आईआईएम के छात्रों-शिक्षकों ने प्रधानमंत्री को लिखा- आपके मौन ने नफ़रती आवाज़ों को साहस दिया

बेंगलुरु और अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम ) के छात्रों एवं फैकल्टी सदस्यों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे विभाजनकारी ताक़तों को दूर रखते हुए देश को आगे ले जाने का आग्रह किया है. एक सदस्य ने कहा कि पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों का उद्देश्य इस बात को रेखांकित करना है कि अगर नफ़रत को बढ़ावा देने वालों की आवाज़ें तेज़ हैं, तो तार्किक आवाज़ें भी तेज़ होनी चाहिए.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

बेंगलुरु और अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम ) के छात्रों एवं फैकल्टी सदस्यों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे विभाजनकारी ताक़तों को दूर रखते हुए देश को आगे ले जाने का आग्रह किया है. एक सदस्य ने कहा कि पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों का उद्देश्य इस बात को रेखांकित करना है कि अगर नफ़रत को बढ़ावा देने वालों की आवाज़ें तेज़ हैं, तो तार्किक आवाज़ें भी तेज़ होनी चाहिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: बेंगलुरु और अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के छात्रों एवं फैकल्टी सदस्यों के एक समूह ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे विभाजनकारी ताकतों को दूर रखते हुए देश को आगे ले जाने का आग्रह किया है.

इस पत्र में देश में अल्पसंख्यकों पर बढ़ रहे हमले और हेट स्पीच का जिक्र करते हुए कहा गया कि प्रधानमंत्री की चुप्पी ने नफरत भरे भाषणों को साहस दिया है.

प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए इस पत्र में आईआईएम बेंगलुरु के 13 और आईआईएम अहमदाबाद के तीन फैकल्टी सदस्यों सहित कुल 183 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं.

पत्र में कहा गया, ‘माननीय प्रधानमंत्री जी, हमारे देश में बढ़ती असहिष्णुता पर आपकी चुप्पी हम उन सभी के लिए बेहद निराशाजनक है जो देश के बहुसांस्कृतिक ताने-बाने को महत्व देते हैं. आपकी चुप्पी ने नफरत भरे भाषणों को प्रोत्साहित किया है और हमारे देश की एकता एवं अखंडता के लिए खतरा पैदा किया है.’

पत्र में प्रधानमंत्री से देश के विभाजन की कोशिश करने वाली ताकतों को दूर करने का आग्रह किया गया है.

इसमें कहा गया, ‘हम आपके नेतृत्व से हमारे ही लोगों के खिलाफ नफरत भड़काने से हमें दूर ले जाने का आग्रह करते हैं. हमारा मानना है कि कोई समाज सृजनात्मकता, नवाचार और विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकता है या समाज खुद में विभाजन पैदा कर सकता है.’

पत्र में कहा गया, ‘इस पर हस्ताक्षर करने वाले लोग एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं जो विश्व में समावेशिता और विविधता का एक उदाहरण बने. आप सही विकल्प चुनने की दिशा में देश को आगे लेकर जाएं. संविधान ने लोगों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का गरिमा के साथ, बगैर भय और शर्म के आचरण करने का अधिकार दिया है.’

इसमें कहा गया, ‘अभी हमारे देश में डर की भावना है. हाल के दिनों में चर्च सहित पूजास्थलों पर तोड़फोड़ की गई और हमारे मुस्लिम भाइयों-बहनों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया गया. यह सब बिना किसी डर और कानून की परवाह किए बगैर हो रहा है.’

इस पत्र का मसौदा आईआईएम बेंगलुरु के पांच फैकल्टी सदस्यों ने तैयार किया है, इनमें प्रतीक राज (एसिस्टेंट प्रोफेसर ऑफ स्ट्रैटजी), दीपक मलघान (एसोसिएट प्रोफेसर, पब्लिक पॉलिसी), दल्हिया मणि (एसोसिएट प्रोफेसर, एंटरप्रिन्योरशिप), राजलक्ष्मी वी. मूर्ति (एसोसिएट प्रोफेसर, डिसिजन साइंसेज) और हेमा स्वामीनाथन (एसोसिएट प्रोफेसर, पब्लिक पॉलिसी) हैं.

प्रतीक राज ने बताया कि संस्थान के छात्रों और फैकल्टी सदस्यों ने यह महसूस होने पर कि चुप रहना अब कोई विकल्प नहीं है, उसके बाद इस पत्र को लिखने का विचार किया.

उन्होंने बताया, ‘इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों का उद्देश्य इस तथ्य को रेखांकित करना है कि अगर नफरत को बढ़ावा देने वालों की आवाजें तेज हैं तो तर्क देने वालों की आवाजें भी तेज होनी चाहिए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)