आॅनलाइन गुंडागर्दी: मोदी अकेले ऐसे वैश्विक नेता हैं जो ट्रोल्स को फॉलो करते हैं

स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी बता रही हैं कि एक लोकतंत्र में अगर सरकार नागरिकों पर हमला कर रही है तो हम किस लोकतंत्र में रह रहे हैं?

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ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: दूसरी कड़ी में स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी बता रही हैं कि एक लोकतंत्र में अगर सरकार नागरिकों पर हमला कर रही है तो हम किस लोकतंत्र में रह रहे हैं?

मैं ख़ुद बहुत ट्रोल हुई हूं. लेकिन सिर्फ़ मैं ही नहीं होती, हर पत्रकार ट्रोल होता है. हर पत्रकार जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आता. एक ऐसा समुदाय है जिसे हमारी बात पसंद नहीं आती. न्यूज क्या है? लोग जिस बात को सामने नहीं आने देना चाहते, वही न्यूज़ है, बाकी सब पीआर और चीयरलीडिंग है.

आजकल जो असल में न्यूज़ देता है उसके पीछे ट्रोल पड़ जाते हैं. हम सबको पता है कि कौन पसंद नहीं कर रहा है कि असली ख़बरें लोगों के सामने आएं.

आजकल राजनीतिक दलों की सेनाएं हैं. वे अपने सोशल मीडिया के ट्रोल्स, जिनको इसके लिए पैसे मिलते हैं, उनको योद्धा कहते हैं. उनकी मानसिकता योद्धा वाली ही है, वे लोगों को कुचलना, दबाना चाहते हैं, एक तरह से हिंसा पर उतरना चाहते हैं. इसमें सबसे ज्यादा जो परेशानी की बात है, जो मुझे डर लगता है कि अभी तो आॅनलाइन लिंचिंग हो रही है, लेकिन इसके चलते जमीन पर दंगे भी हो सकते हैं, मुजफ्फरनगर में हुआ भी. अपनी किताब में कई ऐसे उदाहरण मैंने दिए भी हैं जहां लोग नकली वीडियो और झूठे तथ्यों के आधार पर लोगों को भड़काने की कोशिश की.

दिल्ली में एक डॉक्टर के मर्डर के बारे में हैदराबाद से एक आदमी ने ट्वीट किया. वे भाजपा के समर्थक हैं और उनकी काफी बड़ी फॉलोइंग है. उन्होंने डॉक्टर के मर्डर को सांप्रदायिक रंग दिया कि होली के दिन उन्होंने मुसलमान पर रंग डाला और ये मुसलमानों को पसंद नहीं आया इसलिए उनका मर्डर हो गया है. दिल्ली पुलिस को बताना पड़ा कि ये एकदम बकवास बात है.

तो मुझे जो डर है कि यह आॅनलाइन हिंसा जो हम देख रहे हैं, (यह वास्तविक हिंसा में न बदल जाए). भारत की सड़कें वैसे ही महिलाओं के लिए सेफ नहीं हैं. अब तो सोशल मीडिया हर किसी के लिए अनसेफ है. हम लोग नफरत को अपने डीएनए में भरते जा रहे हैं.

मुझे नहीं लगता है कि पत्रकारों को इस तरह का खतरा आजतक था. किसी को आपका लेख पसंद नहीं आया तो वह संपादक को पत्र लिखता था. उनको डर रहता था कि कहीं कोई विरोधाभास या खंडन न आ जाए. अब तो हम फैक्ट से डील ही नहीं कर रहे. क्योंकि हमारे बारे में, हमारी स्टोरी के बारे में, हमारे शो के बारे में कोई भी सच नहीं लिखता.

हम पत्रकारों की समस्या ये है कि पत्रकार डील करते हैं तथ्य के साथ, ये लोग डील करते हैं वैकल्पिक अफवाह में, नफरत में, किसी के बारे में कुछ भी कह दो या लिख दो. बड़ा गैरबराबरी का मुकाबला है. तथ्यों से तो इनको नफरत है क्योंकि तथ्यों पर बात होगी तो पोल खुल जाएगी.

हम लोग आजकल फोटोशॉप की दुनिया में रह रहे हैं. मैं कई बार कहती हूं कि हम लोग फोटोशॉप सरकार और फोटोशॉप देश बनते जा रहे हैं.

ट्रोल्स के ऊपर बड़े नेताओं और पार्टियों का वरदहस्त है. इसमें भी सबसे ज्यादा मैं बीजेपी को दाद देना चाहती हूं कि उन्होंने सबसे पहले इसे अपनाया. नरेंद्र मोदी खुद बहुत ही ज्यादा टेक्नोसेवी हैं. वे ट्विटर को लेकर बहुत आॅब्सेस्ड (आसक्त) हैं.

