इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर और नगालैंड के प्रमुख समाचार.
ईटानगर/गंगटोक/इम्फाल/कोहिमा: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने राज्य में नगा लोगों के हितों को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाते हुए अरुणाचल प्रदेश में ‘अप्रिय घटनाओं’ की चेतावनी दी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार को जारी बयान में नगा विद्रोही संगठन ने मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उपमुख्यमंत्री चाउना मेन पर गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम करने और राज्य के तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिलों में नगा लोगों की इच्छाओं को पूरा करने में असफल रहने का आरोप लगाया.
बयान में कहा गया, ‘राज्य को इन अप्रिय घटनाओं को खुद ही झेलना पड़ेगा क्योंकि राज्य ने जानबूझकर अरुणाचल प्रदेश के नगा लोगों के आक्रोश को नजरअंदाज किया है. एनएससीएन/जीपीआरएन (गवर्मेंट ऑफ द पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नगालैंड) की सकारात्मक प्रतिक्रिया को उनकी विनम्रता के बजाए उनकी कमजोरी नहीं समझना चाहिए.’
इस बयान पर राज्य सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
बीते सितंबर महीने में संगठन ने बयान जारी कर तीन जिलों तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग के नगा विधायकों से मांग की थी कि वे पेमा खांडू और चौना मेइन की अगुवाई वाली भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लें.
इन तीन जिलों में 11 विधायक हैं, जिनमें से तीन कैबिनेट मंत्री हैं.
सितंबर में जारी बयान में कहा गया था, ‘अरुणाचल प्रदेश के नगाओं के अधिकारों को बनाए रखने में असफल रहे विधायकों को नगा विरोधी माना जाएगा.’
लोंगडिंग जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए सर्कुलर के जवाब में यह मांग की गई थी.
दरअसल इस सर्कुलर में ‘अन्य नगा जाति’ शब्द को हटाने के लिए संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश संशोधन विधेयक 2021 की सूचना दी गई थी.
इस सर्कुलर को अगस्त में संसद में इस विधेयक के पारित के होने के बाद जारी किया गया.
दरअसल इस विधेयक में अरुणाचल प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित (राज्य सरकार की सिफारिश पर) कर उनमें कई स्वदेशी जनजातियों के नामों को जोड़ा गया और ‘किसी अन्य नगा जनजाति’ (जो संशोधन से पहले थे) शब्दों को हटाया गया.
एनएससीएन-आईएम के सितंबर में जारी किए गए बयान में कहा गया कि इस कदम से जानबूझकर नगा लोगों की पहचान और उनके अस्तित्व को नजरअंदाज किया गया और उन्हें कमतर आंका गया.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने चीन द्वारा राज्य के कई स्थानों के नाम परिवर्तन को खारिज किया
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों के नाम में बदलाव को खारिज करते हुए कहा कि देश के बाहर किसी के भी द्वारा भारत के स्थानों के नाम बदलने से उनकी स्थिति में कोई अंतर नहीं आएगा.
केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री ने कहा कि इस तरह का नाम परिवर्तन किसी को भी स्वीकार्य नहीं होगा.
उन्होंने गुरुवार को एक कार्यक्रम के इतर संवाददाताओं से कहा, ‘अरुणाचल का नाम देश ने दिया है और वह सभी को स्वीकार्य है. हमारे परंपरागत नाम, हमारे समुदाय की पहचान हमेशा बने रहेंगे. अगर बाहर का कोई कुछ नाम देता है तो उससे हमारी स्थिति नहीं बदलेगी.’
रिजिजू अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों के नाम बीजिंग द्वारा बदले जाने से जुड़े एक सवाल का जवाब दे रहे थे.
उन्होंने पूछा, ‘अगर देश के बाहर का कोई नाम बदल देता है तो क्या हम उसे स्वीकार कर लेंगे? हमारे माता-पिता द्वारा दिए गए नाम ही असली नाम होते हैं. अगर कोई आपका नाम जबरन बदल देता है तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगे?’
चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नाम बदले जाने को भारत पहले ही खारिज करते हुए कह चुका है कि राज्य हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा.
‘सीएए के तहत कोई भी शरणार्थी अरुणाचल के आदिवासियों के अधिकारों का दावा नहीं कर सकता’
रिजीजू ने यह आश्वासन भी दिया कि संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए के तहत, अरुणाचल प्रदेश में कोई भी शरणार्थी पूर्वोत्तर राज्य के मूल आदिवासियों के अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है.
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री ने तागिन समुदाय के शि-दोन्यी उत्सव में भाग लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सीएए के तहत पूर्वोत्तर को विशेष विशेषाधिकार है क्योंकि इस क्षेत्र को इस कानून के दायरे से छूट दी गई है.
रिजीजू ने कहा, ‘सीएए के तहत, कोई भी शरणार्थी अरुणाचल प्रदेश में जनजातीय अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही राज्य में रह रहे चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को स्पष्ट संदेश भेज चुके हैं.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को किसी विकल्प (रहने के लिए राज्य) की तलाश करने के लिए संदेश भेजा है. हमें उम्मीद है कि वे सरकार के फैसले का समर्थन करेंगे और उसके अनुरूप काम करेंगे.’
इससे पहले मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने घोषणा की थी कि चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को राज्य के बाहर पुनर्वासित किया जाएगा.
सिक्किमः मुख्यमंत्री ने कहा- हफ्ते में एक बार पारंपरिक पोशाक में ऑफिए आएं
सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने शुक्रावर को कहा कि सभी सरकारी कर्मचारियों को सप्ताह में एक बार पारंपरिक पोशाक में ऑफिस आना चाहिए.
यूएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी गंगटोक के पास मरचक में राज्यस्तरीय लेपचा त्योहार ‘नामसूंग’ में हिस्सा लेते हुए तमांग ने इस त्योहार में शामिल सभी समुदायों की सराहना की.
इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके बचपन के दौरान वह अपने दोस्तों से तमांग भाषा में बात करते थे.
उन्होंने कहा, ‘जब हम अंग्रेजी सीखते हैं तो हमारी खुद की भाषा क्यों नहीं? हफ्ते में एक बार सभी सरकारी कर्मचारियों को अपने पारंपरिक पोशाकों में ऑफिस आना चाहिए.’
बता दें कि ‘नामसूंग’ त्योहार फसल की खेती के उत्सव का प्रतीक है, जिसका 12 दिनों तक जश्न मनाया जाता है.
उन्होंने यहां परिवार के साथ निजी दौरे पर पहुंचे मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की सराहना करते हुए कहा कि सिक्किम अपने पड़ोसी राज्य के साथ किसी भी तरह के सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम में सहयोग देने के लिए तैयार है.
मुख्यमंत्री तमांग ने ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अपनी सरकार के केंद्र पर जोर देते हुए कहा कि मेगा होमस्टे के लिए 3000 कमरों को तैयार किया जा रहा है.
मणिपुरः आईएलपीएस को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
पश्चिम बंगाल के संगठन अमारा बंगाली ने मणिपुर में इनर लाइन परमिट (आईएलपीएस) व्यवस्था का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सांप्रदायिक तनाव के डर से मणिपुर सरकार ने कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को इस पर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा, ‘सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस संगठन की चुनौती का सामना करने के लिए सभी तैयारियां की हैं. ये वे लोग हैं, जिन्होंने हमारे लिए कुछ अच्छा नहीं किया.’
बीरेन सिंह यह कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार का आईएलपीएस लागू करने का फैसला उन लोगों के लिए तोहफा है, जिन्हें पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने नकार दिया था.
उन्होंने कहा कि यह उन स्वदेशी लोगों के हितों की रक्षा के लिए लंबा रास्ता अख्तियार करेगा, जिन्हें अन्य लोगों के आ जाने से अपना अस्तित्व खो देने का डर है.
बता दें कि आईएलपीएस मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में लागू है. इन राज्यों में आने की योजना बनाने वाले बाहरी लोगों को यहां प्रवेश के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है कि वे कितने दिनों तक यहां रह सकते हैं और उन्हें एक निश्चित समय पर यहां से जाना होता है.
