श्रीनगर स्थित कश्मीर प्रेस क्लब में रविवार सुबह पत्रकारों का एक समूह सशस्त्र-बलों की मौजूदगी में पहुंचा और यहां क़ब्ज़ा कर लिया. यह नाटकीय परिवर्तन नए प्रबंधन निकाय के चुनाव के लिए प्रक्रिया शुरू होने के बाद हुआ. देश के कई पत्रकार संगठनों ने इसे अवैध और अलोकतांत्रिक बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है.
श्रीनगरः जम्मू कश्मीर में वार्षिक चुनाव की तैयारियों में जुटे कश्मीर प्रेस क्लब (केपीसी) के प्रबंधन पर 15 जनवरी को पत्रकारों और अखबार मालिकों के एक समूह ने कब्जा कर लिया. पत्रकारों और अखबार मालिकों का यह गुट सशस्त्र बलों की मौजूदगी में यहां पहुंचा था.
कई मीडिया संगठनों ने राजधानी श्रीनगर स्थित कश्मीर प्रेस क्लब में इस तख्तापलट को अराजक और कश्मीर में लोकतांत्रिक मीडिया निकाय का गला घोंटने की प्रवृत्ति करार दिया.
केपीसी का गठन जम्मू एवं कश्मीर सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत हुआ था.
The Editors Guild of India is aghast at the manner in which the office and the management of Kashmir Press Club, the largest journalists’ association in the Valley, was forcibly taken over by a group of journalists with the help of armed policemen on January 15, 2022. pic.twitter.com/D6zVW7iW1P
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) January 16, 2022
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस तख्तापलट की निंदा करते हुए कहा, ‘स्वघोषित प्रबंधन द्वारा हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में केपीसी पर कब्जा करना क्लब की शुचिता का हनन है और राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के रुझान की अभिव्यक्ति है. अधिक चिंताजनक यह है कि राज्य पुलिस बिना किसी वॉरंट और कागजी कार्रवाई के केपीसी परिसर में घुसी और इस तख्तापलट में शामिल हो गई.’
Press Club of India is deeply concerned with the developments with Kashmir Press Club.
We demand that the democratic process of holding elections be allowed in a peaceful manner. We appeal to Hon Jammu and Kashmir LG @manojsinha_ to look into the matter and facilitate elections. pic.twitter.com/JFmm6CtZNE
— Press Club of India (@PCITweets) January 16, 2022
इस घटनाक्रम पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी चिंता जताई और केपीसी में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने की मांग की है. वहीं, सलीम पंडित की अगुवाई में केपीसी की अंतरिम निकाय ने इन आरोपों से इनकार किया है.
बता दें कि सलीम पंडित टाइम्स ऑफ इंडिया से जुड़े हैं और उन्हीं की अगुवाई में पत्रकार और अखबार मालिकों के एक समूह ने केपीसी पर मनमाने ढंग से कब्जा किया है.
उन्होंने द वायर को बताया, ‘मैं क्लब का संस्थापक सदस्य हूं. मेरी एकमात्र चिंता यह है कि इसका संचालन सुचारू ढंग से हो. सरकार ने पंजीकरण करने से इनकार कर दिया है. हम इसे पंजीकृत कराएंगे और निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से चुनाव होंगे.’
कश्मीर में पत्रकारों के सबसे बड़े पत्रकार संघ केपीसी में यह नाटकीय परिवर्तन दरअसल नए प्रबंधन निकाय (मैनेजिंग बॉडी) के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के बाद हुआ. पिछले प्रबंधन ने 14 जुलाई 2021 को अपना दो साल का कार्यकाल पूरा किया लेकिन अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद की अनिश्चितताओं की वजह से नए चुनाव नहीं हो सके.
पिछले साल अप्रैल में जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन ने केंद्रशासित प्रदेश में मीडिया समूहों को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत दोबारा पंजीकरण कराने को कहा था क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर अधिनियम रद्द हो गया था.
पिछले हफ्ते केपीसी के प्रबंधन निकाय ने कहा था कि उन्हें सरकार से दोबारा पंजीकरण के लिए मंजूरी मिली है.
पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के तहत गठित केपीसी ने 14 जनवरी को ऐलान किया कि मौजूदा प्रबंधन ने नए प्रबंधन निकाय के लिए चुनाव कराने का फैसला किया है.
अधिकारियों के मुताबिक, हालांकि, आश्चर्यजनक घटनाक्रमों में एसएसपी सीआईडी (मुख्यालय) से रिपोर्ट मिलने के बाद दोबारा पंजीकरण की अनुमति वापस ले ली गई.
सोसाइटीज के रजिस्ट्रार महमूद अहमद शाह ने आउटलुक को बताया, ‘कश्मीर प्रेस क्लब के दोबारा पंजीकरण को स्थगित करने के लिए श्रीनगर से मुझे डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय से सूचना मिली थी, जिसके अनुरूप मैंने आदेश जारी किए.’
