उत्तराखंड पुलिस ने बताया कि मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय विशेष जांच टीम गठित की गई है. उन्होंने कहा कि अगर जांच में पुख़्ता सबूत मिलते हैं, तो मामले में गिरफ़्तारी होगी. हरिद्वार में बीते दिनों एक ‘धर्म संसद’ में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे भाषण दिए गए और उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था.
देहरादून: उत्तराखंड के हरिद्वार शहर में हाल में आयोजित ‘धर्म संसद’ के दौरान कुछ हिंदुत्ववादी नेताओं द्वारा कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने के मामले की जांच के लिए रविवार को एसआईटी गठित की गई.
गढ़वाल के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) के एस नागन्याल ने बताया कि मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की गई है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या इस मामले से जुड़े कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी होगी तो नागन्याल ने बताया कि निश्चित तौर पर अगर जांच में पुख्ता सबूत मिलते हैं, तो गिरफ्तारी होगी.
अधिकारी ने कहा, ‘हमने एसआईटी का गठन किया है. वह जांच करेगी. अगर इसमें शामिल लोगों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिलते हैं, तो उचित कार्रवाई की जाएगी.’
उन्होंने बताया कि इस मामले में पांच लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिनमें वसीम रिजवी, जिन्होंने पिछले महीने हिंदू धर्म अपनाने के बाद जितेंद्र नरायण त्यागी नाम रख लिया है, साधवी अन्नपूर्णा, धर्मदास, सागर सिंधुराज महाराज और धर्म संसद के आयोजक एवं गाजियाबाद के डासना मंदिर के मुख्य पुजारी कट्टरवादी हिंदू धार्मिक नेता यति नरसिंहानंद शामिल हैं.
बता दें कि उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया, जिसमें मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुलकर नफरत भरे भाषण (हेट स्पीच) दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था.
कार्यक्रम के आयोजकों में से एक यति नरसिंहानंद ने मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कहा था कि वह हिंदू प्रभाकरण बनने वाले व्यक्ति को एक करोड़ रुपये देंगे.
इससे पहले 23 दिसंबर 2021 को दर्ज इस संबंध में पहली प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें सिर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को नामजद किया गया था. इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने से पहले त्यागी का नाम वसीम रिजवी था.
वसीम रिजवी उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष थे, जिन्होंने हाल ही में हिंदू धर्म अपनाने का दावा करते हुए अपना नाम बदला है.
अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिकी में धारा 153 ए (धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, आवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (पूजा स्थल या किसी पवित्र वस्तु को नुकसान पहुंचाना) भी जोड़ी गई है.
इस प्राथमिकी में बीते 25 दिसंबर को बिहार निवासी स्वामी धरमदास और साध्वी अन्नपूर्णा उर्फ पूजा शकुन पांडेय के नाम जोड़े गए. पूजा शकुन पांडेय निरंजिनी अखाड़े की महामंडलेश्वर और हिंदू महासभा के महासचिव हैं.
इसके बाद बीते एक जनवरी को इस एफआईआर में यति नरसिंहानंद और रूड़की के सागर सिंधुराज महाराज का नाम शामिल किया गया था.
बहरहाल हरिद्वार के धर्म संसद में नरसिंहानंद ने मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कहा था, ‘जब हमें मदद की जरूरत थी, तो हिंदू समुदाय ने हमारी मदद नहीं की, लेकिन अगर कोई युवा कार्यकर्ता हिंदू प्रभाकरण बनने के लिए तैयार है, तो किसी और से पहले मैं उसे 1 करोड़ रुपये दूंगा. यदि वह एक साल तक ऐसे ही काम करता रहा तो मैं कम से कम 100 करोड़ रुपये जुटाऊंगा.’
इससे पहले द वायर ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट्स में बताया था कि किस तरह नरसिंहानंद द्वारा दी गई हेट स्पीच के चलते फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भयानक दंगे भड़के थे. नरसिंहानंद और उनके तथाकथित शिष्यों को आए दिन मुस्लिमों के खिलाफ नियमित तौर पर हिंसक और भड़काऊ भाषण देते हुए देखा जा सकता है.
नरसिंहानंद के खिलाफ उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कई एफआईआर दर्ज हैं. इस साल की शुरुआत में, दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पैगंबर मुहम्मद के बारे में उनकी टिप्पणियों के कारण दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
उत्तर प्रदेश और हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशकों क्रमश: विभूति नारायण राय और विकास नारायण राय सहित सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा कि ‘संसद’ विभिन्न धर्मों के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की उत्तराखंड की लंबी परंपरा पर काला धब्बा है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को पत्र लिखकर दिल्ली और हरिद्वार में हुए हालिया कार्यक्रमों में मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयान देने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के लिए निर्देश देने की मांग की है.
इसके अलावा बीते दिनों देश के पूर्व सेना प्रमुखों, नौकरशाहों और कई बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर मुस्लिमों के नरसंहार के आह्वान की निंदा करने और इस तरह की धमकियां देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की.
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति को लिखे गए इस खुले पत्र पर 200 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं.
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी शुक्रवार को देहरादून और हरिद्वार में मार्च निकाला ‘धर्म संसद’ में नफरत फैलाने वाला भाषण देने के आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)