कार्यकर्ताओं ने कश्मीरी पत्रकार के ख़िलाफ़ डोज़ियर की आलोचना की, कहा- चुप कराने का प्रयास

पत्रकार सज्जाद गुल को मुठभेड़ में मारे गए लश्कर-ए-तैयबा के एक आतंकी के परिवार का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. जन सुरक्षा क़ानून के तहत लगे आरोपों में कहा गया है कि वे हमेशा राष्ट्र-विरोधी ट्वीट्स की तलाश में रहते हैं और सूबे की नीतियों के प्रति नकारात्मक रहे हैं.

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पत्रकार सज्जाद गुल (फोटोः विशेष अरेंजमेंट)

पत्रकार सज्जाद गुल को मुठभेड़ में मारे गए लश्कर-ए-तैयबा के एक आतंकी के परिवार का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. जन सुरक्षा क़ानून के तहत लगे आरोपों में कहा गया है कि वे हमेशा राष्ट्र-विरोधी ट्वीट्स की तलाश में रहते हैं और सूबे की नीतियों के प्रति नकारात्मक रहे हैं.

पत्रकार सज्जाद गुल (फोटोः विशेष अरेंजमेंट)

श्रीनगरः कार्यकर्ताओं ने जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत पत्रकार सज्जाद गुल की डिटेंशन को न्यायोचित ठहराने के लिए जम्मू एवं कश्मीर पुलिस द्वारा जारी डोजियर की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र सरकार के आलोचकों को चुप कराने के लिए राष्ट्रहित जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना अब नियम बन गया है.

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर से पत्रकारिता के अंतिम वर्ष के छात्र गुल को एक विरोध प्रदर्शन का वीडियो अपलोड करने के लिए जनवरी की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था. अदालत से जमानत मिलने के बाद उन्हें हिरासत में रखने के लिए पुलिस ने उनके खिलाफ पीएसए लगा दिया.

कार्यकर्ताओं ने द वायर  को बताया कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को निशाना बनाने के लिए कानूनी प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल करना ‘राष्ट्रहित’, ‘कानून एवं व्यवस्था को खतरा’, ‘देश की संप्रभुता’ या ऐसे ही अन्य शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में पीएसए के तहत दर्ज मामलों की संख्या 2020 में 134 से बढ़कर 2021 में 331 हो गई है.

फ्री स्पीच क्लेक्टिव की गीता सेशु ने गुल के खिलाफ जारी पीएसए डोजियर को ‘कल्पना का एक शानदार उदाहरण’ बताया है.

उन्होंने द वायर  को बताया, ‘डोजियर में पूरी तरह से बेतुके बयान दिए गए हैं और कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया क्योंकि कोई साक्ष्य है ही नहीं. दरअसल इसके जरिये यह स्वीकार किया गया है कि गुल के खिलाफ मामला दर्ज करने का कोई आधार नहीं है क्योंकि इसमें कहा गया है कि पूरी संभावना है कि आपको अदालत से जमानत मिल सकती है. इस तरह उसे इंसाफ से महरूम रखा गया.’

सेशु ने कहा कि गुल के साथ किया गया व्यवहार परेशान करने वाला है क्योंकि देश के हर नागरिक को जनहित में सूचना का प्रसार करने का अधिकार है.

उन्होंने कहा, ‘इस अधिकार से महरूम रखा गया और इसका अपराधीकरण किया गया. कश्मीर को लंबे समय से मीडिया सेंसरिंग के लिए प्रयोगशाला माना जाता है और सज्जाद गुल की हिरासत हम सभी के लिए चेतावनी है.’

न्यूज वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फहद शाह ने गुल के खिलाफ लगे पीएसए को रद्द कराने के लिए जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.