वहीं, रविवार सुबह स्वचालित हथियारों के साथ दर्जनभर पुलिसकर्मी और अर्द्धसैनिक बलों के जवान श्रीनगर के पोलो व्यू रोड पर केपीसी के ऐवान-ए-सहाफत ऑफिस पहुंचे, जिससे पत्रकारों में दहशत का माहौल बना, जिस वजह से कई पत्रकार वहां से चले गए लेकिन इस बीच पत्रकारों और अखबार मालिकों का एक समूह वहां इकट्ठा होने लगा. इनमें से कई को सरकार समर्थक माना जाता है.
रविवार दोपहर लगभग 1.45 मिनट पर सुरक्षाकर्मियों के साथ बख्तरबंद काफिले में सवार होकर सलीम पंडित वहां पहुंचे. इसके बाद केपीसी के कॉन्फ्रेंस हॉल में एक बैठक हुई.
सलीम कश्मीर के उन कुछ मुट्ठीभर पत्रकारों में से एक हैं, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद प्रशासन की ओर से सुरक्षा मुहैया कराई गई है. सलीम की प्रेस क्लब सदस्यता नवंबर 2019 में ‘मीडिया बिरादरी की प्रतिष्ठा खराब करने’ के चलते रद्द कर दी गई थी.
उस समय केपीसी द्वारा जारी बयान के मुताबिक, ‘सलीम ने 19 जुलाई 2019 को अपने अखबार में रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि अंग्रेजी दैनिक के एक संपादक के लश्कर-ए-तैयबा से करीबी संबंध हैं और संपादक ने अपने अखबार में रिपोर्टिंग के लिए जिहादी पत्रकारों को नियुक्त किया है.’
केपीसी के प्रबंधक सज्जाद अहमद ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘शनिवार दोपहर को पत्रकारों का एक समूह ऑफिस परिसर में आया और उनसे दफ्तर के कंप्यूटर, स्टेशनरी और अन्य दस्तावेज सौंपने को कहा.’
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने उनसे पूछा कि वे लोग कौन हैं तो उन्होंने कहा कि वे अंतरिम निकाय से जुड़े हैं.’
बैठक समाप्त होने के बाद सलीम ने केपीसी परिसर के बाहर खड़े पत्रकारों को बताया कि ऐसा नहीं समझना चाहिए कि हमने बलपूर्वक इस पर कब्जा कर लिया है.
उन्होंने कहा, ‘हमें आपका, मेरा और सभी का समर्थन है. हमने सर्वसम्मति से अंतरिम निकाय का अध्यक्ष (पंडित), महासचिव (जुल्फिकार माजिद, डेक्कन हेराल्ड के संवाददाता) और कोषाध्यक्ष (स्थानीय दैनिक गदयाल के संपादक अर्शीद रसूल) का चुनाव किया है.’
उन्होंने कहा, ‘हम अधिकृत हैं. आप लोगों ने हमें अधिकृत किया है. हम सदस्यता जैसे विभिन्न मामलों पर विचार करने के लिए समितियां बनाएंगे.’
अंतरिम निकाय का मनमाने ढंग से कब्जा करने के बारे में पूछने पर सलीम ने कहा, ‘हमें सुझाव दीजिए कि क्लब का संचालन कैसे करेंगे. आप इसका हिस्सा हैं.’
सलीम ने इसी शाम बयान जारी कर बिना किसी का नाम लिए कहा, ‘कश्मीर घाटी में कई पत्रकार संगठनों ने सर्वसम्मति से एक अंतरिम निकाय बनाने का फैसला किया, जिसे एक कार्यकारी निकाय बनाने के लिए अधिकृत किया जाएगा जो केपीसी को आधुनिक प्रेस क्लब के रूप में विकसित होने में मदद करेगा, जो दरअसल वक्त की जरूरत है.’
उनहोंने अभी तक उन पत्रकार संगठनों के नाम नहीं बताए हैं, जो उनके इस कदम का समर्थन करते हैं.
इस अपदस्थ निकाय के अध्यक्ष शुजा-उल-हक का कहना है कि सलीम द्वारा केपीसी पर कब्जा करने से हम सभी को दुख हुआ है क्योंकि यह संस्थान पत्रकार सदस्यों के कल्याण में लगा हुआ था.
शुजा ने बयान में कहा, ‘मैं प्रशासन और जम्मू कश्मीर के माननीय उपराज्यपाल से इस मामले को देखने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करता हूं कि इस संस्थान को लोकतांत्रिक तरीके से काम करने की अनुमति दी जाए.’