मेरी किताब में राम माधव ने बताया कि कैसे वे खुद अपनी टीम के साथ शाखा से शाखा जाते थे, उनको समझाते थे कि कैसे उनको इस्तेमाल किया जाए.

आरएसएस जो पूरे संघ परिवार का मुखिया है, उनको दो चीजों ने अपील किया. एक तो उनका हीनताबोध कि उनकी आवाज मेनस्ट्रीम मीडिया में हमेशा दबाई जाती है और दूसरा गोपनीयता. मतलब कोई जान नहीं सकता कि आप कौन हैं, कहां रह रहे हैं, क्या कर रहे हैं. मुझे ये दोनों चीजें लगती हैं कि एक तो उनका यह बोध कि हमारी आवाज दबाई जाती है उसमें इसने भी अपील किया. अब वे इसका इस्तेमाल करके लोगों पर हमला कर रहे हैं.

उन्होंने बहुत मेहनत की इस पर. पहले उन्होंने डिजिटल शाखाएं बनाईं, ऐसे शाखाएं जिसमें महिलाएं भी जाती हैं. संघ में महिलाओं को आने की अनुमति नहीं है, लेकिन डिजिटल शाखा में है. अहमदाबाद हो, बेंगलुरु हो या गांधीनगर, वहां पर जैसे वीपीओ होता है, उस तरह इनके बड़े बड़े आॅपरेशन हैं, जहां से 24 घंटे ट्रोलिंग होती है.

महिलाओं को ट्रोल करने वालों पर क्या कार्रवाई, इस बारे में आपको एक लाइन में बताती हूं. जो लोग कहते हैं कि उनके सिर पर नरेंद्र मोदी का हाथ है, वे खुद कहते हैं कि ‘हम भाग्यवान हैं कि हमें नरेंद्र मोदी फॉलो करते हैं’, ऐसे लोग ये सब करते हैं. तो जब सरकार उनकी है, प्रधानमंत्री उनके हैं तो क्या होगा?

मेरे केस में दिल्ली पुलिस को ट्विटर ने बिना शर्त मदद की, आईपी एड्रेस तक दे दिया. दो साल हो गए हैं. पुलिस ने मुझे बताया भी है कि वह इन्सान कौन है, लेकिन पुलिस उसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकती. हमारे देश में सारे कानून हैं, सबकुछ आप कर लीजिए, लेकिन जब तक अनुमति नहीं मिलती, पुलिस कार्रवाई नहीं कर सकती.

अब तो उन्होंने ट्रोल्स को आउटसोर्स भी कर लिया है. एक बार मोदी जी कहीं विदेश दौरे पर गए थे. मैंने खोजा तो देखा कि उनके दौरे के बारे में सबसे ज्यादा ट्वीट्स थाइलैंड के एक छोटे से गांव से थे. थाइलैंड के एक छोटे से गांव में मोदी जी के बारे में इतना आकर्षण! मुझे थोड़ा सा लगा कि ये अजीब बात है. मतलब जैसे आउटसोर्स भी हो गया है.

वे अपने घर में मीट एंड ग्रीट करते हैं. गौरी लंकेश की हत्या के बाद एक आदमी ने ट्वीट किया कि ‘एक कुतिया मर गई और उसके पिल्ले रो रहे हैं.’ उस आदमी को नरेंद्र मोदी खुद फॉलो करते हैं. यह कहानी पूरी दुनिया में छपी. उन्होंने कहा कि यह फ्रीडम आॅफ स्पीच है. यह फ्रीडम आॅफ स्पीच नहीं है. यह हेट स्पीच है.

जिन देशों में हमसे ज्यादा फ्रीडम आॅफ स्पीच है, जैसे अमेरिका, उनके यहां फ्री स्पीच को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, उनके यहां भी इस तरह की धमकियों/बयानों के लिए हर साल सौ-दो सौ लोग जेल जाते हैं. लेकिन यहां पर लोगों को कानून का कोई डर नहीं है.

अरुण जेटली कह चुके हैं कि हमें मोटी चमड़ी का होना चाहिए. लेकिन मुझे लगता नहीं है कि चरित्रहनन और बदनामी के लिए हमें मोटी चमड़ी का होना चाहिए. क्योंकि अगर हमारा जीवन सिर्फ तथ्यों पर है, हमारी कोई स्टोरी अगर गलत होती है तो हमारी नौकरी भी जा सकती है, तो इन लोगों को क्या हक है कि ये हमें इस तरह से बदनाम करें.

हम लोग पत्रकार हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि हमें बदनाम करें, रेप करने की धमकी दें, हत्या की धमकी दें या इस तरह की बकवास करें, जैसा कि अभी हो रहा है.