उन्होंने कहा, ‘अदालत से जमानत मिलने के बाद गुल को जेल में रखने के लिए उसके खिलाफ पीएसए लगाया गया. यह एक युवा पत्रकार को प्रताड़ित करने के लिए शक्ति के दुरुपयोग का मामला है और इससे सभी को एक संदेश जाता है कि अगर आप असहमति की अभिव्यक्ति को रिपोर्ट करोगे तो आपको चुप करा दिया जाएगा.’

डोजियर में क्या कहा गया है

जम्मू कश्मीर पुलिस ने पीएसए के तहत गुल की डिटेंशन का यह कहकर बचाव किया है कि पत्रकार केंद्रशासित प्रदेश की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में कम बताते हैं जबकि वैमनस्य को अधिक बढ़ावा दे रहे हैं.

पुलिस के डोजियर में कहा गया है कि उनका काम कश्मीर के लोगों को गुमराह कर सकता है और इससे देश की संप्रभुता को संभावित खतरा है.

गुल को शुरुआत में पांच जनवरी को बांदीपोरा में उसके घर से गिरफ्तार किया गया और उस पर आईपीसी की धारा 147 (दंगा करने), 148 (दंगा करने, घातक हथियार से लैस), 336 (मानव जीवन को खतरे में डालना), 307 (हत्या का प्रयास),153बी(राष्ट्रीय एकता के खिलाफ प्रभाव डालने वाले भाषण देना या लांछन लगाना) के तहत मामला दर्ज किया गया.

जेल में लगभग नौ दिन बिताने के बाद उत्तरी कश्मीर जिले की स्थानीय अदालत ने उसे 15 जनवरी को जमानत दे दी थी. हालांकि, गुल को रिहा करने के बजाय पुलिस ने उस पर पीएसए के तहत मामला दर्ज कर जम्मू की कोट भलवाल जेल भेज दिया.

गुल के खिलाफ मनमाने ढंग से की गई कार्रवाई से देशभर में आक्रोश पैदा हुआ.

वैश्विक अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स जैसे मीडिया संगठनों, क्षेत्रीय नेताओं और कश्मीर के स्थानीय पत्रकारों ने प्रशासन से गुल के पत्रकारिता कार्य से जुड़ी जांच को बंद कराने का आग्रह किया.

इस डोजियर में जम्मू कश्मीर पुलिस ने जम्मू कश्मीर प्रशासन की नीतियों की नकारात्मक आलोचना करने के लिए गुल के खिलाफ पीएसए लगाने को न्यायोचित ठहराया है.

डोजियर में कहा गया, ‘आपमें राष्ट्रविरोधी और असामाजिक तत्वों का समर्थन करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है. आप हमेशा राष्ट्रविरोधी और असामाजिक ट्वीट की तलाश में रहते हैं.’

बांदीपोरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा 11 जनवरी को सौंपे गए और बांदीपोरा के जिला मजिस्ट्रेट ओवैस अहमद द्वारा मंजूर किए गए तीन पेज के डोजियर में गुल पर सरकार के खिलाफ लोगों को उकसाने के लिए बिना तथ्यात्मक जांच के ट्वीट पोस्ट करने का आरोप लगाया गया है.

डोजियर में गुल पर आतंकियों और उनके परिवार वालों के लिए काम करने का आरोप लगाया गया है.

पुराने मामलों का उल्लेख

डोजियर में तीन एफआईआर का उल्लेख किया गया है, जिन्हें गुल के खिलाफ बीते एक साल में दर्ज किया गया है और इसके तहत उनके खिलाफ लगे पीएसए को न्यायोचित ठहराया गया है.

इनमें से एक एफआईआर पिछले साल फरवरी में हाजिन इलाके में बांदीपोरा जिला प्रशासन के अतिक्रमण रोधी अभियान के बाद पुलिस की शिकायत पर दर्ज की गई.

गुल ने एक स्थानीय न्यूज पोर्टल ‘कश्मीर वाला’ के लिए के लिए बांदीपोरा के एक गांव में कथित तौर पर अवैध निर्माण हटाए जाने को लेकर खबर की थी, जहां उन्होंने गिरफ्तारी से पहले स्टाफ रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया था.

गुल के भाई जावेद अहमद ने द वायर  को बताया, ‘स्थानीय लोगों के आरोपों को रिपोर्ट करने के लिए उसे स्थानीय तहसीलदार ने धमकी दी थी. तहसीलदार हमारे गांव आए और हमारे चाचा की बाड़ तोड़ दी और हमारी संपत्ति नष्ट कर दी.’

इस मामले में गुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा करने), 336 (मानव जीवन को खतरे में डालना), 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला करना) और 447 (आपराधिक ट्रेसपासिंग) के तहत मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, उसे स्थानीय अदालत से जमानत मिल गई थी.

अहमद ने कहा, ‘पुलिस और स्थानीय अधिकारियों ने मेरे भाई पर अतिक्रमण रोधी अभियान में शामिल अधिकारियों पर हमला करने का आरोप लगाया लेकिन सच्चाई यह है कि वह (गुल) उस दिन वहां मौजूद भी नहीं था. उन्हें झूठे आरोप में फंसाया गया है क्योंकि वह अपना काम कर रहा था.’

दूसरा मामला पिछले साल 11 अक्टूबर को कथित एनकाउंटर के बाद हाजिन पुलिस थाने द्वारा ही दायर किया गया. पुलिस ने गुल के घर के पास शाहगुंड इलाके के रहने वाले संदिग्ध आतंकी इम्तियाज अहमद डार को मार गिराने का दावा किया है.

गुल ने पीड़ित परिवार के आरोपों को लेकर एक रिपोर्ट की थी, जिसमें परिवार ने बताया था कि डार को पूरी योजना के तहत मारा गया.

हालांकि, जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा डार ने पिछले साल अक्टूबर में उस समय बांदीपोरा में एक नागरिक को मार गिराया था, जब कश्मीर में गैर स्थानीय लोगों और नागरिकों पर सिलसिलेवार हमले हो रहे थे.

पुलिस ने आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 153बी (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ प्रभाव डालने वाले भाषण देना या लांछन लगाना) और 505 (शरारत) के तहत मामला दर्ज किया और इसमें गुल को आरोपी बनाया गया.

गुल की शाहगुंड एनकाउंटर के बारे में की गई रिपोर्ट पर पीएसए डोजियर में कहा गया, ‘गुल ने आतंकवाद रोधी अभियान को लेकर झूठी खबर फैलाई और फर्जी नैरेटिव पेश किया.’

गुल के खिलाफ तीन जनवरी को दायर ताजा एफआईआर श्रीनगर के मुगल गार्डन के पास एनकाउंटर में सलीम पर्रे के मारे जाने के बाद दर्ज की गई.

बता दें कि पर्रे कश्मीर के शीर्ष दस वॉन्टेड आतंकियों में से एक माना जाता था. इस एनकाउंटर के बाद गुल ने पर्रे के घर का दौरा किया था, जहां कुछ लोग उसके शव की मांग करते हुए कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगा रहे थे.

गुल ने अपने फेसबुक पेज पर नारेबाजी का यह वीडियो पोस्ट किया था. डोजियर में पुलिस ने वीडियो को रिकॉर्ड करने और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का हवाला भी दिया.

हालांकि, यह काम गुल के पत्रकारिता पेशे का ही हिस्सा है. पुलिस ने गुल पर वहां इकट्ठा लोगों को सरकार के खिलाफ उकसाने का आरोप भी लगाया है.

इन आरोपों का बचाव करते हुए जम्मू कश्मीर पुलिस ने कहा कि गुल केंद्र सरकार के खिलाफ घृणा से भरा हुआ है. पुलिस ने गुल को कश्मीर में कानून एवं व्यवस्था के खिलाफ संभावित खतरा बताया क्योंकि सोशल मीडिया पर उसके फॉलोअर्स की संख्या अच्छी-खासी है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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