बता दें कि सात जनवरी को चार छात्र संगठनों एएमएसयू, एमएसएफ, केएसए और एसयूके के नेताओं ने अमारा बंगाली की निंदा करते हुए प्रदर्शन किया था.
इन संगठनों अमारा बंगाली के महासचिव बकुल चंद्र रॉय का पुतला भी फूंका था और पुलिस ने कुछ नेताओं को भी हिरासत में लिया था.
आईएलपीएस की संयुक्त समिति के छात्रसंघ के संयोजक हाओबिजम चल्लांबा ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आईएलएपीएस के खिलाफ याचिका दायर की गई है. समिति याचिका वापस लिए जाने तक सभी तरह के लोकतांत्रिक आंदोलन को जारी रखेगी.
उन्होंने गिरफ्तार किए गए छात्र नेताओं की तुरंत और बिना शर्त रिहाई की भी मांग की.
कई राजनीतिक दलों के संगठन मणिपुर डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक और शिवसेना के अध्यक्ष एम. टोम्बी ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि मणिपुर में बंगाली स्क्रिप्ट के इस्तेमाल को रोकने के लिए सामूहिक फैसला लें. यह पश्चिम बंगाल के संगठन के उकसावे के विरोध में है. मणिपुर में दो साल पहले आईएलपीएस को लागू किया गया. हमारी पार्टी सरकार द्वारा उठाए गए किसी भी कदम में पूर्ण सहयोग देगी.’
नगालैंड: आदिवासी संगठन ने शामातोर जिला बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन तेज किया
नगालैंड की यिमखिउंग जनजातीय परिषद (वाईटीसी) ने शामातोर को जिला घोषित करने की मांग को लेकर गुरुवार को अपना विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया.
शातातोर इस समय तुइनसांग जिले का अनुमंडल हैं.
परिषद के लोगों ने गुरुवार को शामातोर कस्बे में सभी उम्र के लोगों के साथ रैली निकाली जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं और उनके हाथों में तख्तियां थी. प्रदर्शनकारी अपनी स्थानीय बोली में नारेबाजी कर रहे थे और गाना गाकर सरकार को लोगों से किए गए वादे को याद दिला रहे थे.
वाईटीसी ने अपने विस्तारित प्रदर्शन के तहत शामातोर में पड़ने वाले फकिम वन्यजीव अभ्याराण्य, माउंट सरामति, मिमी और सालोमी स्थिति पत्थर की गुफाओं में सरकारी अधिकारियों, अनुसंधानकर्ताओं, घरेलू और अंतररष्ट्रीय पर्यटकों के आने पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी है.
परिषद ने पुंगरो स्थित लिकिमरो जलविद्युत परियोजना को भी अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का फैसला किया है.
वाईटीसी के महासचिव एसत्सुइबा ने बताया कि यिमखिउंग जनजाति का शीर्ष संगठन सोमवार से उसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में रोजाना पूर्वाह्न नौ बजे से दोपहर 12 बजे तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहा है ‘ताकि नगालैंड सरकार की शामातोर को जिले का दर्जा देने में नाकामी पर नाराजगी जताई जा सके जिसका वादा सरकार ने किया था.’
इस बीच, पुंगरो के अतिरिक्त उपायुक्त अभिनव शिवम ने कहा कि लिकिमरो जलविद्युत परियोजना राष्ट्रीय संपत्ति है और उसमें बाधा उत्पन्न करने से लोग प्रभावित होंगे. उन्होंने वाईटीसी से तत्काल बंदी वापस लेने का निर्देश दिया जिसे संगठन ने खारिज कर दिया है.
हालांकि, वाईटीसी ने सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) से समुदाय के नेता और शामातोर- चेसोर से विधायक एस कियोशु को ‘वापस बुलाने’ की पूर्व में जारी अधिसूचना शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी है.
यह फैसला कियोशु द्वारा वाईटीसी के कार्यकारी अध्यक्ष को शुक्रवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक होने की जानकारी दिए जाने के बाद लिया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)