असमः हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद फॉरेन ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित महिला को नागरिकता दी

19 सितंबर 2017 को फॉरेन ट्रिब्यूनल-6 ने असम में कछार ज़िले के सोनाई के मोहनखल गांव की 23 वर्षीय सेफाली रानी दास को सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने के बाद विदेशी घोषित कर दिया था. महिला के हाईकोर्ट का रुख़ करने के बाद उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौका दिया गया था.

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(फोटोः पीटीआई)

19 सितंबर 2017 को फॉरेन ट्रिब्यूनल-6 ने असम में कछार ज़िले के सोनाई के मोहनखल गांव की 23 वर्षीय सेफाली रानी दास को सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने के बाद विदेशी घोषित कर दिया था. महिला के हाईकोर्ट का रुख़ करने के बाद उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौका दिया गया था.

(फोटोः पीटीआई)

गुवाहाटीः असम में एक महिला को 2017 में विदेशी घोषित करने के मामले में गौहाटी हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सिलचर जिले में एक अन्य फॉरेन ट्रिब्यूनल ने बीते हफ्ते आदेश पारित कर उन्हें भारतीय नागरिक घोषित किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 सितंबर 2017 को फॉरेन ट्रिब्यूनल-6 ने कछार जिले के सोनाई के मोहनखल गांव की 23 वर्षीय महिला सेफाली रानी दास को सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने के बाद विदेशी घोषित कर दिया था.

जब महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की तो अदालत ने जुलाई 2021 में इस आदेश को रद्द कर दिया और महिला को सिलचर ट्रिब्यूनल के समक्ष यह सिद्ध करने का एक और मौका दिया कि वह भारतीय नागरिक हैं.

बीते मंगलवार को ट्रिब्यूनल में मामले की दोबारा सुनवाई हुई और महिला द्वारा पेश किए गए पुख्ता, विश्वसनीय और स्वीकार्य सबूतों के आधार पर यह घोषित किया कि दास भारतीय नागरिक हैं.

ट्रिब्यूनल के एक सदस्य (जज) ने कहा, ‘महिला स्पष्ट तौर पर 25 मार्च 1971 से पहले भारत में अपने दादा की मौजूदगी को प्रमाणित कर पाईं. वह कानून के अनुरूप अपने पिता और खुद के वैध दस्तावेजों को पेश कर पाईं.’

बता दें कि कानून के अनुरूप 25 मार्च 1971 से पहले असम आए लोगों को ही यहां का नागरिक माना जाएगा.

जुलाई 2021 में सेफाली रानी दास ने गौहाटी हाईकोर्ट के समक्ष कहा था कि इन पूरी कार्यवाहियों के दौरान उनकी तरफ से जान-बूझकर किसी तरह की लापरवाही नहीं की गई.

उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने पिछले वकील से उचित कानूनी सलाह नहीं मिली और न ही वह कानूनी प्रावधानों से अच्छी तरह वाकिफ थीं, इसलिए वह सुनवाई की तारीखों पर पेश होने से चूक गईं.

फॉरेन ट्रिब्यूनल के मुताबिक, ‘दास फरवरी और सितंबर 2017 की पांच तारीखों को ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश नहीं हुईं और उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया.’

दास के मौजूदा वकील महतोष दास ने बताया कि दास के पिछले वकील ने उन्हें (दास) कानूनी कार्यवाहियों के बारे में नहीं बताया था.

उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत की कमी थी. वह बहुत गरीब परिवार से हैं और उनके पति शिक्षक हैं, जिनके पास फिलहाल कोई रोजगार नहीं है. वे इनमें से अधिकांश चीजों को नहीं समझते इसलिए इतना संदेह पैदा हुआ.’

जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने अपने फैसले में दास को अपना मामला पेश करने का एक और मौका देते हुए कहा, ‘नागरिकता किसी भी शख्स का महत्वपूर्ण अधिकार है, जिस पर योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए न कि डिफॉल्ट के रूप में जैसा कि मौजूदा मामले में किया गया.’

यह पहली बार नहीं है, जब हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किसी शख्स को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दूसरा मौका देने के लिए हस्तक्षेप किया है.

पिछले साल सितंबर और नवंबर में अदालत ने ठीक इसी तरह ट्रिब्यूनल के फैसलों को पलटते हुए कहा था कि नागरिकता पर फैसला योग्यता के आधार पर किया जाना चाहिए.

महतोष ने कहा कि फॉरेन ट्रिब्यूनल ने इस बार सेफाली रानी दास के दस्तावेजों को स्वीकार कर लिया है, जो दर्शाते हैं कि उनके पिता और दादा असम में 1971 के पहले से रह रहे हैं.

दास ने दावा किया था कि उनके दादा दुलराब्रम दास बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में धार्मिक उत्पीड़न के बाद 1950 में भारत आए थे. वह शुरुआत में सिलचर पुलिस थाने के तहत छोटो दूधपाटिल इलाके में रहते थे, लेकिन बाद में जमीन और संपत्ति खरीदने के बाद मोहनखल में शिफ्ट हो गए.

दास ने अपने दादा के 1952 के जमीन खरीद दस्तावेज और 1965 की मतदाता सूची के उनके रिकॉर्ड पेश किए.

दास ने अपने पिता लक्ष्मी दास का 1993 का मतदाता सूची रिकॉर्ड भी पेश किया, जिसमें दुलराब्राम के बेटे के रूप में उल्लेख है.

अपने माता-पिता से अपने संबंध को दर्शाने के लिए दास ने अपनी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के दस्तावेजों और जन्म प्रमाण-पत्र को पेश किया, जिसमें उनके पिता लक्ष्मी दास के नाम का उल्लेख है. इसके अलावा उनके बड़े भाई रंजीत दास ने भी मौखिक तौर पर साक्ष्य पेश किए.