पत्रकार संगठनों, नेताओं ने की आलोचना
इस कब्जे को ‘अवैध और असंवैधानिक’ बताते हुए कश्मीर प्रेस क्लब के पूर्व प्रबंधन निकाय सहित कम से कम नौ पत्रकार संघों ने कहा कि वे ‘कुछ पत्रकारों, जिन्हें स्थानीय प्रशासन का खुला समर्थन प्राप्त है, द्वारा अवैध और मनमाने ढंग से क्लब पर इस तरह के कब्जे से नाराज हैं.’
बयान में कहा गया, ‘जिस दिन प्रशासन ने कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए सप्ताहांत लॉकडाउन का ऐलान किया, पत्रकारों का एक समूह क्लब के ऑफिस में घुसा और ऑफिस के सदस्यों को बंधक बनाकर जबरन क्लब पर कब्जा जमा लिया. इस अत्यंत निंदनीय और पूरी तरह से अवैध कदम के लिए पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया.’
इन संघों ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, फेडरेशन ऑफ प्रेस क्लब्स और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया से अपील की है कि वे इस बात का संज्ञान लें कि किस तरह स्थानीय प्रशासन अराजकता का समर्थन कर रहा है और लोकतांत्रिक मीडिया निकाय का गला घोंट रहा है.
उनके बयान में कहागया, ‘अगर कश्मीर के प्रेस क्लब के साथ ऐसी घटनाएं होने दी गईं तो ये भविष्य के लिए मिसाल का काम करेगा।’
मुंबई प्रेस क्लब ने भी इस जबरन नियंत्रण को लेकर बयान जारी किया है. दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने भी केपीसी की बहाली की मांग की है.
वहीं, केपीसी के अंतरिम अध्यक्ष सलीम ने कहा, ‘क्लब का निर्वाचित प्रबंध निकाय 14 जुलाई 2021 को समाप्त हो गया. यह अब निष्क्रिय निकाय है. अब यह पंजीकृत तक नहीं है. मेरा उद्देश्य केपीसी को पंजीकृत कराना है. मैं चुनाव होने के बाद इसकी कमान सौंपने को तैयार हूं.’
केपीसी के एक सदस्य ने पहचान नहीं बताने की शर्त पर कहा कि केपीसी का मौजूदा प्रबंध निकाय से टेकओवर को लेकर कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया.
उन्होंने स्वीकार किया कि प्रशासन द्वारा स्वतंत्र प्रेस पर प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से वे पत्रकारों के भले के लिए किए जाने वाले काम करने में असमर्थ थे. 2019 से कई पत्रकारों पर सिर्फ अपना काम करने के लिए कड़े कानूनों के तहत मामला दर्ज किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘जिस तरीके से एक लोकतांत्रिक मीडिया निकाय पर कब्जा किया गया, उससे पूरी बिरादरी सकते में है.’
केपीसी के पिछले प्रबंध निकाय के कार्यकारी सदस्य ने बताया, ‘यह कुछ ऐसा है कि कोई अजनबी किसी घर में घुसा और घर के मालिक पर घर की सफाई साफ नहीं करने का आरोप लगाते हुए उस पर कब्जा कर लिया. यह पूरी तरह से अवैध और अलोकतांत्रिक है.’
केपीसी के प्रबंधन में बदलाव से कश्मीर में राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने एक लोकतांत्रिक निकाय को उखाड़ फेंकने के लिए प्रशासन पर निशाना साधा है.
There is no government this “journalist” hasn’t sucked up to & no government he hasn’t lied on behalf of. I should know, I’ve seen both sides very closely. Now he’s benefited from a state sponsored coup. https://t.co/POIgQV2Ea7
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) January 15, 2022
उमर अब्दुल्ला ने सलीम का हवाला देते हुए ट्वीट कर कहा, ‘ऐसी कोई सरकार नहीं है, जिसका इस पत्रकार ने इस्तेमाल नहीं किया हो और ऐसी कोई सरकार नहीं है, जिसकी ओर से इसने झूठ नहीं बोला हो. मुझे पता होना चाहिए, मैंने इनके दोनों पक्षों को बहुत करीब से देखा है. अब यह राज्य प्रायोजित तख्तापलट से लाभ उठा रहा है.’
Todays state sponsored coup at KPC would put the worst dictators to shame.State agencies here are too busy overthrowing elected bodies & firing govt employees instead of discharging their actual duties. Shame on those who aided & facilitated this coup against their own fraternity https://t.co/SnyZYSt0mN
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) January 15, 2022
वहीं, महबूबा मुफ्ती ने भी ट्वीट कर कहा, ‘आज केपीसी में राज्य प्रायोजित तख्तापलट ने बुरे से बुरे तानाशाहों तक को शर्मसार कर दिया है. यहां राज्य की एजेंसियां निर्वाचित निकायों को उखाड़ फेंकने और सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने में व्यस्त हैं. उन लोगों को शर्मिंदा होना चाहिए जिन्होंने अपनी बिरादरी के ही खिलाफ जाकर इस तख्तापलट में मदद की.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)