिय विभिन्न उग्रवादियों के पास से कुल मिलाकर 142 हथियार और 2,240 राउंड गोला-बारूद भी जब्त किए गए थे.

रिपोर्ट में आगे उल्लेख किया गया है कि इसी अवधि के दौरान एक सुरक्षाकर्मी घायल हो गया, दो नागरिक मारे गए, जबकि एक घायल हो गए थे.

रिपोर्ट के आधार पर मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने कहा कि राज्य पुलिस संशोधित गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम अधिनियम) (यूएपीए) और देश के अन्य मौजूदा आपराधिक कानूनों के तहत उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है.

फिर भी आयोग ने सुझाव दिया कि विद्रोही संगठनों की गतिविधियों को रोकने के लिए केंद्र सरकार से किसी भी सहायता की आवश्यकता होने की स्थिति में राज्य सरकार को भारत सरकार के सशस्त्र बलों से सहायता मांगनी चाहिए, जैसा कि संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत केंद्रीय सूची की प्रविष्टि-2 के तहत प्रदान किया गया है.

मानवाधिकार आयोग ने जोर देकर कहा कि आफस्पा की धारा 4 सशस्त्र बलों को ये अधिकार देता है कि वे कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल प्रयोग कर सकते हैं और किसी को गोली भी मार सकते हैं. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.

इसके अलावा आयोग ने कहा कि उग्रवाद एक ‘राजनीतिक समस्या’ है और इसका राजनीतिक समाधान एक रास्ता है. इसलिए, राज्य सरकार को मणिपुर में उग्रवाद के समाधान के लिए उपाय तलाशने चाहिए.

त्रिपुराः नौकरी में कथित धांधली को लेकर युवाओं का प्रदर्शन, विपक्ष ने की जांच की मांग


त्रिपुरा में अर्धसैनिक बल त्रिपुरा स्टेट राइफल्स (टीएसआर) में नौकरियों बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप में हिंसा प्रदर्शनों के बीच राज्य सरकार ने शुक्रवार को इन आंदोलनों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी. इस बीच विपक्षी पार्टी ने जांच की मांग की है.

यूएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि चुनाव के बाद बड़े स्तर पर आक्रोश से चिंतित मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने गुरुवार को कैबिनेट के मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की और राज्य पुलिस में 500 महिलाओं सहित 1,000 कॉन्स्टेबल को भर्ती करने का फैसला किया.

उन्होंने पुलिस से भाजपा कार्यालयों में तोड़फोड़ करने और पार्टी नेताओं पर हमला करने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने को कहा है.

त्रिपुरा पुलिस पहले ही कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज कर चुकी हैं, जो कथित तौर पर इन हमलों में शामिल थे और जिन्होंने लोगों को उकसाया था.

बीते तीन दिनों से प्रदर्शनकारियों ने 13 क्षेत्रों में भाजपा पार्टी के कार्यालयों में तोड़फोड़ की है और इच्छुक अभ्यर्थियों को नियुक्ति का वादा देकर पैसे लेने के आरोप में समिति के कुछ सदस्यों सहित कई नेताओं पर आरोप लगाया है.

मेरिट सूची में जगह बनाने में असफल रहे कुछ लोगों का आरोप है कि जिन लोगों ने साक्षात्कार नहीं दिया है, उनका भी चुनाव किया गया है. हालांकि, गृह विभाग के अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि ये निराधार आरोप हैं.

बता दें कि त्रिपुरा पुलिस विभाग ने 27 दिसंबर को कुल 2,200 में से 1,443 चयनित उम्मीदवारों की मेरिट सूची प्रकाशित की थी. इस घोषणा के बाद नौकरी न पाने वाले उम्मीदवारों ने भाजपा नेताओं पर वादाख़िलाफ़ी और रिश्वत लेकर नौकरी न देने का आरोप लगाते हुए कई स्थानों पर पार्टी कार्यालयों पर हमला किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)