दिल्ली पुलिस की बिना सूचना के गिरफ़्तारी मामले में कोर्ट ने कहा- यूपी पुलिस के दस्तावेज़ जाली

शामली की एक महिला द्वारा परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी के मामले में यूपी पुलिस ने सितंबर 2021 में उनके पति के भाई और पिता को दिल्ली पुलिस को सूचित किए बिना गिरफ़्तार किया था. हाईकोर्ट ने मामले को बंद करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों द्वारा शुरू से अंत तक दिया गया हर दस्तावेज़ जाली है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

शामली की एक महिला द्वारा परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी के मामले में यूपी पुलिस ने सितंबर 2021 में उनके पति के भाई और पिता को दिल्ली पुलिस को सूचित किए बिना गिरफ़्तार किया था. हाईकोर्ट ने मामले को बंद करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों द्वारा शुरू से अंत तक दिया गया हर दस्तावेज़ जाली है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों द्वारा ‘दस्तावेजों की पूरी जालसाजी’ की गई, जिन्होंने स्थानीय पुलिस को सूचित किए बिना यहां दो निवासियों को गिरफ्तार किया और उन्हें दो दिनों तक अवैध हिरासत में रखा.

जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार, दोषी अधिकारियों के कॉल डेटा रिकॉर्ड से पता चला है कि गिरफ्तार किए गए दो व्यक्तियों को दिल्ली से उत्तर प्रदेश के शामली ले जाया गया, जहां उन्हें दो दिनों के बाद गिरफ्तार दिखाया गया और परिवारों के बीच ‘बातचीत’ की विफलता के बाद जेल भेज दिया गया.

ये दोनों व्यक्ति उस लड़के के भाई और पिता थे, जिसने एक महिला के परिवार की इच्छा के विपरीत उससे शादी की थी.

न्यायाधीश ने कहा कि जांच में ढिलाई जालसाजी के समान नहीं थी, जो एक अपराध है और यदि यह समय पर हस्तक्षेप नहीं किया गया होता, तो गिरफ्तार किए गए दो व्यक्ति जेल में बंद होते.

अदालत ने कहा, ‘6 से 8 तारीख (सितंबर 2021 के) तक, वे (गिरफ्तार व्यक्ति) अवैध हिरासत में थे. उन्हें ले जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी. यह दस्तावेजों की पूरी जालसाजी है. ए से जेड तक, हर दस्तावेज जाली है.’

अदालत ने कहा, ‘उन्हें दिल्ली पुलिस को बताना चाहिए था. वे लोगों को हिरासत में नहीं डाल सकते हैं और जहां चाहे वहां गिरफ्तारी नहीं दिखा सकते हैं.’

अदालत ने कहा, ‘जांच कठोर हो सकती है लेकिन आप दस्तावेजों में हेराफेरी नहीं कर सकते. किसी को एक जगह से उठाओ, उसे वहां अवैध रूप से ले जाओ और फिर गिरफ्तारी दिखाओ. दस्तावेजों में ढिलाई और जालसाजी दो अलग-अलग चीजें हैं. जांच में ढिलाई कोई अपराध नहीं है, लेकिन आप दस्तावेजों को जाली बनाते हैं, यह आईओ (जांच अधिकारियों) द्वारा दस्तावेजों को जाली बनाने का एक स्पष्ट मामला है.’

मालूम हो कि यूपी पुलिस द्वारा बेटे के साथ गिरफ्तार दिल्ली के रहने वाले एक व्यक्ति के दूसरे बेटे ने उत्तर प्रदेश के शामली की 21 वर्षीय महिला के साथ उसके (महिला के) परिवार की मर्जी के खिलाफ उससे शादी कर ली थी.

महिला के पिता ने 8 सितंबर को आरोप लगाया था कि दिल्ली के दो लोगों ने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया. उन्होंने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिता-पुत्र को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया था.

दंपति ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत एक रिट याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि उन्होंने शादी के लिए कानूनी उम्र प्राप्त कर ली है और अपनी मर्जी से शादी कर ली थी.

उस व्यक्ति ने यह आरोप भी लगाया कि उसके पिता और भाई को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए गिरफ्तारी के लिए 28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस की आलोचना की और कहा कि इस तरह के अवैध कृत्यों की अनुमति नहीं है और इसे राष्ट्रीय राजधानी में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

याचिकाकर्ता दंपति ने यह दावा भी किया था कि उन्हें बार-बार धमकियां मिल रही हैं. मामले की सुनवाई के दौरान यह पता चला कि लड़के के पिता और भाई को उत्तर प्रदेश पुलिस ले गई थी और एक महीने से अधिक समय तक यह पता नहीं चला था कि वे कहा हैं.

दिल्ली पुलिस ने तब अदालत को सूचित किया था कि लड़के के परिवार के सदस्यों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने आईपीसी की धारा 366 के तहत महिला की मां द्वारा की गई शिकायत के संबंध में गिरफ्तार किया था. उनके यहां आने के बारे में स्थानीय पुलिस थाने को जानकारी नहीं दी गई थी.

जस्टिस गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि जब प्राथमिकी में ही पता चला कि लड़की बालिग है, तो संबंधित उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारियों को लड़के के परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पहले उसकी इच्छा का पता लगाना चाहिए था.

अतिरिक्त महाधिवक्ता (उत्तर प्रदेश) गरिमा प्रसाद ने अदालत को सुनिश्चित किया कि दोषी अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा और उचित कार्रवाई की जाएगी.

अदालत ने मामले को बंद कर दिया और कहा कि एएजी द्वारा अपनाए गए रुख को देखते हुए मामले में और कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच की भी सराहना की और याचिकाकर्ता लड़के के परिवार को संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कानून का सहारा लेने की स्वतंत्रता दी.

मालूम हो कि पिछले साल नवंबर में इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था.

इससे पहले मामले में हाईकोर्ट की फटकार के बाद यूपी पुलिस के दो अधिकारियों – शामली कोतवाली के थाना प्रभारी पंकज त्यागी और मामले के जांच अधिकारी एसएच शर्मा को निलंबित कर दिया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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