प्रधानमंत्री द्वारा ट्रोल्स को फॉलो करने को लेकर दुनिया भर में निंदा हुई. वे हर चीज में फर्स्ट होते हैं, इस चीज में वाकई फर्स्ट हैं. दुनिया भर में कोई भी वैश्विक कद का नेता ऐसे लोगों को फॉलो नहीं करता. वे अकेले ऐसे वैश्विक नेता हैं जो ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं. इस मामले में वे वाकई अनूठे हैं. लेकिन अगर वे चाहते हैं कि उनकी छवि एक बहुत बड़े वैश्विक नेता की हो, तो जिस तरह के लोगों को वे फॉलो कर रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि वे अपने लिए या अपनी पार्टी के लिए ठीक कर रहे हैं.

उन्हीं के लिए नहीं, मुझे लगता है कि कोई भी पार्टी जो सत्ता में हो, उसके लिए यह ठीक नहीं है. ये सिर्फ पत्रकार की बात नहीं है. हम एक लोकतंत्र हैं. एक लोकतंत्र में अगर सरकार या सत्ताधारी पार्टी नागरिकों पर हमला कर रही है, पैसा देकर हमला करवा रही है तो हम किस तरह के लोकतंत्र में रह रहे हैं?

मैं तो बिल्कुल कहूंगी कि ये फासीवाद के लक्षण हैं. यह किस तरह का लोकतंत्र है कि एक नागरिक का हक छीना जाए? आपका हक है, हमारा हक है कि हम सवाल पूछें, जो हमारे दिल में हो, वो बात कहें. अगर वही हमसे कोई छीनना चाहता है, उसके लिए हमपर हमले करता है तो यह किस तरह का लोकतंत्र है?

हाल ही में अमित शाह ने सोशल मीडिया से सतर्क रहने को कहा. मोहन भागवत ने भी कहा कि वे ट्रोलिंग के खिलाफ हैं. लेकिन अब तक कुछ देर हो गई है. आप अब कह रहे हैं. जब घोड़ा अस्तबल से भाग चुका है तब आप दरवाजा बंद कर रहे हैं.

एक बड़ी अटपटी सी बात है कि रविशंकर प्रसाद ने कहा कि किसी क्रूर हत्या के बारे में ऐसी भाषा इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए? इसके लिए उनपर किस तरह का हमला हुआ. ये उनके समर्थक ट्रोल्स हैं. उनकी पार्टी के ट्रोल्स ने उनपर किस तरह का हमला किया कि हम दिन भर लगे रहते हैं, दिन भर गाली देते हैं, दिन भर धमकी देते हैं और आप हमसे ये भी छीन रहे हैं. मतलब ये गाली देना उनका रिवॉर्ड है.

इसके अलावा आपको याद होगा कि मेनका गांधी ने एक हेल्पलाइन शुरू की थी आइ एक ट्रोल्ड हेल्प. उसके लिए जिन लोगों को मोदी जी फॉलो करते हैं, उन्होंने उनके खिलाफ अटैक किया और कहा कि हम ट्रोलिंग करके अपनी सेहत भी खराब कर रहे हैं, उसके बावजूद मेनका गांधी हमारे खिलाफ एक्ट कर रही हैं. इसलिए अमित शाह या मोहन भागवत की हिदायत को लेकर मुझे लगता है कि अब देर हो गई है.

इस देश में मीडिया भी चीयरलीडर्स बन गया है. जो इसके खिलाफ जाता है उस पर हमला होता है. सामाजिक असहिष्णुता का लेवल बढ़ रहा है. अगर आप सोकर उठे और आपको सिर्फ 20 मौत की धमकी मिली है तो अच्छा दिन है. जिस दिन 100 धमकी मिली है, बुरा दिन होता है. तो मेरा कहना है कि ट्रोल्स के तो अच्छे दिन आ गए हैं, मैं नहीं जानती और किसी के आए हैं कि नहीं.

समाज में बार बार लोगों को भड़काने की कोशिश की जाती है. जिस तरह से कब्रिस्तान श्मशान की बात की जाती है, कहा जाता है कि पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे, गुजरात दंगे के बाद बच्चा उत्पादन फैक्ट्री की बात कही जाती है, इस तरह की एक मानसिकता है जो नफरत चाहती है. अगर वो मानसिकता आगे आएगी तो मैं लोगों को नहीं दोष देती, लोग प्रभावित हो जाते हैं. जहर और नफरत को लोगों के डीएनए में भरा जा रहा है.

(स्वाति चतुर्वेदी स्वतंत्र पत्रकार हैं और उन्होंने ‘आई एम अ ट्रोल: इनसाइड द सीक्रेट डिजिटल आर्मी ऑफ द बीजेपी’ किताब लिखी है.)

(लेख कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)