धनबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की मौत की सीबीआई जांच की निगरानी कर रहे झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि एजेंसी अब इस मामले से थक गई है और अपना पीछा छुड़ाने के लिए नई कहानी गढ़ रही है. जांच ऐसी दिशा में जा रही है जिससे लगता है कि वह ख़ुद आरोपियों को बचा रही है.
रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने धनबाद के न्यायाधीश उत्तम आनंद की हत्या मामले की जांच में ढिलाई के लिए शुक्रवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की खिंचाई की.
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई अब इस मामले से अपना पिंड छुड़ाना चाहती है और वह आरोपियों को बचा रही है.
मुख्य न्यायाधीश रवि रंजन तथा जस्टिस एसएन प्रसाद की पीठ ने न्यायाधीश उत्तम आनंद हत्याकांड मामले की सुनवाई करते हुए मामले में दो आरोपियों के ‘नार्को टेस्ट’ की रिपोर्ट पर भी गौर किया.
अदालत ने मोबाइल लूटने के लिए न्यायाधीश की हत्या किए जाने की सीबीआई की ‘थ्योरी’ को पूरी तरह खारिज कर दिया.
पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘इस पूरे मामले की जांच से सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगता है. ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस मामले से अब थक गई है और मामले से अपना पिंड छुड़ाने के लिए नई कहानी गढ़ रही है.’
अदालत ने कहा कि सीबीआई की जांच ऐसी दिशा में जा रही है जिससे ऐसा लगता है कि वह स्वयं आरोपियों को बचा रही है. मामले में अगली सुनवाई चार फरवरी को होगी.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पीठ ने कहा कि सीबीआई द्वारा दायर आरोप पत्र निर्णायक नहीं है और आनंद की हत्या की ओर इशारा करता है.
दो आरोपियों- लखन वर्मा और राहुल वर्मा – की नार्को टेस्ट रिपोर्ट को स्कैन करने के बाद पीठ ने कहा कि दोनों को पता था कि जिस व्यक्ति को उन्होंने ऑटोरिक्शा से टक्कर मारा वह एक जज थे.
पीठ ने कहा, ‘जब उन्हें मारने से पहले न्यायाधीश की पहचान के बारे में पता था, तो यह साधारण मोबाइल चोरी का मामला नहीं हो सकता. इसके अलावा जज के पास फोन नहीं बल्कि रूमाल था. ऐसा लगता है कि इस बिंदु पर जांच गायब है.’
ज्ञात हो कि सीसीटीवी फुटेज से पता चला था कि 28 जुलाई को धनबाद के 49 वर्षीय जज उत्तम आनंद सुबह की सैर के लिए निकले थे कि रणधीर चौक के पास एक एक ऑटो रिक्शा उन्हें पीछे से टक्कर मारकर भाग गया.
स्थानीय लोगों को वह खून से लथपथ मिले थे और उन्हें अस्पताल ले जाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था.
याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डॉ. रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की पीठ ने कहा, ‘एजेंसी (सीबीआई) रिपोर्ट पर रिपोर्ट दाखिल कर रही है लेकिन हत्या के पीछ की मंशा और उद्देश्य के साथ इस साजिश में शामिल अन्य लोगों का पता नहीं चल सका है.’
इससे पहले भी हाईकोर्ट ने कई मौकों पर इस मामले पर सीबीआई को फटकार लगाई है.
हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2021 में कहा था कि सीबीआई द्वारा दायर की गई चार्जशीट एक उपन्यास की तरह है और एजेंसी दो आरोपियों के विरुद्ध हत्या के आरोप की पुष्टि नहीं कर पाई है.
22 अक्टूबर 2021 को अदालत ने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि एजेंसी जांच पूरी करते हुई और ‘घिसे-पिटे ढर्रे’ पर आरोपपत्र दाखिल करते हुए ‘बाबुओं’ की तरह काम कर रही है. ऐसा लगता है कि यह केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए दाख़िल किया गया है.
उससे पहले अगस्त माह में सीबीआई द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद पहली बार इस मामले की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने जांच का उचित अपडेट नहीं दे पाने के लिए एजेंसी के जांच अधिकारी की खिंचाई करते हुए कहा था कि उन्हें विवरण के साथ मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए.
उल्लेखनीय है कि राज्य पुलिस का विशेष जांच दल (एसआईटी) पहले इस मामले की जांच कर रहा था लेकिन राज्य सरकार ने बाद में इस मामले की जांच कमान सीबीआई को सौंप दी, जिसने चार अगस्त से इसकी जांच शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अब तक की जांच की निगरानी करने के लिए झारखंड हाईकोर्ट को निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने मामले की जांच के तरीके पर भी नाराजगी जताई थी.
इसी दौरान, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने जजों को सुरक्षा मुहैया कराने पर एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि केंद्रीय एजेंसियां न्यायपालिका की बिल्कुल मदद नहीं कर रही हैं.
सीजेआई ने आनंद की मौत का उल्लेख करते हुए कहा था, ‘एक युवा जज की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के मामले को देखिए. यह सरकार की असफलता है. क्षेत्र में कोयला माफिया हैं और जजों के आवासों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए.’ पीठ ने भी जज की मौत को सरकार की असफलता बताया था.
गौरतलब है कि धनबाद के 49 वर्षीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद बीते 28 जुलाई की सुबह टहलने निकले थे, जब रणधीर चौक के पास एक ऑटो रिक्शा उन्हें पीछे से टक्कर मारकर भाग गया. पहले इस घटना को हिट एंड रन केस माना जा रहा था, लेकिन घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पता चला कि ऑटो रिक्शा चालक ने कथित तौर पर जान-बूझकर जज को टक्कर मारी थी.
23 सितंबर को सीबीआई ने बताया था कि ऑटो चालक ने न्यायाधीश को जान-बूझकर टक्कर मारी थी और यह कोई हादसा नहीं था. घटना के पीछे के षड्यंत्र की जांच की जा रही है.
अदालत ने कहा था कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी न्यायिक अधिकारी की हत्या की गई है. इस घटना से न्यायिक अधिकारियों का मनोबल कम हुआ है और अगर इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा नहीं किया गया तो यह न्यायिक व्यवस्था के लिए सही नहीं होगा.
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)