कोविड से प्रभावित बेसहारा बच्चों की पहचान के लिए एसजेपीयू, डीएलएसए की मदद लें: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित सड़कों पर जीवन गुजार रहे बेसहारा बच्चों की पहचान और उनके पुनर्वास के लिए अविलंब विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण और स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग लिया जाए.

//
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित सड़कों पर जीवन गुजार रहे बेसहारा बच्चों की पहचान और उनके पुनर्वास के लिए अविलंब विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण और स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग लिया जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित सड़कों पर जीवन गुजार रहे बेसहारा बच्चों की पहचान करने और उनके पुनर्वास के कार्यों के लिए अविलंब विशेष किशोर पुलिस इकाइयों (एसजेपीयू), जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) और स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग लें.

जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि सड़कों पर रहने वाले बेसहारा बच्चों की समस्या सर्दियों में और बढ़ गई होगी और ऐसी स्थिति में राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को उन्हें आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘चूंकि इस अदालत ने पहले ही बच्चों की पहचान और पुनर्वास के बारे में दिए गए निर्देशों के अमल पर अब और देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती, हम सभी जिलाधिकारियों को बिना कोई और देरी के सड़कों पर रहने वाले बेसहारा बच्चों की पहचान में डीएलएसए और स्वैच्छिक संगठनों को शामिल करने का निर्देश देते हैं. जिलाधिकारियों को यह निर्देश भी दिया जाता है कि वे सभी चरणों की सूचना राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (बाल स्वराज) के वेब पोर्टल पर अपलोड करें.’

शीर्ष अदालत उन बच्चों के बारे में स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रही थी, जो अपने माता-पिता में से एक या दोनों को खोने की वजह से महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हैं.

शीर्ष अदालत ने साथ ही एनसीपीसीआर के मार्गदर्शन में राज्यों को उनकी पहचान के बाद पुनर्वास के लिए एक नीति तैयार करने और उन्हें तीन सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को संबंधित अधिकारियों को यह निर्देश देने का निर्देश दिया कि वे बच्चों की पहचान और पुनर्वास में देरी न करें.

एनसीपीसीआर की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने शुरूआत में कहा कि कई राज्यों ने बाल स्वराज पोर्टल पर सड़क पर रहने वाले बेसहारा बच्चों का विवरण अपलोड नहीं किया है.

दिल्ली के संबंध में शीर्ष अदालत ने उल्लेखित किया कि जहां पहले 70,000 बच्चों की पहचान की गई थी, वहीं आप सरकार ने अब कहा है कि उसने केवल 428 बच्चों की पहचान की है.

पीठ ने कहा, ‘यह कोई सामान्य मामला नहीं है. सड़कों पर रहने के दौरान इन बच्चों को काफी दिक्कत होगी. ऐसे बच्चे हैं जिनकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है. देश के उत्तरी भागों में बच्चों की स्थिति बदतर होगी. ज़रा सोचिए कि वे सड़कों पर कैसे जी रहे हैं. आपको उन्हें तुरंत ‘रैन बसेरों’, आश्रय गृहों में स्थानांतरित करना होगा. यह आपका कर्तव्य है. हमें आपको यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह करिए, वह करिए. तुरंत कार्रवाई करें. यह एक महीना बहुत मुश्किल है. उन्हें तुरंत आश्रय गृह में ले जाया जाए.’

शीर्ष अदालत ने राज्यों की इस दलील पर भी नाराजगी जताई कि कोविड के कारण सड़क पर रहने वाले बच्चों की पहचान की गति धीमी है.

पीठ ने कहा, ‘हम वास्तविकता से दूर नहीं भाग रहे हैं और हम जानते हैं कि देश में कोविड की तीसरी लहर में है और अधिकारी स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश में व्यस्त हो सकते हैं लेकिन बच्चों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इस मामले में कोविड एक बहाना नहीं हो सकता है.’

उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य के पांच जिलों में गैर सरकारी संगठनों ने लगभग 30,282 बच्चों की पहचान की है.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार उन बच्चों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है और ऐसे बच्चों की तलाश के लिए कई दलों को रवाना किया गया है.

न्यायमित्र ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने उन बच्चों के पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है जिनकी पहचान नहीं की गई है और राज्यों को इस पर फैसला करना चाहिए. मामले की सुनवाई अब चार हफ्ते बाद होगी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि कोविड ​​​​-19 महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित सड़क पर जिंदगी गुजारने वाले बच्चों की पहचान करने की प्रक्रिया बहुत धीमी है और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे बच्चों की पहचान करने और पुनर्वास के लिए उनके निर्देशों की प्रतीक्षा किए बिना तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया था.

इससे पहले, पीठ ने सभी जिलाधिकारियों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे 2020 में एनसीपीसीआर द्वारा तैयार की गई सड़क पर जीवन गुरजाने वाले बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए कदम उठाएं.

अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया था कि अकेले दिल्ली की गलियों में करीब 70,000 ऐसे बच्चे हैं.

मालूम हो कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ‘बाल स्वराज पोर्टल- कोविड केयर’ पर 11 जनवरी तक अपलोड किए गए डेटा के मुताबिक, देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों की कुल संख्या 1,47,492 हैं, जिनमें अनाथ बच्चों की संख्या 10,094 और माता या पिता में से किसी एक को खोने वाले बच्चों की संख्या 1,36,910 और परित्यक्त बच्चों की संख्या 488 हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq