अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कहा है कि उनका उद्देश्य स्कूली शिक्षा के संकट और आपातकालीन उपायों के लिए बजट की ज़रूरत की ओर ध्यान आकर्षित करना है. उन्होंने यह भी लिखा कि राज्य के प्राथमिक स्कूलों को सबसे लंबे समय तक बंद रखने का विश्व रिकॉर्ड है. इस दौरान कुछ चुनिंदा विशेषाधिकार प्राप्त बच्चे ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सके.
नई दिल्लीः अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने गुरुवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर कहा है कि झारखंड में प्राथमिक स्कूल सबसे लंबे समय तक बंद हैं, जो एक विश्व रिकॉर्ड है.
उन्होंने झारखंड में प्राथमिक शिक्षा की भयावह स्थिति पर सोरेन का ध्यान आकर्षित किया.
द्रेज ने द वायर से कहा कि उन्होंने रांची में 27 जनवरी को बजट पूर्व चर्चा के मद्देनजर यह पत्र तैयार किया था. इसका उद्देश्य किसी मुद्दे विशेष को उठाना नहीं बल्कि स्कूली शिक्षा के संकट और आपातकालीन उपायों के लिए बजट की जरूरत की ओर ध्यान आकर्षित करना था.
द्रेज ने पत्र में कहा, ‘मुख्यमंत्री जी, मुझे निराशा है कि मैं पूर्व बजट चर्चा में भाग नहीं ले पाऊंगा क्योंकि मैं कोविड-19 से उबर रहा हूं. मैं इस बैठक में हिस्सा भाग लेने के लिए इच्छुक था, विशेष रूप से झारखंड में प्राथमिक शिक्षा की भयावह स्थिति की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए. आज हम जिस संकट का सामना कर रहे हैं, उसका सबसे बुरा पहलू आर्थिक संकट या स्वास्थ्य संकट नहीं बल्कि स्कूली शिक्षा का संकट है.’
द्रेज ने कहा, ‘जैसे-जैसे महामारी का प्रकोप कम हो रहा है, अर्थव्यवस्था में सुधार होने की संभावना है जिससे वयस्कों का सामान्य जनजीवन बहाल हो जाएगा लेकिन बच्चे इसकी कीमत पूरी जिंदगी चुकाएंगे.’
उन्होंने कहा, ‘झारखंड का प्राथमिक स्कूलों को सबसे लंबे समय तक लगभग दो सालों तक बंद रखने का विश्व रिकॉर्ड है. इस दौरान कुछ चुनिंदा विशेषाधिकार प्राप्त बच्चे ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सके. ऑनलाइन शिक्षा गरीब बच्चों के लिए नहीं है. इनमें से ज्यादातर बच्चे लगभग दो सालों तक वर्चुअल स्कूली शिक्षा प्रणाली से महरूम रहे.’
द्रेज ने कहा कि महामारी के दौरान अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी स्कूल बंद रहे और सोशल मीडिया एवं इंटरनेट पोर्टल के जरिये कक्षाएं शुरू हुई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस तरह से सिर्फ 35 फीसदी छात्रों को ही लाभ हुआ.
द्रेज ने पत्र में कहा, ‘2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में 8-12 आयुवर्ग के बच्चों में साक्षरता दर लगभग 90 फीसदी थी. 2020 तक इस आयुवर्ग के अधिकतर बच्चे साक्षर होने चाहिए थे लेकिन आज जब हमने झारखंड के इस आयुवर्ग के गरीब आदिवासी और दलित परिवार के बच्चों का सर्वे किया तो हमें पता चला कि इनमें से अधिकतर बच्चों ने एक सरल वाक्य को पढ़ने की भी क्षमता खो दी है.’
उन्होंने कहा कि जब स्कूल दोबारा खुलेंगे तो इनमें से अधिकतर बच्चे पढ़ने और लिखने की अपनी क्षमता को दोबारा हासिल करेंगे, हालांकि कुछ नहीं कर पाएंगे. वे ड्रॉपआउट हो जाएंगे.
द्रेज ने कहा, ‘मुझे लगता है कि झारखंड को अगले दो सालों में प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए बडे़ पैमाने पर साक्षरता अभियान की योजना बनाने की जरूरत है. इस अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि झारखंड में कोई भी बच्चा सीखने, पढ़ने या लिखने के अवसर से वंचित नहीं हो. इस अभियान की जानकारियों पर सावधानी से सोचने की जरूरत है. शायद तमिलनाडु की आईटीके योजना से कुछ प्रेरणा ली जा सके, जहां यह अभियान विशेष रूप से स्थानीय शिक्षित युवाओं (विशेष रूप से महिलाएं, दलित और आदिवासी) को संगठित करने पर आधारित है. यह कम लागत पर प्रत्येक गांव तक पहुंच सकता है और इन युवाओं को कुछ पूरक आय भी हो सकती है.’
पत्र में कहा गया, ‘मैं आपसे आग्रह करता हूं कि इस प्रस्ताव पर विचार करें और यह सुनिश्चित करें कि आगामी बजट में इसे लेकर उचित प्रावधान किए जाएं.’